अंगूर की फसल में कीट-रोग नियंत्रण
रोग-
उत्तरी भारत में अंगूर की बेलों पर बरसात के आरम्भ होते ही विशेषकर एन्थेक्नोज, सफेद चूर्णिल रोग तथा सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा बीमारियों को प्रकोप होता है। एन्थेक्नोज का आक्रमण बरसात व गर्मी (जून से जुलाई) के साथ-साथ आरम्भ हो जाता है तथा यह बहुत तेजी से फैलता है। इससे पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं, जो बीच में दबे होते हैं।
धब्बे फैलकर टहनियों पर आ जाते हैं। सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा के धब्बे गोल और इनका रंग सिरों पर लाल-भूरा व बीच में तूडें जैसा होता है। एन्ट्रेक्नोज एवं सरकोस्पोरा के आक्रमण से पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं और टहनियां भी पूरी तरह से सूख जाती हैं। कभी-कभी तो पूरी बेल ही सूख जाती है।
नियंत्रण-
एन्थेक्नोज एवं सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा की बीमारियों की रोकथाम के लिए ब्लाईटाक्स या फाइटालोन का 0.3 प्रतिशत का छिड़काव अर्थात 750 ग्राम 250 लीटर पानी में प्रति एकड़ की मात्रा से एक बार जून के अन्तिम सप्ताह में करें और 15 दिनों के अन्तराल पर सितम्बर तक करते रहें।
एन्थेक्नोज हेतु कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.2 प्रतिशत) या बाविस्टीन (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव करें। बादल छाये रहने पर 7 से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव जरूरी है।
सफेद चूर्णिल रोग शुष्क जलवायु में देखा जाता है। इसके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत घुलनशील गंधक या 0.1 प्रतिशत कैराथेन या 3 ग्राम प्रति लीटर पानी बाविस्टीन का छिड़काव दो बार 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।
कीट -
पत्ते खाने वाली चैफर बीटल अंगूर की बेलों को हानि पहुंचाने वाले कीटों में सबसे अधिक खतरनाक है। चैफर बीटल दिन के समय छिपी रहती है तथा रात में पत्तियां खाकर छलनी कर देती है। बालों वाली सुंडियां मुख्यतरू नई बेलों की पत्तियों को ही खाती हैं। इनके साथ-साथ स्केल कीट, जो सफेद रंग का बहुत छोटा एवं पतला कीड़ा होता है, टहनियों शाखाओं तथा तने पर चिपका रहता है और रस चूसकर बेलों को बिलकुल सुखा देता हैद्य इनके अतिरिक्त एक बहुत छोटा कीट थ्रिप्स है, जोकि पत्तियों की निचली सतह पर रहता है। थ्रिप्स पत्तियों का रस चूसता है। इससे पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं और वे पीली पड़कर गिर जाती हैं।
नियंत्रण-
उपरोक्त कीटों के प्रकोप से बेलों को बचाने के लिए बी एच सी (10 प्रतिशत) का धूड़ा 38 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अथवा फोलिथियोन या मैलाथियोन या डायाजिनान का 0.05 प्रतिशत से 0.1 प्रतिशत का छिड़काव जून के अन्तिम सप्ताह में करना चाहिए और बाद में छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर जुलाई से सितम्बर तक करते रहें। इसके अतिरिक्त स्केल कीट के प्रकोप से बेलों को बचाने के लिए छंटाई करने के तुरन्त बाद 0.1 प्रतिशत वाले डायाजिनान का एक छिड़काव करना आवश्यक है।
अन्य नाशीजीव अंगूर में पत्ती लपेटक इल्लियां काफी नुकसान पहुंचाती है। इसके नियंत्रण हेतु 2 मिलीलीटर मैलाथियान या डाइमेथोएट प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। दीमक से बचने के लिए 15 से 20 दिन के अंतराल पर 5 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफोस घोल से सिंचाई करके बेलों को बचाया जा सकता है।