जायद उर्द की फसल सुरक्षा


जायद उर्द की पौध रक्षा
ग्रीष्म कालीन उरद में थ्रिप्स व श्वेत मक्खी का प्रकोप ज्यादा होता है। इन्हें मारने के लिए मोनोक्रोटोफास 0.04 प्रतिशत व मेटासिस्टाक्स 0.05 प्रतिशत (2 एम0एल0 1 लीटर) पानी में घोल का छिड़काव करें।
पिस्सू भृग (गैलेसिड भृग)- यह कीट सुबह के समय नये पौधों की पत्तियों पर छेद बनाते हुए उन्हें खाता है और दिन में मिटटी की दरारों में छिप जाता है। वर्षा ऋतु में इस कीट का गुबरैला जड की गाँठों में सुराग कर जड़ों में घुस जाता है एवं इनको पूरी तरह खोखला कर देता हैद्य इस कीट के द्वारा जड की गाँठों के नष्ट होने पर उड़द के उत्पादन में 60 प्रतिशत तक हानि देखी गई है। यह मूंग मोजेक विषाणु रोग का भी वाहक हैं
रोकथाम- मोनोक्रोटोफॉस 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज या डाईसल्फोटॉन 5 जी, 40 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज के हिसाब से बीजो को उपचारित करें। फोरेट 10 जी की 10 किलोग्राम या डाईसल्फोटॉन 5 जी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।
पत्ती मोड़क कीट- इल्लियां पत्तियों को ऊपरी सिरे से मध्य भाग की ओर मोड़ती है।
 यही इल्लियां कई पत्तियों को चिपका कर जाला भी बनाती हैद्य इल्लियां इन्हीं मुड़े भागों के अन्दर रहकर पत्तियों के हरे पदार्थ क्लोरोफिल को खा जाती हैं। जिससे पत्तियां पीली सफेद पड़ने लगती है।
रोकथाम- क्विनालफॉस दवा की 30 मिलीलीटर मात्रा 15 लीटर पानी की दर से छिडकाव करें, आवश्यकता होने पर दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव से 15 दिन बाद करें।
एफिड- निम्फ और व्यस्क कीट बडी संख्या में पौधो की पत्तियों, तनों, कली एवं फूल पर लिपटे रहते है और फूलों का रस चूसकर पौधों को हानि पहुँचाते हैं।
नियंत्रण- फसल को डायमिथिएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल कर छिड़काव करें।
सफेद मक्खी- दोनो ही पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते रहते हैंद्य जिससे पौधे कमजोर होकर सूखने लगते हैंद्य यह कीट अपनी लार से विषाणु पौधों पर पहुंचाता है और यलो मौजेक नामक बीमारी फैलाने का कार्य करते हैं।
नियंत्रण- पीले रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देंद्य फसल में डायमिथिएट 30 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोल कर छिड़काव करें।
रोग और रोकथाम 
पीला चित्ती रोग
1. पीला चित्तेरी रोग में सफेद मक्खी के रोकथाम हेतु आक्सीडेमाटान मेथाइल 0.1 प्रतिशत या डाइमिथिएट 0.2 प्रतिशत प्रति हेक्टयर 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी और सल्फेक्स 3 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करके रोग का प्रकोप कम किया जा सकता है।
2. रोगरोधी किस्में जैसे- पंत उर्द- 19, पंत उर्द- 30, पी डी एम- 1 (वसंत ऋतु), यू जी- 218, पी एस- 1, आई पी यू- 94-1 (उत्तरा ) नरेन्द्र उर्द- 1, उजाला, प्रताप उर्द- 1, शेखर- 3 (के यू- 309) इत्यादि उगाएं।
झुर्सदार पत्ती रोग, मौजेक मोटल, पर्ण कुंचन
1. रोकथाम हेतु इमिडाक्लारोप्रिड 70 डब्लू एस 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करें।


2. डाईमिथिएट 30 ई सी, 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव रोगवाहक की रोकथाम के लिये करना चाहिए।
रूक्ष रोग, मैक्रोफोमिना ब्लाइट तथा चारकोल विगलन
1. बीजो को बुवाई पूर्व थायरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की डॉ से उपचार करना चाहिए।
2. कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव रोगों के लक्षण दिखते ही करना चाहिए और आवश्यकतानुसार दो छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करने चाहिए।
चूर्णी कवक
1. फसल पर घुलनशील गंधक 80 डब्ल यू पी, 3 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू पी, 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करेंद्य
2. रोगरोधी किस्में जैसे- सी ओ बी जी-10, एल बी जी- 648, एल बी जी- 17, प्रभा, आई पी यू- 02-43, ए के यू- 15 और यू जी- 301 उगानी चाहिए।


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