आलू की खेती में रोग प्रबंधन
पछेती झुलसा
लक्षण-
यह आलू की सबसे भयानक बिमारी है और दो-तीन दिन में ही पूरी फसल झुलस जाती है। बदली के मौसम में इसकी प्रकोप ज्यादा बढ़ जाता है।
पहले पत्तियां किनारे से हल्की भूरी होकर गलने लगती है। सुबह के समय पत्तियों के किनारे पर फफूँद का सफेद घेरा दिखाई देता है जो दिन में सूख जाता है। रोग उग्ररूप धारण करने पर पत्तियाँ काली पड़ने लगती है और बाद में पूरी पत्ती, तना और अन्त में आलू सड़ने लगते हैं।
प्रबंधन-
इस रोग के प्रबंधन के लिए टमाटर में पछेती झुलसा के लिए बताए गए तरीकों को अपनावें।
अगेती झुलसा
लक्षण-
इस रोग का लक्षण पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देता है। प्रभावित पत्तियों पर छोटे-छोट, गोल एवं भूरे रंग के धब्बे बनते है। कई धब्बे एक साथ मिलने पर पत्तियाँ मुरझा जाती हैं। तने पर लम्बवत धब्बा बनता है।
प्रबंधन-
क्लोरोथेलोनील 2 ग्राम/लीटर या मैन्कोजेब 2.5 ग्रा/ली0 या कापर आक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम/लीटर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
दवा का छिड़काव पत्तियों पर लक्षण आने के प्रारम्भिक अवस्था से ही प्रारम्भ करना चाहिए।
जमीन पर गिरे हुए संक्रमित पत्तियों को इकट्ठा करके उनको जला दें। फसल समाप्त हो जाने के बाद पौधों के अवशेष एक जगह एकत्रित करके उन्हें जला दें।
बीज का चुनाव हमेशा स्वस्थ एवं रोग रहित फसल से ही करें।
काली खुरन्ड ;ब्लैक स्कार्फ, कामन स्कैब
लक्षण-
ब्लैक स्कर्फ में आलू के कन्दों के ऊपर काली खुरदरी परत जम जाती है। यह किसी भी चीज से खुरचने पर छिलके से निकल जाती है। यह बिमारी राइजोक्टोनिया सोलेनाई नामक कवक से होती है। इस कवक के कारण कभी-कभी तना गलन बिमारी भी लग जाती है। इस बिमारी में जमीन के पास से ही तना गलकर गिर जाता है। कामन स्कैब में आलू के केन्दों के ऊपर पहले सफेद, भूरे धब्बे वाली आकृति बनती है जो सूख कर खुरदरी प्रतीत होती है। यह बीज में फटी रहती है। स्कैब बिमारी एक विशेष प्रकार के एक्टिनोमाइसिस से होता है।
प्रबंधन-
रोग मुक्त आलू के बीज (कन्द) का प्रयोग करें तथा खेत में पोटाश वाली खाद का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें।
खेत का पी एच उदासीन होना चाहिए।
खेत मे हरी खाद अथवा पर्याप्त मात्रा में कम्पोस्ट डालकर ट्राइकोडर्मा (5 किग्रा प्रति हे0) का प्रयोग करें।
बुआई के पहले आलू के कन्दो को 3 प्रतिशत बोरिक एसिड के घोल में 30 मिनट तक डुबोयें या घोल बनाकर कन्दों के ऊपर अच्छी तरह छिड़काव करें और छाये में सुखा कर खेत में बुआई करें।
आलू पकने पर खेत की सिंचाई न करें अन्यथा यह रोग तैयार कन्दों पर लग जाता है।
आलू का विषाणु रोग
लक्षण-
आलू में कई तरह की विषाणु जनित बिमारियाँ लगती हैं। सिमें पत्ती मरोड, पाॅटी, पौटेटो एस, पोटैटो एक्स, पोटैटो वाई, कई तरह के विषाणु पाए जाते है, लेकिन इसका संक्रमण नगण्य है।
प्रबंधन-
इसके लिए हमेशा आलू का प्रमाणिक बीज ही प्रयोग करें।
खेत मे अगर माहॅू कीट दिखे तो किसी भी अन्तप्रवाही कीटनाशक रसायनों जैसे मेटा सिस्टाक्स या रोगार 1.5 मिली0 लीटर प्रति लीटर पानी) का प्रयोग करें जिससे रोग वाहक कीट मर जाएँ।