किडनी की गड़बड़ी के पाँच चरण

किडनी का फेल होना/ क्रेटनीन का बढ़ना


 

किडनी का फेल होना,या क्रेटनीन का बढ़ना आज की आम समस्या होती जारही हें। कैंसर और किडनी की बीमारी ऐसा समस्याहै जो कि रोगी को आर्थिक  रूप से पहले ही मार देती है। इन बीमारियों में रोगी और उसका परिवार आर्थिक  सामाजिक और भौतिक रूप से पहले ही टूट जाता है। गरीब आदमी तो इन बीमारियों का इलाज या गुर्दा प्रत्यारोपण आदि करा ही नहीं सकता है। आइएअब चर्चा करते हें कि यह रोग होता क्यों है।


जो व्यक्ति अधिक मात्रा में माँसयुक्त भोजन का सेवन करता है उसकी किडनी फेल होने की आशंका शाकाहारी लोगों की तुलना में तीन गुनी अधिक होती है। क्योंकि गुर्दा ही हमारे शरीर में पाचन तंत्र का मुख्य अवयव है इसलिए इस अवयव में समस्याएं उत्पन्न से हमारे शरीर का पोषण बाधित हो जाता है हमारा शरीर निर्बल होता चला जाता है।
इसके साथ ही यह भी सामने आया कि पेट में एसिड की उच्च मात्रा से किडनी के काम बंद होने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
कैंसर की तरह किडनी की गड़बड़ी के भी पाँच चरण होते हैं,

 किडनी की गड़बड़ी के  पाँच चरण 

पहला चरण 

जब किडनी की बीमारी की शुरुआत होती है सबसे पहले पेशाब की मात्रा और रंग में बदलाव दिखाई देता है पर क्रिएटिनिन और ईजीएफआर का स्तर सामान्य होता है। 

जिससे किडनी के रोग का पता आसानी से नहीं चल पाता। 

 


क्रिएटिनिन एक मेटाबॉलिक अपशिष्ट है, जिसे किडनी खून से अलग करती है और जो पेशाब के जरिए बाहर निकल जाता है। इसकी मात्रा खून में कम व पेशाब में ज्यादा होनी चाहिए। जाँच में प्रोटीन की मात्रा हल्की-सी बढ़ी हुई हो सकती है। 

ये शुरुआती लक्षण हैं।

 

दूसरा चरण 

दूसरे स्तर पर क्रिएटिनिन तो सामान्य ही मिलता है, 

पर ईजीएफआर घटकर 90-60 हो जाता है। 

प्रोटीन की मात्रा बढ़ी होती है। शुगर और बीपी भी बढ़ा होता है। इस समय तक किडनी 40%खराब हो चुकी होती है।

 

तीसरा चरण

ईजीएफआर घटकर 60-30 के बीच आ जाता है। 

क्रिएटिनिन बढ़ने लगता है। 

इस स्तर पर किडनी की बीमारी का पता चल जाता है। 

खून की कमी, खुजली, ब्लडप्रेशर, पेशाब में यूरिया आदि के लक्षण स्पष्ट रहते हैं। 

इस अवस्था तक किडनी 60% खराब हो चुकी होती है। 

 

इस स्तर पर जीवनशैली में सुधार करके, आयुर्वेदिक उपचार करके, pain killar का प्रयोग बंद करके किडनी को बचाया जा सकता है। 

 

चौथा चरण

यहाँ क्रिएटिनिन बढ़कर 4-5 और ईजीएफआर घटकर 30-15 तक रहने लगता है। 

 

थोड़ी भी लापरवाही से डायलिसिस या ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है। 

 

पांचवां चरण

क्रेटनीन 7 से ऊपर पहुँच जाता है, 

इस स्तर पर डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा कोई उपाय नहीं रह जाता।

आज आपको किडनी के रोग की पहचान कैसे करें, 

कैसे इस रोग की रोकथाम की जाए इन सब के बारे में जानकारी देंगे। 

किडनी की बीमारी हमारी रोज की दिनचर्या पर निर्भर करती है। दिनचर्या अगर नियमित नहीं है तो किडनी की बीमारी आपके शरीर में जल्द से जल्द अपना घर बना लेगी। 

ये है इसके प्रमुख कारण... 

