मसूर की उन्नत किस्में
एच0यू0एल0 57 - यह प्रजाति 120-125 दिन में परिपक्व हो जाती है तथा इसमंे भी जड़ सड़न एवं उकठा रोग से लड़ने की क्षमता है।
के0एल0एस0 218 - यह प्रजाति 120-125 दिन में तैयार हो जाती है।
बडे दाने वाली प्रजातियाँ
पी0एल077-12 (अरूण) - यह प्रभेद 115-120 दिन में परिपक्व हो जाती है रस्ट एवं इकठा रोग से लड़ने की क्षमता होती है।
मसूर की बुवाई की जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ जैसे की पूसा वैभव, आई पी एल८१, नरेन्द्र मसूर 1, पन्त मसूर 5, डी पी एल 15 ,के 75 तथा आई पी एल 406 इत्यादि प्रजातियाँ हैं।
के-75 (मल्लिका) - यह जाति 115-120 दिन में पकती है। इसकी औसत उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका दाना छोटा होता है, जिसके 100 दानों का वजन 2.6 ग्राम है। यह जाति संपूर्ण विंघ्य क्षेत्र अर्थात सीहोर, भोपाल, विदिशा, नरसिंहपुर, सागर, दमोह एवं रायसेन आदि जिलों के लिये उपयुक्त है।
जे.एल.-1 - इस जाति की पकने की अवधि 112-118 दिन है तथा औसत उपज 11-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसका दाना मध्घ्यम आकार का होता है तथा 100 दानों का वजन 2.8 ग्राम होता है। यह जाति भी संपूर्ण विश्घ्व क्षेत्र के लिये उपयुक्त है।
एल-4076 - यह जाति 115-125 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी औसत उपज 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह उकठा रोग निरोधक है। इसका दाना अपेक्षाकृत बड़े आकार का होता है। 100 दानों का वजन 3.0 ग्राम होता है। यह जाति प्रदेश के सभी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है।
जे.एल.-3 - मध्घ्यम अवधि की नई विकसित यह किस्म 110-115 दिन में पकती है तथा 14-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसका दाना मघ्यम आकार का होता है। इसके 100 दानों का वजन लगभग 3.0 ग्राम होता है। यह जाति संपूर्ण विंघ्य क्षेत्र के लिये उपयुक्त है।
आई.पी.एल.-18 (नूरी)- यह किस्म 110-115 दिन में पकती है तथा औसत उत्पादन 12-14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। मघ्यम आकार के दानों वाली इस जाति का वजन 3.0 ग्राम है।
एल. 9-2- देरी से पकने वाली यह किस्म 135-140 दिन में पकती है। इसकी औसत उपज 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके दाने छोटे आकार के होते हैं। यह जाति भिण्ड तथा ग्वालियर क्षेत्रों के लिये अधिक उपयुक्त है।