स्प्रिंकलर सिंचाई प्रदेश में किसानों के लिएवरदान


कृषि उद्योग एवं पेयजल आपूर्ति हेतु विभिन्न आवश्यकताओं के लिए पानी की उपयोगिता बढ़ गई है। पानी को व्यवस्थित ढंग से उपयोग न करने पर जल स्तर में गिरावट भी आ रही है। निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या और जल स्रोतों  के असीमित दोहन से जल की आवश्यकता बढ़ी है। ऐसी स्थिति में जल संसाधनों को सुव्यवस्थित एवं विवेकपूर्ण उपयोग से कृषि के लिए टिकाऊपन  लाने के लिए सरकार ने ठोस कदम उठाये हैं। जल का सीमित उपयोग करके किसान अधिक क्षेत्र में फसलें बोकर अधिक उत्पादन ले सकते हैं। प्रदेश में केन्द्रीय सरकार की प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत स्प्रिंकलर पद्धति (फौव्वारा पद्धति) से फसलों की सिंचाई डार्क, सेमी डार्क क्षेत्रों के किसानों के लिए बड़ी ही उपयोगी सिद्ध हो रही है।

किसानों को अपनी फसल की सिंचाई के लिए नहर, नलकूप, तालाब, कुएं  झील, नदियों आदि के पानी का उपयोग किया जाता है। किन्तु सिंचाई की इन विभिन्न विधियों में स्प्रिंकलर पद्धति एक ऐसी पद्धति है, जिसे अपनाकर जल प्रबन्धन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा रहा है। यह पद्धति सिंचाई की उन्नत और आधुनिक पद्धति है। इस पद्धति से सिंचाई क्यारियों में न करके पाइपों एवं नोजलो के माध्यम से वर्षा के रुप में की जाती है। फौव्वारा पद्धति में प्लास्टिक अथवा अल्युमिनियम पाइपों को खेत में जाल की तरह बिछाकर ऊँचे-नीचे, रेतीले, पहाड़ी व पथरीली किसी भी प्रकार की जमीन पर सहजता से सिंचाई की जा सकती है। यह पद्धति जल संरक्षण के साथ-साथ मृदा अपरदन रोकने तथा भू-संरक्षण में भी सहायक होती है। क्योंकि इस विधि से सिंचाई करते समय जल बाहर नहीं जाता है। बोई गई फसल और भूमि की नमी बरकरार रहती है।

फौव्वारा पद्धति से सिंचाई करने पर क्यारियों के माध्यम से की गई सिंचाई की अपेक्षा 30 से 50 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। इस बचे हुए पानी से किसान अपनी फसल के क्षेत्र को बढ़ा सकते हैं। भूमिगत जल स्तर को सुदृढ़ करने में भी यह विधि सहायक है। सतही विधि से सिंचाई करने पर छोटे-छोटे मेड़ बनाने में लगनेे वाले श्रम, व्यर्थ समय व जमीन को भी बचाया जा सकता है। इस विधि से सिंचाई करने पर पानी पौधों के पास जड़ों में ही रहता है, बाहर नहीं जाता है। इससे फसल सघनता में वृद्धि तथा उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होता है। फसल को अत्यधिक गर्मी व पाले से बचाव भी होता है। फौव्वारा पद्धति के संयन्त्र में मुख्यतः पाइप, नोजल, राइजर, कपलर, फुटबटन एवं एन्ड प्लग मुख्य अवयव होते हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लिए उन्हें हर स्तर पर सहायता दे रही है। सरकार द्वारा स्प्रिंकलर पद्धति से सिंचाई करने के लिए स्प्रिंकलर सेट क्रय हेतु लघु एवं सीमान्त किसानों को 90 प्रतिशत तथा सामान्य किसानों को 80 प्रतिशत अनुदान दे रही है। प्रदेश के किसानों द्वारा सरकार की इस नीति का लाभ लिया जा रहा है और वे सिंचाई की इस पद्धति को अपनाकर अपनी फसल उत्पादन में बढ़ोत्तरी तथा जल प्रबंधन में सहयोग दे रहे हैं। प्रदेश सरकार इस वर्ष भी प्रदेश के किसानों को 20871 स्प्रिंकलर सेट वितरित कर रही है। किसानों के लिए लाभकारी इस पद्धति से सतही सिंचाई में लगी लागत की अपेक्षा हजारों रुपयों की बचत हो रही है और किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।

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