धातुओं के प्रयोग से भी बढ़ सकती है उर्वरता
हमारे भारत के वेद पुराणों में ही हमारी सभी समस्याओं का निराकरण छुपा हुआ हैे। हमारी कृषि में घटती उत्पादकता हमारे लिए एक गंभीर चिंतन का विषय बना हुआ है। इससे निजात पाने के लिए लगातार कोशिशें की जाती रही है। जिनकें अन्र्तगत पुरातन काल से ही कषि की विधाओं में जागरूक हमारे ऋषि मुनियों ने अनुसधान किए है। जिनको नजर अंदाज नही किया जा सकता पुराणों में घटने वाली घटनाओ को महज कहानी मान लेना हमें भारी पड़ता है। बेल्जियम से आए कृषक जान डिहस्लर ने भी हमारे पुरातन काल की कहानी को सही साबित किया है। जी हां उन्होंने पीतल के कृषि यंन्त्रों का प्रयोग करके 10 प्रतिशत तक की उत्पादन क्षमता को बढाया है। उन्होंने इस बात को बडे़ ही सरल ढग से समझाया है।
उनका कहना है कि जैसे हमारे अन्दर कोई न कोई पाॅजटिव निगेटिव पावर होता है वैसे ही वातावरण और मिटटी में भी यह होता है जैसे ही हम मिट्टी में कम सुचालक धातु का प्रयोग करतें है तो उसके आयन के प्रभाव कम हो जाते है। लेकिन जैसे ही हम उसमें पीतल सोना व चांदी की धातु का प्रयोग करते है। उसमें आयन के प्रभाव बढ जाते हैं। जिससे उत्पादकता 10 प्रतिशत तक बढ जाती है। इस बात का प्रमाण हमारी राम कथा में जनकपुरी में पढे आकाल के बारे राजा जनक के सोने के हल चलाने का विवरण मिलता है।
जिसे हमने आज तक नजर अंदाज किया है। इस बारे में बात करने से जान ने बताया कि यह जानकारी उन्होने हमारे यहां से ही सीखी है।
प्रस्तुति - बांदा से मानोदय सिंह