सोमा की कथा और सोमवती अमावस्या का महात्म्य

प्रस्तुति -बृज किशोर पाठक
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या सोमवती अमावस्या कहलाती है। प्रत्येक मास में एक अमावस्या आती है और प्रत्येक सात दिन बाद एक सोमवार आता है। परन्तु ऐसा बहुत ही कम संयोग होता है जब अमावस्या सोमवार के दिन हो। वर्ष में अनेक बार सोमवती अमावस्या आती रहती है।
महत्त्व- सोमवती अमावस्या स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस पर्व पर देष की समस्त पुण्य सलिला नदियों में स्नान करने लोग दूर-दूर से आते हैं। खासतौर से कुम्भ काल की सोमवती अमावस्या को सम्बन्धित तीर्थ स्थलो पर सोमवती अमावस्या के पर्व पर स्नान विषेश पुण्य प्रदायक माना जाता है।
हमारे धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है, पाण्डव पूरे जीवन पर्यन्त तरसते रहे, परन्तु उनके सम्पूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई।
किसी भी मास की अमावस्या यदि सोमवार को हो तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाएगा।
इस दिन यमुनादि नदियों, मथुरा आदि तीर्थों में स्नान, गौदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है। इस दिन गङ्गा स्नान का भी विशिष्ट महत्त्व है। यही कारण है कि गङ्गाजी  और अन्य पवित्र नदियों के तटों पर इतने श्रद्धालु एकत्रित हो जाते हैं कि वहाँ मेले ही लग जाते हैं। सोमवती अमावस्या को गङ्गाजी तथा अन्य पवित्र नदियों में स्नान पहले तो एक धार्मिक उत्सव का रूप ले लेता था।
निर्णय सिन्धु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्र गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह स्त्रियों का प्रमुख व्रत है।
सोमवार चन्द्रमा का दिन हैं। इस दिन (प्रत्येक अमावस्या को) सूर्य तथा चन्द्रमा एक सीध में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है।
सोमवार भगवान् शिवजी का दिन माना जाता है और सोमवती अमावस्या तो पूर्णरूपेण शिव जी को समर्पित होती है।
इस दिन यदि  गङ्गाजी जाना सम्भव न हो तो प्रातरूकाल किसी नदी या सरोवर आदि में स्नान करके भगवान् शंकरजी, पार्वती और तुलसीजी की भक्तिपूर्वक पूजा करें। फिर पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा करें और प्रत्येक परिक्रमा में कोई वस्तु चढ़ाएँ, प्रदक्षिणा के समय 108 फल अलग रखकर समापन के समय वे सभी वस्तुएँ ब्राह्मणों और निर्धनों को दान करें।
सोमवती अमावस्या की कथा ?
जब युद्ध के मैदान में सारे कौरव वंश का सर्वनाश हो गया, भीष्मपितामह शर-शैय्या पर पड़े हुए थे। उस समय युधिष्ठिर भीष्मपितामह जी से पश्चाताप करने लगे, धर्मराज कहने लगे---हे पितामह! दुर्योधन की बुरी सलाह पर एवं हठ से भीम और अर्जुन के कोप से सारे कुरू वंश का नाश हो गया है। वंश का नाश देखकर मेरे हृदय में दिन-रात संताप रहता है। हे पितामह! अब आप ही बताइये कि मैं क्या करू, कहाँ जाऊँ, जिससे हमें शीघ्र ही चिरंजीवी संतति प्राप्त हो। पितामह कहने लगे-हे! राजन् धर्मराज मैं तुम्हें व्रतों में शिरोमणि व्रत बतलाता हूँ जिसके करने एवं स्नान करने मात्र से चिरंजीवी संतान एवं मुक्ति प्राप्त होगी। वह है सोमवती अमावस्या का व्रत-हे राजन्! यह व्रतराज (सोमवती अमावस्या का व्रत) तुम उत्तरा से अवश्य कराओ जिससे तीनों लोकों में यश फैलानेवाला पुत्र रत्न प्राप्त होगा। धर्मराज ने कहा-कृपया पितामह इस व्रतराज के बारे में विस्तार से बताइये ये सोमवती कौन है ? और इस व्रत को किसने शुरू किया। 
