वैज्ञानिक विधि से मशरूम की खेती    

                                                               
                                                    डा .ए.के. सिंह , ’’डा. संजीत कुमार


                                              ’प्रसार वैज्ञानिक-पशुपालन  वरिष्ट  वैज्ञानिक एंव


                                                    हेड  कृषि  विज्ञान केन्द्र, वाराणसी।



मशरूम एक लाभकारी फफूँदी की सब्जी है, जो कि समान्यताः कम तापक्रम 14 डि0से0 30डि0से0 पर तथा 60ः से 85ः तक नमी वाले स्थानों पर सुगमता से उगाई जा सकती है। दूसरे शब्दों में मशरूम  प्राकृतिक परिस्थितियों में उन स्थानों पर कम लागत में उगाया जा सकता है जहाँ न तो बहुत ज्यादा गर्मी पड़ती है और न ही बहुत ठण्ड अर्थात तापमान 30 से0 अधिक व 10 से0  कम न हो। प्राकृतिक परिस्थितियों में मशरूम उत्पादन हेतु स्थान का चुनाव करने से पहले उसे स्थानीय जलवायु का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक होता है। इसकी खेती 25‘×15‘×10‘ के कमरों/उत्पादन कक्षों में जहाँ आवश्यकतानुसार हवा के आदान प्रदान की सुविधा हो आसानी से की जा सकती है  कमरे मे नमी को पानी का स्प्रें (छिड़काव) कर स्प्रे पम्प की सहायता से नियंत्रित किया जा सकता है।
मशरूम के पौष्टिकतत्वः-
मशरूम में सर्वाधिक मात्रा प्रोटीन (3.96ः) की पाई जाती है तथा ये प्रोटीन अन्य óोतों की तुलना में आसानी से पच जाने वाला होता है। साथ ही एमीनो एसिड का सबसे अच्छा कम्बीनेशन इसी प्रोटीन में पाया जाता है। प्रोटीन के अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेड वसा विटामिन व कुछ अन्य खनिज लवण जैसे पौष्टिक तत्व भी पाये जाते है। विटामिन बी कार्बोहाइड्रेड, मेटाबोलिज्म में सहायक होता है तथा हृदय की दुर्बलता एवं बेरी-बेरी रोग दूर करता है। विटामिन सी (एस्कार्बिक एसिड), पेन्टाथिन तथा फालिस तथा नियासिन भी अन्य रोगो को दूर करते है। खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा एवं तांबा भी मशरूम में पाये जाते है।
किस्मों का चुनाव:- भारत में लगभग 283 मशरूम की खाने योग्य प्रजातियां है। मात्र दो प्रजातियाॅ बटन मशरूम तथा ढिंगरी मशरूम की खेती ही व्यवसायिक तौर पर सम्भव है। जनपद में इन्हीं दो प्रजातियों की विपणन की सुविधा भी उपलब्ध है। मैदानी क्षेत्रों में अक्टुबर से 15 अप्रैल तक बटन मशरूम का उत्पादन थोड़ा बहुत कृत्रिम साधनों का उपयोग कर सुगमता से किया जा सकता है। 
किसी भी प्रजातियों के मशरूम उत्पादन हेतु मूलभूत चरण सदैव ही एक समान रहते है वे निम्न प्रकार है।


1. माध्यम तैयार करना या कम्पोस्टिंग   2. बीजाई करना या स्पाॅनिंग 3. मिट्टी बिछाना या केसिंग  4. फलों की तुड़ाई   5. विपणन।


बटन मशरूम उत्पादन 



1. जैसा कि उपर बताया जा चुका है कि मशरूम की किसी प्रजाति के उत्पादन हेतु विभिन्न चरण होते है। इसी के अनुरूप बठन प्रजाति के उत्पादन में भी निम्न चरण प्रयोग में लाये जाते है-,
1. कम्पोस्टिंग या खाद तैयार करना
2. बीजाई करना या स्पॅनिंग
3. केंसिंग करना
4. फलों की तुड़ाई
लघु अवधि विधि-


