135 करोड़ आबादी का पेट भरने वाला किसान खुद भूखा हैं’

कृषि  और किसानों के लिए स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें'



भारत को किसानों का देश कहा जाता है और यहाँ की अर्थव्यवस्था की नीव कृषि पर टिकी हुई है यद्यपि भारतीय    कृषि आज भी मानसून का जुआ बनी हुई है. शायद यही कारण है कि देश की 130 करोड़ आबादी का पेट भरने वाला किसान आज खुद ही भूखा है और कर्ज के तले दबा हुआ है. अब तो हालात इतने बिकट हो गये हैं कि एक किसान सार्वजानिक रूप से खुद को किसान बताने से कतराने लगा है.
लन्दन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में डॉक्टर सुरजीत मिश्र ने एक स्टडी की हैयFarmers* Suicides in India] 1995 & 2012:Measurement and interpretationß. इस स्टडी में इन्होने बताया है कि भारत में वर्ष 1995 से 2004 के बीच कुल मिलाकर 1,56,541 किसानों ने आत्महत्या की है. इसका मतलब है कि इस दशक में हर साल लगभग 15,654 किसानों ने आत्महत्या की है.
ज्ञातव्य है कि अशोक दलवाई समिति की रिपोर्ट के मुताबिक अभी भारत के किसान की औसत आय 77,976 रुपये प्रति वर्ष है.  भारत सरकार ने इसे 2022 तक दुगुना करने का लक्ष्य रखा है.
किसानों की समस्याओं के लिए निम्न कारण जिम्मेदार हैं-
1. ऐसा देख गया है कि ज्यादातर वही किसान आत्महत्या करते हैं जो कि नकदी फसलों की खेती करते हैं. चूंकि नकदी फसलों की बुवाई में लागत अधिक आती है इसलिए किसान बैंकों से आसानी से कर्ज ना मिलने के कारण सूदखोरों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन जब फसल ठीक नहीं होती है और लोन चुकाने का दबाव बढ़ता है फिर वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाता है.
2. पुरानी तकनीकी के कारण अधिक लागत आना
3. सिंचाई की सुविधाओं का आभाव होना
4. संस्थागत क्रेडिट की सुविधा ना होना
5.  मंडियों तक पहुँच ठीक नहीं होने के कारण सस्ते दामों पर खाद्यान्न को कम दामों पर बिचैलियों को बेचने पर मजबूर होना.
6. प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कोई भी कारगर उपाय ना होना. यदि फसल बीमा भी कराया जाता है तो वह प्रीमियम तो भर देता है लेकिन मुआवजा नहीं पाता है.
7. कोल्ड स्टोरों की कमी होने के कारण उनको आलू और टमाटर जैसे जल्दी खराब होने वाली फसलें उस समय भी बेचनी पड़तीं हैं जब उनके दाम बाजार में बहुत कम होते हैं.
इतनी बड़ी संख्या में किसानों की आत्महत्या की बढती संख्या को देखते हुए भारत सरकार ने भारत की हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले कृषि वैज्ञानिक श्री डा . स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 18 नवंबर, 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन किया गया था. उन्हीं के नाम पर इस आयोग का नाम स्वामीनाथन आयोग पड़ा है.
स्वामीनाथन आयोग के बारे में रू स्वामीनाथन आयोग ने दिसंबर 2004, अगस्त 2005, दिसंबर 2005 और अप्रैल 2006 में क्रमशः चार रिपोर्ट प्रस्तुत की थीं. पांचवीं और अंतिम रिपोर्ट 4 अक्टूबर, 2006 को प्रस्तुत की गई थी. रिपोर्ट में  कहा गया कि देश को “तेज और अधिक समावेशी विकास” के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए. स्वामीनाथन जी के इसी लक्ष्य को 11वीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य बनाया गया था.
अध्यक्ष दृ एमएस स्वामीनाथन
पूर्णकालिक सदस्य  राम बदन सिंह, श्री वाई.सी. नंदा
अंशकालिक सदस्य  आरएल पिताले , श्री जगदीश प्रधान, चंदा निंबकर, अतुल कुमार अंजन
सदस्य सचिव  अतुल सिन्हा
स्वामीनाथन आयोग को निम्न मुद्दों पर विचार करने के लिए कहा गया था-
1. सभी को सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए एक ऐसी रणनीति बनाना जिससे कि देश में खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढाया जा सके.
2. देश में कृषि की उत्पादकता, लाभप्रदता में वृद्धि करना
3. सभी किसानों के लिए ऋण की उपलब्धता बढ़ाना
4. शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों, पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में किसानों के लिए विशेष कार्यक्रम को तलाशना
5. कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने और लागत को कम करने के उपाय सुझाना ताकि उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके।
6. किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए कोई उपाय सुझाना
आइये अब जानते हैं कि स्वामीनाथन आयोग की सिफरिसें क्या थीं-
1. भूमि सुधार
आजादी से समय से ही देश में भूमि आवंटन असमान रहा है. देश में गरीबी स्तर के 50प्रतिशत लोगों के कुल भूमि आवंटन की केवल 3 प्रतिशत भूमि थी और ऊपर के 10 प्रतिशत अमीरों का देश की 54प्रतिशत भूमि पर हक था.
स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है. रिपोर्ट में कहा गया कि अतिरिक्त और बेकार जमीन को भूमिहीनों में बांटो और आदिवासी क्षेत्रों में पशु चराने का हक दिया जाना चाहिए.