भीष्म जी ने कहा-हे पुत्र ! काँची नाम की महापुरी है, वहाँ महापराक्रमी रत्नसेन नाम का राजा राज्य करता था। उसके राज्य में देवस्वामी नामक ब्राह्मण निवास करता था ? उसके सात पुत्र एवं गुणवती नाम की कन्या थी। एक दिन ब्राह्मण भिक्षुक भिक्षा माँगने आया। उसकी सातो बहुओं ने अलग-अलग भिक्षा दी और सौभाग्यवती का आर्शीवाद पाया। अंत में गुणवती ने भिक्षा दी। भिक्षुक ब्राह्मण ने उसे धर्मवती होने का आर्शीवाद दिया और कहा-यह कन्या विवाह के समय सप्तपदी के बीच ही विधवा हो जायेगी इसलिए इसे धर्माचरण ही करना चाहिए। गुणवती की माँ धनवती ने गिड़गिड़ाते दीन स्वर में कहा-हे ब्राह्मण ! हमारी पुत्री के वैधव्य मिटाने का उपाय कहिए। तब वह भिक्षुक कहने लगा-हे पुत्री ! यदि तेरे घर सौमा आ जाए तो उसके पूजन मात्र से ही तेरी पुत्री का वैधव्य मिट सकता है। गुणवती की माँ ने कहा कि पण्डित जी यह सौमा कौन है ? कहाँ निवास करती है, क्या करती है, विस्तार से बताइये। भिक्षुक कहने लगा-भारतवर्ष के दक्षिण में समुद्र के बीच एक द्वीप है जिसका नाम सिंहल द्वीप है। वहाँ पर एक कीर्तिमान धोबी निवास करता है। उस धोबी के यहाँ सौमा नाम की स्त्री है, वह तीनों लोकों में अपने सत्य के कारण पतिव्रत धर्म से प्रकाश करने वाली सती है। उसके सामने भगवान् एवं यमराज को भी झुकना पड़ता है जो जीव उसकी शरण में जाता है तो उसका क्षणमात्र में ही उद्धार हो जाता है। सारे दुष्कर्मों, पापों का विनाश हो जाता है, अथाह सुख वैभव की प्राप्ति हो जाती है। तुम उसे अपने घर ले आओ तो आपकी बेटी का वैधव्य मिट जाएगा।
देवस्वामी के सबसे छोटे पुत्र शिवस्वामी अपनी बहिन को साथ लेकर सिंघल द्वीप को गया। रास्ते में समुद्र के समीप रात्रि में गृद्धराज के यहाँ विश्राम किया। सुबह होते ही उस गृद्धराज ने उन्हें सिंघलद्वीप पहुँचा दिया और वे सौमा के घर के समीप ही ठहर गये। इसके बाद वह दोनों भाई बहिन प्रातरू काल के समय उस धोबी की पत्नी सोमा के घर के चैक को साफ कर उसे प्रतिदिन लीप-पोतकर सुन्दर बनाते थे, और उसकी देहली पर प्रतिदिन आटे का चैक पूरकर अरहैन डाला करते थे। उसी समय से आज भी देहरी पर अरहैन डालने की प्रथा चली आ रही है। इस प्रकार इसे करते- करते उन्हें वहाँ एक साल बीत गया। इस प्रकार की स्वच्छता को देखकर सोमा ने विस्मित होकर अपने पुत्रों एवं पुत्रवधुओं से पूछा कि यहाँ कौन झाडू लगाकर लीपा-पोती करता है कौन अरहैन डालता है, मुझे बताओ उन्होंने कहा हमें नहीं मालुम और न ही हमने किया है तब एक दिन उस धोबिन ने रात में छिपकर पता किया तो ज्ञात हुआ कि एक लड़की आँगन में झाडू लगा रही है और एक लड़का उसे लीप रहा है। सोमा ने उन दोनों को पूछा तुम कौन हो तो उन्होंने कहा हम दोनों भाई- बहिन ब्राह्मण हैं। सोमा ने कहा तुम्हारे इस कार्य से मैं जल गई, मैं बर्बाद हो गयी इस पाप से मेरी जाने क्या दशा होगी हे विप्र ! मैं धोबिन हूँ आप ब्राह्मण हैं फिर आप यह विपरीत कार्य क्यों कर रहे हो। शिवस्वामी ने कहा-यह गुणवती मेरी बहिन है इसके विवाह के समय सप्तवदी के बीच वैधव्य योग पड़ा है। आपके पास रहने से वैधव्य योग का नाश हो सकता है। इसलिए हम यह दास कर्म कर रहे हैं। सोमा ने कहा-अब आगे से ऐसा मत करना मैं तुम्हारे साथ चलूँगी। 
