क्या खायें पियें ,कैसे श्वांस लें ?

वर्षा का पानी तो आता है और बह जाता है और उसी पानी का कुछ हिस्सा मिट्टी अपने अन्दर जज्ब करते हुए उसे अपने गर्भ में  पहुंचा देती है और धरती माता के गर्भ में जो जल संग्रहीत होता है उसे भूग-र्भ जल कहा जाता है। पेय जल अथवा सिंचाई जल के रूप में हम सर्वाधिक उपयोग नलकूपों, हैण्डपम्प व अन्य माध्यमों से भूगर्भ जल का ही करते है। मगर हमारा भूगर्भ जल अब सुरक्षित नहीं रहा क्योंकि इसमें जहर घुलने लगा है जो कि घातक है हमारी सेहत के लिए भी और हमारी फसलों के लिए भी। आखिर हमारी फसलें भी तो जीवधारी होती हैं और जब हम अपनी फसलों को सिंचाई जल के रूप में जहर पिलायेंगे तो वह भी हमें जहर हो तो लौटायंगी।
वैज्ञानिकों के अनुसार इंडियन स्टैण्डर्ड आफ परमिशिबिल सिमित ब्यूरो, पानी में प्रति लीटर 0.01 मिलीग्राम तक घुले आर्सेनिक युक्त जल का उपयोग किया जा सकता है किंतु भारतीय औद्योगिक विष अनुसंधान संस्थान लखनऊ की रिपोर्टो के अनुसार उत्तर प्रदेश के 30 से अधिक जिलों के भूगर्भ जल में प्रतिलीटर 0.05 मिली ग्राम से अधिक आर्सेनिक घुला हुआ है।
संस्थान की रिपोर्टो के अनुसार उत्तर प्रदेश के बलिया, लखीमपुर, खीरी, बस्ती, बहराइच, गाजीपुर, गोरखपुर, बरेली, सिंद्धार्थनग, चन्दौली, उन्नाव, मुरादाबाद, संत कबीर नगर, संत रविदास नगर, गोण्डा, बिजनौर, मिर्जापुर, शाह जहांपुर, बलरामपुर, मेरठ व रायबरेली आदि जनपदों के भूगर्भ जल में प्रति लीटर0.04 से 0.05 मिलीग्राम तक आर्सेनिक घुला हुआ है। संस्थान की रिपोर्टो के अनुसार फैजाबाद, सीतापुर व कानपुर नगर जनपदों  के भी भू-जल में प्रति लीटर 0.04 से 0.0 मिलीग्राम तक आर्सेनिक मिले होने की पुष्टि हुई है।
  प्राप्त जानकारी के अनुसार बलिया और लखीमपुर जनपदों के कुछ ब्लाकों की स्थिति नितांत शोचनीय है। बलिया जनपद के रेयोटी, बेलहरी, और दुभाण्ड विकास खण्डों के भूगर्भ जल में प्रति लीटर 0.05 मिलीग्राम से कहीं अधिक आर्सेनिक मिला हुआ है। इसी प्रकार जनपद लखीमपुर खीरी के पलिया, रमिया खेड़ा व निघासन विकास खण्डांे के भूगर्भ जल में भी खतरनाक स्थिति तक आर्सेनिक जहर मिला हुआ है।
आई.आइ.टी.आर की रिपोर्टो के अनुसार बहराइच जनपद के भूगर्भ जल में प्रति लीटर 766 मिलीग्राम तक लखीमपुर जनपद के भूगर्भ जल में प्रति लीटर 350 मिलीग्राम तक, बलिया जनपद के भूगर्भ जल में 246 मिलीग्राम तक गाजीपुर जनपद के भूगर्भ जल में प्रति लीटर 50 और जनपद गोरखपुर के भूगर्भ जल में 50 मिलीग्राम तक प्रतिलीटर आर्सेनिक जहर घुला हुआ है।
आई.आई.टी.आर के लैब में इण्डिया मार्का हैण्डपम्प के 124 नमूने जाॅंचे गये जिनमें से 18 में  14.5 प्रतिशत नमूने ऐसे पाये गये जिनमें आर्सेनिक घुला हुआ पाया गया।
आर्सेनिक क्या है- 



आर्सेनिक जल में मिला हुआ एक रासयनिक तत्व है     जिसमें तमाम भारी धातुएं घुली हुई होती हैं और जल के साथ हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है।
आर्सेनिक से नुकसान -



