वर्ष में 6 फसलें औद्यानिक तकनीकी से ली जा सकती है
नवीनतम तकनीकी को जैविक खेती में समायोजित करके स्वास्थ्य वर्धक फसल उत्पादन संभव बनाने के लिए प्रयासों पर आयोजित सम्मेलन में प्रस्तुतियां दी जा रही हैं । देश में घटते पशुपालन में आकर्षण को ध्यान में रखते हुए कृषि में गोबर की खाद और गाय के गोबर और मूत्र के महत्त्व पर विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किये गए । सम्मलेन की संस्तुतियों को सीधे किसानों तक पहुँचाने हेतु वैज्ञानिको के साथ साथ जिला उद्यान अधिकारीयों और कृषि विज्ञान केंद्रों में कार्यरत वैज्ञानिकों और विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की भागीदारी सुनिश्चित की गयी है । देश के अनेक प्रांतों में प्रचलित औद्यानिक तकनीकियों पर प्रस्तुतियां विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र है । समेकित औद्यानिक तकनीकी और जैविक खेती के माध्यम से किसान एक ही खेत में वर्ष में 6 फसलें ले सकते हैं । इसके लिए विभिन्न फल, सब्जी और पुष्प फसलों के समायोजन अन्तः सशयन द्वारा किया जा सकता है । शहरी सामान्य जनों द्वारा पक्के मकानों में भी बागवानी फसलों के उत्पादन की तकनीकी विकसित हो चुकी है । फसल सुरक्षा हेतु कीट एवं फफूंदी नाशकों के अधिक प्रयोग को रोकने के लिए इनके दुष्प्रभावों पर चर्चा की गयी । वैज्ञानिकों का मत है कि अधिक रसायन प्रयोग से मित्र जीवों का नाश होता है, और शत्रु जीवों पर भी रसायनों का प्रभाव कम होता है । अतः फसल की महत्वपूर्ण अवस्थाओं में रोग या कीट का अधिक प्रकोप होने पर ही रसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिए ।