नागरिकता (संशोधन) बिल 2019 हैं क्या ?
1. आखिर नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 है क्या ?
अविभाजित भारत में रहने वाले लाखों लोग अलग धर्म को मानते हुए आजादी के वक्त से साल 1947 से पाकिस्तान और बांग्लादेश में रह रहे थे. इसके साथ ही अफगानिस्तान भी मुस्लिम राष्ट्र है और इन देशों में हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के बहुत से लोग धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलते हैं. नागरिकता कानून 1955 के अनुसार, किसी अवैध अप्रवासी नागरिक को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती. सरकार ने इस कानून में संशोधन के जरिये अब नागरिकता कानून 2019 के हिसाब से अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता आसानी से देने का फैसला किया है.
2. सरकार का तर्क
भारत के तीनों पड़ोसी देशों में हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदायों के बहुत से लोग धार्मिक आधार पर उत्पीड़न झेलते हैं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान का संविधान उन्हें विशिष्ट धार्मिक राज्य बनाता है. इनमें से बहुत से लोग रोजमर्रा के जीवन में सरकारी उत्पीड़न से डरते हैं. इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों को अपनी धार्मिक पद्धति, उसके पालन और आस्था रखने में बाधा आती है. इनमें से बहुत से लोग भारत में शरण के लिए आए और वे अब यहीं रहना चाहते हैं. इन लोगों के वीजा या पासपोर्ट की अवधि भी समाप्त हो चुकी है. कुछ लोगों के पास कोई दस्तावेज नहीं है, लेकिन अगर वे भारत को अपना देश मानकर यहां रहना चाहते हैं तो सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है.
3. विपक्षियों का तर्क
विपक्षी दलों का कहना है कि विधेयक मुसलमानों के साथ भेदभाव करता है, जिन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है. इस हिसाब से यह संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है. केंद्र सरकार ने कहा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मुस्लिम राष्ट्र हैं, वहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इस वजह से उन्हें धर्म के आधार पर उत्पीड़न का शिकार नहीं माना जा सकता. केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि सरकार दूसरे समुदायों की प्रार्थना पत्रों पर अलग-अलग मामले में गौर करेगी
4 नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 खासियत
नागरिकता संशोधन कानून अपनी प्रारंभिक अवस्था में जनवरी 2019 में पास हुआ था. इसमें छह गैर मुस्लिम समुदाय हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए भारतीय नागरिकता मांगी गई थी. इसमें भारत की नागरिकता पाने के लिए भारत में कम से कम 12 साल रहने की आवश्यक शर्त को कम करके सात साल कर दिया गया. यदि भारत की नागरिकता चाहने वाले व्यक्ति के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं है तब भी उसे नागरिकता दी जा सकती है. इस विधेयक को संयुक्त संसदीय कमेटी के पास भेजा गया था, हालांकि यह बिल पास नहीं हो सका क्योंकि यह राज्यसभा में गिर गया था
5. देश में विरोध क्यों?
नागरिकता कानून के तहत बांग्लादेश, अफगानिस्तान, पाकिस्तान से आए हिंदू-जैन-बौद्ध-ईसाई-पारसी-सिख शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलना आसान होगा, लेकिन पूर्वोत्तर के राज्य इसका विरोध कर रहे हैं. दरअसल, पूर्वोत्तर के कई राज्यों का कहना है कि अभी भी बड़ी संख्या में उनके राज्य या इलाके में इस समुदाय के लोग ठहरे हुए हैं, अगर अब उन्हें नागरिकता मिलती है तो वह स्थाई हो जाएंगे. इससे उनकी संस्कृति, भाषा, खानपान और अन्य पहचान को खतरा पैदा हो जायेगा. पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों/राज्यों को केंद्र सरकार ने इनर लाइन परमिट में रखा है, जिसके कारण नागरिकता कानून वहां लागू नहीं होता. इनमें मणिपुर, अरुणाचल, मेघालय के कुछ हिस्सें शामिल हैं.