 आर्सेनिक हमारे शरीर में पहुॅंच कर लीवर  गालब्लेडर नसों हमारे हृदय एवं चमड़ी पर दुष्प्रभाव डालता है। इससे किडनी कैंसर हृदय रोग एवं चर्म रोग हो जाता है। चिकित्सा विश्व विद्यालय लखनऊ के डाक्टरों के अनुसार आर्सेनिक हमारी शरीर में पहुंच कर शरीर के ऊर्जा तंत्र को छिन्न-भिन्न कर देता है जिससे हमारी शरीर का सम्पूर्ण तंत्र अव्यवस्थित हो जाता है और तमाम तरह की बीमारिया सिर उठाने लगती हंै। इसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव हमारे फेफड़ों लीवर, किडनी और चमड़ी पर पड़ता है, नाखून नीले पड़ने लगते हैं। 
केन्द्रीय भूगर्भ जल परिषद ने भी उत्तर प्रदेश के भू-गर्भीय जल में आर्सेनिक घुले होने की पुष्टि की है और यह चेतावनी भी दी है कि इसकी मात्रा स्वीकार्य मानक से कही अधिक है।
प्रदेश के दूर दराज के इलाकों की तो बात ही छोड़ दीजिए प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी चाहे वह गोमती नदी से आपूर्तित जल हो अथवा सरकारी या निजी नलकूपों का यहां तक कि इण्डिया मार्का 2 हैण्ड पम्प के जल में भी स्वीकार्य मात्रा से अधिक आर्सेनिक घुला हुआ है और तमाम लोग अनजान रह कर जल जनित बीमारियां भुगत रहे है।
लखनऊ में ट्रांस गोमती क्षेत्र के जल में कुछ अधिक ही आर्सेनिक की पुष्टि हुई है। वैसे तो हम इस मामले में अभी तक पर्याप्त जागरूक ही नही है मगर जिन-जिन क्षेत्र के लोग जल की जांच करा रहे है प्राय: सभी में स्वीकार्य से अधिक मात्रा में आर्सेनिक होने की पुष्टि हो रही है। लखनऊ के सर्वाधिक आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रों में गोमती नगर के भूगर्भ जल में आर्सेनिक प्रति लीटर 0.30 मिलीग्राम विजय नगर क्षेत्र में प्रति लीटर 0.023 मिलीग्राम और बेशाहबाग क्षेत्र में 0.023 मिलीग्राम प्रतिलीटर आर्सेनिक घुले होने की पुष्टि हुई है। अलीगंज क्षेत्र के हैण्डपम्पों के पानी में 0.020 एएमआई सी हास्पिटल क्षेत्र में 0.019, ट्रांस पोर्ट नगर क्षेत्र में 0.018, सुजानपुरा क्षेत्र में 0.017 आशियाना कालोनी क्षेत्र में 0.016, एलडीए कालोनी क्षेत्र में 0.015 व लखनउ प्राणि उद्यान क्षेत्र में के भूगर्भीय जल में 0.010 मिलीग्राम प्रति लीटर आर्सेनिक पाये जाने की पुष्टि हुई है।
केन्द्रीय भू-गर्भ जल बोर्ड ने गोमती नदी के पानी में आर्सेनिक होने की पुष्टि की है। यद्य़पि कुछ भूजल वैज्ञानिक, भू-जल में आर्सेनिक की उपस्थिति को नैसर्गिक तत्व मानते हैं मगर वह भी कहते हैं कि स्वीकृत मात्रा 0.01 से अधिक नहीं होना चाहिए। 
प्रदेष एवं लखनऊ में घातक स्थिति- 
(भूगर्भ जल में  आर्सेनिक की मात्रा प्रति लीटर मिली ग्राम में )


प्रदेश के जिले                           लखनऊ के क्षेत्र                             
बहराइच     766 मिग्रा/प्रली       गोमती नगर      0.030
लखीमपुर    350                     विजय नगर       0.023
बलिया      246                       बादशाहनगर      0.022
गाजीपुर      52                       अलीगंज            0.020
गोरखपुर      50                      आशियाना         0.016                               
                                           ट्रांसपोर्टनगर       0.018
                                           एसडीए              0.015
                                           सुजानपुर           0.017
                                           प्राणि उद्यान      0.010
  
आर्सेनिक मिला पानी जब हमारी सेहत के लिए इतना घातक है तो क्या यह हमारी फसलों की सेहत नहीं खराब कर रहा हाोगा, आखिर वही जहर तो हमारी फसलों में भी घुल रहा होगा? हां यह बात जरूर है कि हमारी फसलंे अपनी पीड़ा चिल्ला-चिल्ला कर बयां नही कर सकतीं, वह भगवान भोले नाथ की भाँति वह जहर पी जाती हंै मगर जब तमाम व्यंजनों के रूप में हम इन फसलों के उत्पाद को खाते हैं तो वही जहर हमारी शरीर के अंदर घुलता है और दोहरा जहर भोजन और पानी में मिला हुआ हम ग्रहण कर लेते हैं तो फिर उसका दुष्परिणाम कौन भुगतेगा ?
पानी में जहर घुलने के गुनहगार आप और हम भी हैं, अधिक से अधिक उपज प्राप्त करने की लालच में हम अधाधंुध रासायनिक उर्वरकों एवं कीट नाशकों का प्रयोग कर रहे है वही पानी सिंचाई के जल के साथ रासायनिक जहर के साथ भूगर्भ में समाकर भूजल को जहरीला बना रहा है। बह कर या वर्षा जल के साथ अन्य जल स्रोतांे नदी तालाब में जाकर उनमें भी जहर घोल रहा है। 
तो बन्द करो यह जहर का कारोबार और अपनाओ जैविक खेती की पद्धित जिससे गुणवत्ता युक्त फसलें उपजा कर देश दुनिया को सेहत की सौगात दे सकें। आओ संकल्प लें जहर न तो  उगायेंगे न ही जहर खायेंगे और न ही किसी को जहर खिलाएंगे।


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