इस विधि द्वारा खाद बनाने के लिये एक तकनीकी प्लांट की आवश्यकता होती है, जो कि खाद को निर्जिवीकृत करने हेतु अत्यन्त आवश्यक होती है। इस विधि द्वारा लगभग 20 दिन में खाद तैयार होती है। यह खाद लम्बी विधि द्वारा बनायी गयी खाद में उत्पादकता में बेहतर होती है तथा आने वाले समय में और अधिक कम्पोस्ट इकाई की स्थापना एस0एम0सी0 विधि द्वारा कम्पोस्ट बनाने हेतु स्थापित होना निश्चित तो हो जाता है तथा उत्पादकता में भी निश्चित रूप से वृद्धि होगी।
1.मशरूम का बीज:-


मशरूम को बीज को स्पाॅन कहते है। यह स्पाॅन (बीज) गेहूं के अलावा ज्वार, बाजरा के दाने पर भी उगाया जाता सकता व्यवसायिक तौर पर इसका बीज 250-300 ग्राम की पैकिंग में यह प्रोपेलिन बैग में मिलता है।
2.बीजाई:-


मशरूम के बीज को खाद में मिलाने की क्रिया को बीजाई या स्पॅानिंग कहते है। यह विभिन्न विधियों से खाद में मिलाया जाता है जैसे- सतही बीजाई सर्वप्रथम ट्रे, रैक अथवा पोलीथीन बैग को उपरोक्त सड़ी हुयी खाद से भरकर बीज की मात्रा ऊपरी सतह पर डाल देते है तथा इस सतह को हाथ से बीज के साथ अच्छी तरह से मिला देते है। मिश्रित बीजाई हेतु खाद व बीच को अच्छी तरह से आपस में मिलाकर ट्रे या बैग को  अच्छी तरह से भर लेते है। स्तरीय बीजाई हेतु कम्पोस्ट या खाद के विभिन्न स्तरों में बीज मिलाया जाता है।
उपरोक्त किसी भी विधि से बीजाई की जा सकती है जहा तक उत्तपादन का प्रश्न है बीजाई किसी भी विधि से हो उत्पादन एक समान प्राप्त होता है। बीजाई की दर हेतु समान्यतः बीज को 4ः से 7ः की दर से करनी चाहिए। बीज की दर ज्यादा कर देने से उत्पादन पर कोई प्रभाव नही पडता है। हमें अधिकतम 5ः की दर से करनी चाहिए। बीजाई के पश्चात कम्पोस्ट की ऊपरी सतह पर अखबार का एक टुकड़ा इस तरह से बिछाया जाता है कि वह कम्पोस्ट को  पूर्णतः ढक ले इस अखबार को कम्पोस्ट पर बिछाने से पूर्व 2ः फार्मलीन की घोल से पूर्णतः निर्जिवीकृत कर दिया जाता है। जब कभी भी बीज मिश्रित कम्पोस्ट में पानी देना होता है यह पानी सदैव अखबार के ऊपर दिया जाता है सीधे कम्पोस्ट की सतह पर पानी नहीं दिया जाता है।
स्पान रन:- बीज मिश्रित कम्पोस्ट से भरी हुयी ट्रे , रैक तथा पाॅलीथीन बैग का मशरूम उत्पादन कक्ष में रखने के पश्चात् उस कक्ष का तापमान 23डिग्री से. - 25 डिग्री से. के मध्य तथा नमी 80ः से 85ः तक रखी जाती है। उत्पादन कक्ष में तापमान को नियंत्रित   रखने के लिए कमरे में हीटर, बुखारी, कोयले के अंगीठी का प्रयोग किया जाता है। तापमान के अतिरिक्त उत्पादन कक्ष में नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव किया जाता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर कमरे की दिवारो पर गीली बोरियां लटका दी जाती है। बीज फैलने के दौरान नमी तथा तापमान के अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है कि उत्पादन कक्ष में ताजी हवा की कदापि आवश्यकता नही होती है। इस तरह से लगभग 15 दिनांे के अन्दर बीज कम्पोस्ट में पूरी तरह से फैल जाता है। जिसको कि हम समय-समय पर अखबार का कागज उठाकर देखते रहते है। मात्र कम्पोस्ट की ऊपरी सतह पर बीज फैल जाने पर यह नही समझना चाहिये कि मशरूम की बीज फैल जाने अवस्था पूर्ण हो गयी है।  इस हेतु कम्पोस्ट में हाथ भीतर तक डालकर निश्चित कर लेना चाहिए कि कम्पोस्ट में मध्य व भीतरी भाग में भी बीज पूरी तरह से फैल गया हो।
बीज पूरी तरह से फैल जाने के उपरान्त कम्पोस्ट की सतह पर से पूर्व में बिछाया हुआ अखबार हटा देते है अखबार हटा देने के बाद अब यह बीज फैली हुई कम्पोस्ट केसिंग की परत डालने के लिए हो जाती है।
केसिंग दोमट मिट्टी:-