2. सिंचाई सुधार
भारत में कुल बुबाई योग्य भूमि (141.4 मिलियन हेक्टेयर) का केवल करीब 52प्रतिशत भाग अभी भी सिंचाई की व्यवस्था से वंचित है और वर्षा जल पर निर्भर है. पूरे भारत में अभी भी केवल 35 प्रतिशत भूमि ही नियमित सिंचाई की सुविधा रखती है.
आयोग ने सलाह दी थी कि सिंचाई के पानी की उपलब्धता सभी किसानों के पास होनी चाहिए. इसके साथ ही पानी की सप्लाई और वर्षा-जल के संचय पर भी जोर दिया गया था. आयोग ने पानी के स्तर को सुधारने पर जोर देने के साथ ही 'कुआं शोध कार्यक्रम' शुरू करने की बात भी कही थी. इसके अलावा “मिलियन वेल्स रिचार्ज स्कीम” को प्राइवेट क्षेत्र के माध्यम से विकसित करने की बात आयोग ने की थी.
3. कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर जोर
भारत में कृषि उत्पादों की प्रति हेक्टेयर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है. यदि धान  का ही उदाहरण लें. भारत में धान का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2929 किलोध् हेक्टेयर है लेकिन जापान में 6414, चीन में 6321 और दक्षिण अफ्रीका में 662 किलोध् हेक्टेयर है.
आयोग ने कहा कि कृषि क्षेत्र में अनुसन्धान और विकास पर ज्यादा ध्यान देने के जरूरत है. इसके साथ ही आयोग ने कहा था कि कृषि से जुड़े सभी कामों में 'जन सहभागिता' की जरूरत होगी, चाहे वह सिंचाई हो, जल-निकासी हो, भूमि सुधार हो, जल संरक्षण हो या फिर सड़कों और कनेक्टिविटी को बढ़ाने के साथ शोध से जुड़े काम हों.
4. किसानों के लिए सस्ता कर्ज
यह किसान को आत्महत्या के लिए मजबूर करने वाले सबसे बड़े कारणों में से एक है. इसलिए सरकार को किसानों को समय पर जरुरत के हिसाब से ऋण देने की सुविधाओं का विकास करना होगा. आयोग ने कहा किय
 फसल ऋण के लिए 4 प्रतिशत की आसान दर पर ऋण की सुविधा उपलब्ध करानी होगी. कृषि ऋण को गरीब और जरुरत मंद तक पहुँच सुनिश्चित करना होगा.
इ. इसके अलावा लगातार प्राकृतिक आपदाओं के बाद किसानों को राहत प्रदान करने के लिए कृषि जोखिम कोष स्थापित करें.
ब. आपदाओं के दौरान किसानों को ऋण बसूली में छूट और सरकार की ओर से ऋण पर ब्याज की छूट की सुविधा देनी होगी.
5. किसानों की आत्महत्या की रोकथाम
किसानों की आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए उन्हें किफायती स्वास्थ्य बीमा प्रदान करें और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर सुविधाओं को ठीक करें, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को प्राथमिकता के आधार पर उन इलाकों में और सक्रीय रूप से लागू करें जिन इलाकों में किसान आत्महत्या की घटनाएँ ज्यादा हो रहीं हैं.
किसानों की समस्याओं को ठीक से समझने के लिए राज्य स्तरीय किसान आयोग की स्थापना करें जिनमें किसानों के भी शामिल हों.
इ. किसानों को कृषि के अलावा अन्य साधनों जैसे पशुपालन इत्यादि के द्वारा धनार्जन के लिए प्रेरित करना होगा.
ब. वृद्धावस्था पेंशन और स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान ठीक से लागू किये जाएँ ताकि किसानों में सामाजिक असुरक्षा की भावना पैदा ना हो.
6. जैव संसाधनों को विकसित करना
भारत में ग्रामीण लोग अपने पोषण और आजीविका सुरक्षा के लिए जैव संसाधनों की एक विस्तृत श्रृंखला पर निर्भर करते हैं. इसलिए आयोग ने इस दिशा में सुधार करने की आवश्यकता पर बल देने का सुझाव दिया था.आयोग ने सुझाया किय
जैव विविधता तक पहुंच के पारंपरिक अधिकारों को संरक्षित करना, जिसमें गैर-लकड़ी के वन उत्पादों तक पहुंच शामिल है जिनमें औषधीय पौधों, तेल पैदा करने वाले पौधे और लाभकारी सूक्ष्म जीव शामिल हैं.
ब्रीडिंग के माध्यम से खेती के लिए उन्नत जानवर पैदा करना साथ ही मछली पालन और मधुमक्खी पालन जैसी कृषि सम्बंधित क्रियाओं को बढ़ावा देना.
7. फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के कार्यान्वयन में सुधार. धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों के लिए एमएसपी की व्यवस्था की जानी चाहिए.  इसके अलावा, पीडीएस में बाजरा और अन्य पौष्टिक अनाज स्थायी रूप से शामिल किए जाने चाहिए. फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उसकी उत्पादन लागत से कम से कम 50 प्रतिशत  अधिक होना चाहिए.
इस प्रकार ऊपर दिए गए 7 बिन्दुओं से स्पष्ट हो जाता है कि स्वामीनाथन कमीशन ने किसानों की हर तरह की समस्या का समाधान करने के लिए अपने सुझाव दिए थे. कुछ सुझाओं को सरकार द्वारा लागू भी कर दिया गया था. किसानों की समस्याएं राजनीतिक दलों को उतनी खास नहीं लगती हैं जितनी कि लगनी चाहिए. इसलिए राजनीतिक इच्छाशक्ति के आभाव में इन सभी सिफारिसों को लागू नहीं किया गया है और किसान राजधानी में सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए घूम रहे हैं. इस बात की संभावना भी कम दी दिखाई देती है कि सरकार इनके कल्याण के लिए कुछ जरूरी कदम उठाएगी.


 


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