लखनऊ में हल्दी “बीज गाँव”

आम फल पट्टी में हल्दी “बीज गाँव”



 गुणवत्ता युक्त बीजों की भारी माँग एवं उपलब्धता  को देख्रते  हुए सिर्फ़ सरकारी और निजी कंपनियों के बल बूते किसानों को उन्नत प्रजाति  का बीज उलब्ध करा पानाकठिन काम है। बदलते हालात में किसानों को जागृत करके बीज गाँव विकसित करने होगें जिससे उन्नत बीजों की उपलब्धता बढ़े फलत: उत्पादकता बढ़े।  केन्द्रीय उपोषण बाग़वानी संस्थान, लखनऊ ने फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना के अंतर्गत जनपद लखनऊ  में  मलिहाबाद के एक गाँव मोहम्मद नगर  के 10 किसानों को हल्दी की उन्नत क़िस्म 'नरेन्द्र देव हल्दी-2 '  क़िस्म के बीज दिये जिसमें करकयूमिन की मात्रा 5 % जो स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है। हल्दी में पाए जाने वाला करक्यूमिन स्तन एवं प्रोस्टेट कैंसर से बचाव करने में सहायक है|


संस्थान के निदेशक बताते है कि रूढ़िवादी मान्यताओं के चलते आम बागवान इसे बाग़ मे उगाना अशुभ मानते थे। गाँव के एक जागरूक किसान ने पहल की और आम के बाग़ मे इस हल्दी के बीज को अन्तः फसल  के रूप मे लगाया। उनके इस प्रयास को नौ और किसानों ने अपनाया। परिणाम बहुत ही उत्साहवर्धक रहे। बाग़ की ख़ाली ज़मीन उपयोग मे आयी और आम के पेड़ों की छाया में भी सफलता पूर्वक 45 किवंटल प्रति एकड़ की उपज मिली जिसे किसानों ने 20-25 रूपये प्रति किलो के भाव से बीज के रूप मे बेंच दिया। सबसे ख़ास बात इसके पौधे छुटटा जानवर नही खाते।  देखते देखते इस गाँव के तीस किसानों ने हल्दी की इस फसल  को आम के बाग़ मे सह-फ़सल के रूप मे अपनाकर इस गाँव को बीज गाँव मे तब्दील कर दिया। संस्थान  वैज्ञानिक डा पवन गुर्जर ने किसानों को हल्दी प्रसंस्करण की नयी विधी सिखाई जिसमें हल्दी के कंदो को बिना उबाले, चिप्स बना कर, फिर इसे सुखा कर पीसने पर उत्तम क़िस्म का हल्दी पाउडर बनाया गया। इस गाँव के एक किसानबताते है कि अब हल्दी चिप्स बनाने और डिहाइडऱेटर मे सुखाने मे महारत हासिल कर ली है और मैं हल्दी पाउडर पैक कर के बेचता हूँ।



 हल्दी बीज "गाँव" से उत्साहित होकर फ़ार्मर फ़र्स्ट परियोजना ने 10 किसानों को जिमीकंद की उन्नत प्रजाति  राजेन्द्र गयी है | जिसमें में एलकलायड कम होने से गले में खराश नही होती है। इस प्रकार के जिमीकंद की   माँग अधिक  होती है। किसानों ने जिमीकंद को आम के बाग़ों मे अन्तः  फ़सल के रूप मे अपनाया है। हल्दी और जिमीकंद ने इस गाँवों अभिजात्य बना दिया है। पचास से ज़्यादा किसान इस बीज मुहिम से जुड़ चुके है। आम  की बाग अदरख की फसल को अन्तः फसल  के रूप लिया जा सकता है ।



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