यह मिट्टी दोमट मिट्टी व गोबर की सड़ी हुई खाद 1: 2 अथवा दो साल पुरानी मशरूम की प्रयुक्त खाद दोमट मिट्टी 1: 1 के अनुपात में बनायी जाती है। इस मिट्टी को 60 डि0 से0 तक 6 घण्टे या 65डि0 से0 तक 4 घण्टे पाश्चुराइज करने के बाद मिट्टी की पी.एच. जॅाचनी चाहिये, मिट्टी की पी.एच. 7.0-7.7 के बीच होनी चाहिये यदि पी.एच. अधिक हो तो जिप्सम और यदि कम हो तो चूना डालकर ठीक किया जा सकता है। यह मिट्टी मशरूम मे फैले हुए स्पान को फल उत्पत्ति में बदलने मे सहायक होती है
केसिंग करने के 9 से 11वे दिन कमरे में ताजी हवा एयरडेक्ट द्वारा प्रवेश कराये। कमरे का दरवाजा एवं खिड़की खोल दे जिससे प्रदूषित हवाएं कमरे के बाहर निकल जाए।
फसल का उगना:-


हवा देने के तीन दिन बाद मशरूम छोटे-छोटे दानों के  रूप में ट्रे के ऊपर दिखाई देने लगते है , जो 2 से 3 दिन में तोड़ने लायक तैयार हो जाते है। यह फसल 50 से 60 दिनों तक निकलती है। इसके बाद मशरूम निकलने बंद हो जाते है। 40 कि0ग्रा0, कम्पोस्ट से लगभग 7 कि0ग्रा0, तथा एक बैग से 3.5 कि0ग्रा0, मशरूम पैदा होता है।
मशरूम की तुड़ाई व छटाई व पैकिंग:-


