गेहूँ फसल में खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार नियंत्रण-


गेहूँ के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उगकर पोषक तत्वों, प्रकाश, नमी आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा  करते है। यदि इन पर नियंत्रण नही किया गया तो गेहूँ की उपज मे 10-40 प्रतिशत तक हानि संभावित है। बोआई से 30-40 दिन तक का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक क्रांतिक  रहता है। गेहूँ के खेत में चैड़ी पत्ती वाले और घास कुल के खरपतावारों का प्रकोप होता है।
1.चैड़ी पत्ती वाले खरपतवार-



कृष्णनील, बथुआ, हिरनखुरी, सैंजी, चटरी-मटरी, जंगली गाजर आदि के नियंत्रण हेतु 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36 प्रतिशत (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किग्रा. मात्रा अथवा 2,4-डी लवण 80 प्रतिशत (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किग्रा. मात्रा को  700-800 लीटर पानी मे घोलकर एक हेक्टर में बोनी के 25-30 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।
2.सँकरी पत्ती वाले खरपतवार-



गेहूँ में जंगली जई व गेहूँसा का प्रकोप अधिक देखा जा रहा है। यदि इनका प्रकोप अधिक हो तब उस खेत में गेहूँ न बोकर बरसीम या रिजका की फसल लेना लाभदायक है। इनके नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथेलिन 30 ईसी (स्टाम्प) 800-1000 ग्रा. प्रति हेक्टर अथवा आइसोप्रोटयूरॉन 50 डब्लू.पी. 1.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर को  बोआई के 2-3 दिन बाद 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हे. छिड़काव करें। खड़ी फसल में बोआई के 30-35 दिन बाद मेटाक्सुरान की 1.5 किग्रा. मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कना चाहिए। मिश्रित खरपतवार की समस्या होने पर आइसोप्रोट्यूरान 800 ग्रा. और 2,4-डी 0.4 किग्रा. प्रति हे. को मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। गेहूँ व सरसों की मिश्रित खेती में खरपतवार नियंत्र्ण हेतु पेन्डीमिथालिन सर्वाधिक उपयुक्त तृणनाशक है ।


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्राह्मण वंशावली

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा