कोई लौटा दे वही बीते हुए दिन !
किसान गरीब और गंवार तो सदा से रहा है मगर वह हमेशा मस्त और खुशहाल रहा है। किसान कभी भी तनाव में नहीं रहा। वह अपनी अभावग्रस्त जिंदगी में भी बैलों की घूंघुर-घांटी की घन-घन की आवाज,गैया के रंभाने, भैंस के पगुराने, झिल्लियों की झनकार पिक-चातक की पुकार,पत्नी से तकरार और मनुहार, बच्चों के चिल्ल-पों ,मिट्टी की सोंघी महक,चिड़ियों की चहक, सेंठ-साहूकारों के तगादे ,नीलामी की मुनादें, इनसबके बीच भी वह अपने लिए खुशियां तलाश लेता था। गोरी की चोखी चितवन पर वह जेल की सजा काटने को भी तैयार हो जाता था। उसे भविष्य की चिंता नहीं सताती थी, उसे कम खाने-गम खाने में संतोश था। संयुक्त परिवार हुआ करते थे इसलिए उसे भविष्य की चिंता बहुत कम हुआ करती थी वह वर्तमान मे व्यस्त और मस्त रहता था। उसकी जरूरते भी सीमित थीं ,सुनहरे कल की चिंता में वह आज की खुशियां बरवाद नही करना चाहता था। '' पूत सपूत तो का धन संचै, पूत कपूत तो का धन संचै'' अर्थात यदि संताने 'लायक' हैं तो उनके लिए धन संग्रह करने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि वे अपने लिए स्वयं कमा लेंगी और यदि संताने नालायक हैं तो आप उनके लिए चाहे जितना धन संग्रह करके रख लें उसे बर्वाद करने में उन्हें समय नहीं लगेगा। यही उसका जीवन दर्षन होता था। उसे भेाजन की चिंता भले ही होती थी मगर दवा की चिंता नहीं होती थी। शायद आप मेरी बातों से उकता रहे होंगे कि क्या पुरानी बातों को लेकर बैठ गया। बात सच है मगर यह अगस्त का महीना है अमर शहीद क्रंातिकारियों और मानवता तथा जग और जनकल्याण के लिए गरल पीने वाले भूत-भावन भगवान शिव का। किसान भाइयों! वही अभीष्ट तो आपका भी है। आप भी तो विषम परिस्थितियों में जीते हुए देष की सवा अरब आवादी के भरण -पोशण में जुटे हुए हैं। इसलिए भूत-भावन भगवान शिव और देश की आजादी के लिए जूझने वाले अमर षहीदों क्रातिकारियोें के साथ-साथ मैं आप सबको भी सादर नमन करता हूँ। आज के दिन चाचा नेहरू और काका कलाम की बड़ी याद आ रही हैं। यह दोनो ही महान विभूतियां राष्ट्र चिंतक थीं लेकिन दोनो ही लोग चच्चों के बीच पहुँच कर सारी दुनियादारी और जिम्मेदारी भूल कर कुछ पलों के बच्चे बन जाते थे, कहते हैं कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं मोह ,माया और जगत गति से परे ,बिल्कुल तनाव मुक्त। इस क्रांति माह में चाचा नेहरू को हम भारत के नवनिर्माता के रूप में काका कलाम को भविष्य द्रष्टा और मिसाइल मैन के रूप मे याद कर रहें हैं क्योकि उन्होंने अभी हाल ही में अपना नश्वर शरीर तयागा है मगर वे हमेशा हमारे बीच में हमेशा मौजूद रहेंगे एक पे्ररणादायक के रूप में, मस्त मौला काका के रूप में ,शिक्षक के रूप में ,मिसाइल मैन के रूप में, आध्यात्मिक एवं दार्शनिक गुरू के रूप में,और विश्व विख्यात वैज्ञानिक के रूप में । आज यदि हम उनकी याद में आंसू बहाते है तो शायद उनकी आत्मा दुखी होगी कयांेकि वह रोने में नहीं हंसते रहने में यकीन करते थे, वह जागती हुई आंखें से सपने देखते थे। सारी दुनिया उनके व्यक्तित्व की कायल थी। वह कहते थे कि-''इससे पहले कि सपने सच हो आपको सपने देखने होंगे।'' इसके साथ ही उनका यह भी कहना था कि ''सपने वह नहीं जो आप नींद में देखते हैं। यह तो एक ऐसी चीज है जो आपको नींद ही नहीं आने देती।'' तरक्की का उनका ख्वाब शहरों से नहीं बल्कि गांव की पंचायतों से शुरू होता था। पूरी जिन्दगी शिक्षा को समर्पितः-लगभग 40 विश्व विद्यालयों द्वारा मानद डाॅक्टरेट की उपाधि, पद्म भूषण और पद्म विभूषण व भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित होने वाले पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बाल एवं युवा पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे। हम और आप यदि उन जैसा महान वैज्ञानिक और मिसाइलमैन और ,शिक्षा शास्त्री नहीं बन सकते तो भी भी कलाम काका से हमेशा खुश रहना हंसना खिल खिलाना और मस्त रहना तो सीख ही सकते हैं। स्वाधीनता दिवस और क्रांति पर्व के इस पावन माह में कयों न आज हम यह संकल्प लें वर्ष 2020 में कलाम काका ने जिस उदीयमान भारत का सपना देखा था उसे पूरा करने मे हम कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे शायद यही उनके लिए हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।