सोमा ने अपनी वधुओं से कहा मैं इनके साथ जा रही हूँ यदि मेरे राज्य में मेरा व्यक्ति मर जाए जबतक मैं लौटकर न आ जाऊँ तबतक उसका क्रिया-कर्म मत करना और उसके शरीर को सुरक्षित रखना किसी के कहने पर जला मत देना। ऐसा कहकर दोनों को लेकर समुद्र मार्ग से होकर काँचीनगरी में पहुँच गयी। सोमा को देखकर धनवती ने प्रसन्न हो उसकी पूजा-अर्चना की सोमा ने अपनी मौजूदगी में गुणवती का विवाह रुद्रशर्मा के साथ सम्पन्न करा दिया फिर वैवाहिक मंत्रों के साथ हवन करवा दिया। उसके बाद सप्तसदी के बीचरुद्र शर्मा की मृत्यु हो गयी अर्दना बहिन को विधवा जानकर सारे घरवाले रोने लगे किन्तु सोमा शान्त रही। सोमा ने अति विलाप देखकर अपना व्रतराज सत्य समझाया और व्रतराज के प्रभाव से होनेवाला मृत्यु विनाशक पुष्प विधि पूर्वक संकल्प करके दे दिया। रुद्र शर्मा व्रतराज के प्रभाव से शीघ्र जीवित हो गया। उसी बीच उस सोमा के घर में पहले उसके लड़के मरे फिर उसका पति मरा फिर उसका जमाता भी मर गया। सोमा ने अपने सत्य से सारी स्थिति जान ली वह घर चलने लगी। उस दिन सोमवार का दिन था अमावस्या की तिथि भी थी, रास्ते में सोमा ने नदी के किनारे स्थित एक पीपल के पेड़ के पास जाकर नदी में स्नान किया और विष्णु भगवान् की पूजा करके शक्कर हाथ में लेकर 108 प्रदाक्षिणाऐं पूरी की। भीष्म जी बोले जब सोमा ने हाथ में शक्कर लेकर 108वीं प्रदक्षणा पूरी की तभी उसके पति जमाता और पुत्र  सभी जीवित हो गये और वह नगर लक्ष्मी से परिपूर्ण हो गया। विशेषकर उसका घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। चारो ओर हर्षोल्लास छा गया। भीष्म जी कहने लगे-हमने यह वृतराज का फल विस्तार से कह सुनाया।
यदि सोमवार युक्त अमावस्या अर्थात् सोमवती अमावस्या हो तो पुण्यकाल देवताओं को भी दुर्लभ है। तुम भी यह व्रत धारण करो तुम्हारा कल्याण हो जाएगा। हे अर्जुन ! कलियुग में जो सतियाँ सोमवती के चरित्र का अनुशरण करेंगी, सोमवती के गुणों का गुणगान करेंगी, वे संसार में सुयश प्राप्त करेंगी। जो व्यक्ति सोम के आदर्शो का अनुसरण करेगा, धोबियों को धन देगा, सोमवती अमावस्या के दिन व्रतराज के समय धोबियों को यथा दक्षिणा देगा तथा भोजन करायेगा, धोबी के बालक-बालिकाओं को पुस्तक दान करेगा, वह सदा अमरता को प्राप्त करेगा। विवाह के समय कोई भी वर्ग की कन्या की माँग में सिन्दूर धोबी की सुहागिन स्त्री से भरवायेगा उसको स्वर्ण या रत्न दान करेगा तो उसकी कन्या का सुहाग दीर्घायु होता है तथा वैधव्य योग का प्रभाव नष्ट हो जाता है, जो धोबी की कन्याओं का अपमान करेगा चाहे वह ब्राह्मण ही क्यों न हो जन्म-जन्म तक नरक में पड़ा रहेगा। जब उस ब्राह्मण ने अद्भुत चमत्कार देखा तो वह सोमा के चरणों में गिर गया धूप, दीप, पुष्प, कपूर से आरती की विभिन्न प्रकार से पूजा-अर्चना की बार-बार जगत् पूज्य, सर्वशक्तिमान हो युगों-युगों तक आपकी पूजा यह ब्राह्मण वंश करेगा जो उपकार आपने किया है वह भुलाने योग्य नहीं है आपके साथ-साथ आपके वंश की जो सतियाँ आपके चरित्र का अनुसरण करेंगी उसकी आपकी ही भाँति युगों-युगों तक पूजा होगी।


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