प्याज की फसल में कीट  रोग प्रबन्धन एवं भंडारण


पौध गलन रोग- इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत थीरम से बीज का उपचार करना चाहिए, 2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करें ।
पर्पल लीफ ब्लोच-


फसल में इस रोग की रोकथाम के लिए 2 किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराइड का प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए, साथ में 3 ग्राम एंडोसल्फान प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करें।
जड़ सडन रोग-


इसके लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करे उसके साथ साथ रोपाई के समय 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लिटर पानी में पौध को उपचारित करें ।
अंगमारी-


पत्तियों पर सफेद धब्बे बाद में पीले पड़ जाते है। इसकी रोकथाम के लिए मेन्कोजेब या जाइनेब 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
तुलासिता- 


पत्तियों के निचले हिस्सों में सफेद रुई जैसे फफूद लगना- इसके रोकथाम के लिए 2 ग्राम मेन्कोजेब या जाइनेब प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिएं।
पर्ण जीव (थ्रिप्स)-


ये किट छोटे छोटे आकर के होते है, और ये किट तापमान वृद्धि के साथ तेजी से बढ़ते है। इन कीटो द्वारा पत्तियों का रस चूसने से पत्तियों का रंग सफेद पड़ जाता है। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल 0.5 मिलीलीटर प्रति लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। आवश्यक हो तो 10 से 15 दिन बाद फिर दोहराएं। 
माइट-इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं। इसके नियंत्रण हेतु 0.05 डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें।
यह एक फफूंदी जनित रोग है, इस रोग का प्रकोप दो परिस्थितियों में अधिक होता है पहला अधिक वर्षा के कारण दूसरा पौधों को अधिक समीप रोपने से पत्तियों पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पौधों की बढ़वार एवं विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
3. बैंगनी धब्बा(परपल ब्लॉच)-


इसके लक्षण दिखाई देने पर मेनकोजेब (2.5 ग्रा./ली . पानी) का 10 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें। इन फफूंदनाशी दवाओं में चिपकने वाले पदार्थ जैसे सैन्उो विट, ट्राइटोन या साधारण गोंद अवश्य मिला दें जिससे घोल पत्तियों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु चिपक सके।
खुदाई और प्याज को सुखाना



खरीफ फसल को तैयार होने में लगभग 5 माह लग जाते है, क्योकि कंद नवम्बर में तैयार हो जाता है, जिस समय तापमान काफी कम होता है। पौधे पूरी तरह सुख नहीं पाते इसलिए जैसे ही कंद अपने पूरे आकार की हो जाये और उनका रंग लाल हो जाये करीब 10 दिन खुदाई से पहले सिचाई बन्द कर देनी चाहिए। इससे कंद सुडौल और ठोस हो जाते है तथा उनकी वृद्धि रुक जाती हैद्य जब कंद अच्छे आकार के होने पर भी खुदाई नहीं की जाती है, तो वे फटना शुरू कर देते है।
खुदाई के बाद इनको कतारों में रखकर सुखा देते हैं। पत्ती को गर्दन से लगभग 2.5 सेंटीमीटर उपर से अलग कर देते हैं तथा फिर एक सप्ताह तक सुखा लेते हैं। रोपाई के 75 दिन बाद 0.2 प्रतिशत मैलिक हाईड्रोजाइड रसायन का छिड़काव और खुदाई से 10 से 15 दिन पहले सिंचाई रोकने से भंडारण में होने वाली क्षति कम हो जाती है।
रबी फसल पकने पर जब प्याज की पत्तियाँ सुखकर गिरने लगे तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए तथा 15 दिन बाद खुदाई कर लें, आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर प्याज के कंदों की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है। यदि प्याज के कंदों को भंडारण में रखने से पहले सुखाने के लिए प्याज को छाया में जमीन पर फैला देते हैं, तो सुखाते समय कंदों को सीधी धूप और वर्षा से बचाना चाहिएद्य सुखाने की अवधि मौसम पर निर्भर करती है। पौधे अच्छी तरह सुखाने के लिए तीन दिन खेत में तथा एक सप्ताह छाये में सुखाने के बाद 2 से 2.5 सेंटीमीटर छोड़कर पत्तियाँ काटने से भण्डारण में हानि कम होती है।
पैदावार-उपरोक्त तकनीक से प्याज की खेती करने पर खरीफ में 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टर औसत पैदावार हो जाती है, और रबी में 350 -450 क्विंटल प्रति हेक्टर प्याज के कंदों की पैदावार हो जाती है।


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