●पेशाब रोकना  

●कम पानी पीना  

●कैमिकल युक्त बाजार का पिसा हुआ नमक खाना 

●हाई बीपी व शुगर के इलाज में लापरवाही  

●ज्यादा मात्रा में दर्द निवारक दवाएं लेना 

●कोल्ड्रिंक, सोडा और शराब पीना  

●सूर्य की रोशनी न् लेना जिससे विटामिन-डी की कमी  

●प्रोटीन, पोटैशियम, सोडियम, फॉस्फोरस वाले खाद्य पदार्थो का बहुत ज्यादा लेना  

●अनियमित जीवनशैली

 

किडनी रोग की पहचान

●पेशाब करने में दिक्कत होना।

●अचानक से कम या ज्यादा आना। 

●पेशाब के समय मूत्रनली में दर्द या जलन होना। 

ऐसा संक्रमण कारण भी हो सकता है। 

●पेशाब का रंग बदल कर गहरा हो जाना। 

ऐसा दवाओं के कारण भी होता है। 

●पेशाब के रास्ते खून आना।  

●हाथ पैर में सूजन आना। 

●अधिक थकान, चिड़चिड़ापन, कमजोरी, एकाग्रता में कमी आना। 

●मुँह से ज्यादा बदबू आना। 

●पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना। 

यह पथरी का संकेत भी हो सकता है।   

 किडनी की सुरक्षा के उपाय

●सूर्य की पर्याप्त रोशनी लें जिससे विटामिन-डी और विटामिन-बी 6 की आपूर्ति दुरुस्त हो तो किडनी की बेहतर सुरक्षा होती है। 

●यदि पथरी की समस्या हो तो विटामिन-बी 6 युक्त भोजन का नियमित सेवन करें।  

●विटामिन-सी किडनी की सेहत के लिए अच्छा रहता है। 

नींबू-पानी, आंवला, संतरा आदि पर्याप्त लें। 

●किडनी स्वस्थ है तो पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं। 

उसके बाद डॉक्टर की सलाह से पानी की मात्रा तय करें। 

कई स्थिति में ज्यादा पानी पीना नुकसानदेह भी हो सकता है। 

●केवल शुद्ध नमक (सेंधा नमक) ही खाएं। 

कई बार नमक कम करने या बंद कर देने से ही किडनी को काफी राहत मिल जाती है। 

●प्रोटीन की मात्रा नियंत्रित रखें। शरीर के वजन के हिसाब से 0.5 से 0.8 मिलीग्राम प्रति किलो हर रोज के लिए काफी है। 

●खीरा, ककड़ी, गाजर, पत्तागोभी, लौकी, आलू और तरबूज का रस फायदेमंद होता है। 

●सब्जियों में तोरई, लौकी, टिंडा, धनिया, परवल, पपीता, कच्चा केला, सेम, सहजन की फली खाना फायदेमंद रहता है। 

●अंगूर शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर करता है।

●रात में मुनक्के भिगोकर सवेरे उसका पानी पीना लाभ पहुँचाता है। 

●जामुन और करौंदा जैसे फल किडनी से यूरिक एसिड और यूरिया को बाहर निकालने में सहायता करते हैं।  

●दैनिक आहार में दही और छाछ शामिल करें। 

इससे मूत्र मार्ग के संक्रमण कम होते हैं। 

 

35 के बाद वर्ष में कम से कम एक बार बीपी और शुगर की जांच कराएं। 

बीपी या डायबिटीज के लक्षण मिलने पर उनका उचित इलाज़ करें।

एक बात का ध्यान रखें, ऐलोपैथी में किडनी रोग के लिए डायलिसिस के अतिरिक्त कोई उपचार नही रह जाता है

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्राह्मण वंशावली

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा