लुप्त होती गाँवों की पहचान


ओक्का बोक्का तीन तलोक्का,
फूट गयल बुढ़ऊ क हुक्का।
फगुआ कजरी कहाँ हेरायल,
अब त गांव कगांवचुड़ूक्का।।


नया जमाना नयके लोग,
नया नया कुल फईलल रोग।
एक्के बात समझ में आवै,
जइसन करनी वइसन भोग।।


नई नई कुल फइलल पूजा,
नया नया कुल देवी देवता।
एक्कै घर में पांच ठो चूल्हा,
एक्कै घरे में पांच ठोनेवता।।


नउआ कउआ बार बनउवा,
कवनो घरे न फरसा झऊआ।
लगे पितरपख होय खोजाई,
खोजले मिलें नकुक्कुर कउआ।।


एहर पक्का ओहर पक्का,
जेहर देखा ओहर पक्का।
गांव क माटी महक हेराइल,
अंकल कहा,कहा मतकक्का।।


 


कहाँ गयल कुल बंजर ऊसर,
लगत बा जइसे गांव ईदूसर।
जब से ई धनकुट्टि आइल,
कउनो घरे न ओखरीमूसर।।


कहाँ बैल क घुंघरू घण्टी,
कहाँ बा पुरवट अऊर इनारा।
कहां गइल पनघट क गोरी,
सूना सूना पनघट सारा।।


शहर गांव के घीव खियावै,
दाल शहर से गांव में आवै।
शहरन में महके बिरियानी,
कलुआ खाली धान ओसावै।।


गांव गली में अब त खाली,
राजनीती पर होले चर्चा।
अब ऊ होरहा कहाँ भुजाला,
कहाँ पिसाला नीमक मरचा।।


कबो कबो सोंचीला भाई,
अब ऊ दिन ना लौट केआई।
अब ना वइसे कोयल बोलिहैं,
वइसे ना महकी अमराई।।


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