मशरूम की तुड़ाई सुबह के समय करनी चाहिए। मशरूम को तीन उंगलियो के बीच में लेकर मरोड़ देकर ऊपर उखाड़ लेना चाहिये एंव तने के मिट्टी वाले भाग को चाकू से काट दें फिर मशरूम की छटाई करें। मशरूम की छटाई के लिये मशरूम को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है।
ग्रेड एः-इस ग्रे्रड के मशरूम के बटन छोटे होते है इसकी टोपी का ब्यास 3-4 सेमी0 होता है।  तथा टोपी बन्द होती है।
ग्रेड बी:-इस मशरूम की टोपी थोड़ा सी खुली होती है तथा इसका व्यास 5 से 8 सेमी0 होता है।
ग्रेड सी:-इस श्रेणी के मशरूम की टोपी पूरी तरह से खुली रहती है।
छटाई के बाद अलग- अलग श्रेणी के मशरूमों को 200-500 ग्राम पाॅलीथीन में भरकर मंडियों में बेचने के लिए भेजा जाता है। छोटी-छोटी मशरूम प्रसंस्करण ईकाइयों की मशरूम को लम्बे समय तक रखने हेतु बहुत बड़ी भूमिका होती है, जिससे मशरूम खराब होने से बच जाता है। मशरूम का दूर की मंडियो में भेजने के लिए इसे विशेष पेटियों में बन्द करके 4 डि0 से0 के तापमान पर रखा जाता है। इस अवस्था में मशरूम 3 से 4 दिन तक ताजा एंव सुरक्षित रह सकता है।
ढिंगरी की मषरूम उत्पादन विधि-
ढिंगरी मशरूम (प्लूरोटस सजोरकाजू) तथा इसकी अन्य किस्मे अपने स्वाद के कारण लोगों द्वारा पसन्द की जाती है यह बहुत अच्छा साक है, जिससे सूप सब्जी, अचार तथा पकोड़े पुलाव आदि बनाये जाते है।
उत्पादन विधि-
1. माध्यम का तैयार करना।
2. स्पाॅनिंग या बीजाई करना।
3. फलो की तुड़ाई करना।
1. माध्यम का तैयार करना-


इसको गेहूॅ भूसे, धान की पुलाव, गन्ने की खोई तथा रद्दी बोरियाॅ पर आसानी से उगाया जा सकता है। उपरोक्त में  से उपलब्ध के अनुसार एक को चुनने पर उसे दिन भर पानी में भिगा दे तथा ऐरी लगा दें। जिससे अधिक पानी निकल जाये। अब इसको भाप द्वारा उपचारित करने के लिए एक ड्रम मे किसी स्टेण्ड मे रखे इसका सीधा सम्पर्क पानी से न हो। इसके बाद ड्रम का ढक्कन बन्द कर दें। इसके नीचे आग जलाकर भूसे को भाप से एक से दो घण्टे तक उपचारित करें। ठण्डा होने के बाद यह बीजाई के लिये तैयार है। यदि ऐसी सुविधा उपलब्ध न हो तो खौलते हुए पानी में भूसे तथा पुआल को एक-दो घण्टे तक भिगाने के बाद ढेर लगा दें जिससे पानी निकल जाए व बीजाई करते समय माध्यम की नमी उपयुक्त हो।
2. स्पानिंग या बीजाई-


अन्रू मशरूम के बीज की भाॅति ढिंगरी मशरूम का स्पाॅन बोतलेां या पोलीप्रोपेलीन की थैलियों मंे मिलता है उपरोक्त प्रकार से तैयार किये गये भूसे को 60 सेमी0 लम्बा 4.0 सेमी. चैड़ा सफेद पारदर्शक पालीथीन थैलियों में भरते जाएं और 5 प्रतिशत बीज दो तीन सतहो में डालकर दबाकर भरने के बाद थैली का मुहॅ बांध दे अथवा थैली के समान थैली की उपर के शेष हिस्सों के अन्दर की तरफ मोड़कर मध्य की उपरी सतह को ढक दे। इसके बाद इन थैलियेां को किसी साफ - सुथरे कमरे में रख दें और कभी-कभी पानी का छिड़काव कमरे में करते रहें। अब माइसीलियम के फैलावें के लिए 20-30 डि0 से0 तापमान की आवश्यकता होती है। लगभग 10 से 12 दिन में सफेद माइसीलियम पूरे भूसे अथवा पुआल में फैल जायेगा। इसके बाद पालीथीन बैग को ब्लेड से काटकर अलग कर दें।
3. फलों की तुड़ाई-


पाॅलीथीन काटकर हटाने के बाद नमी रखने के लिए आवश्यकतानुसार दो या तीन बार पानी का छिड़काव करते रहें। इस समय भी तापक्रम 20 से 30 डि0से0 के मध्य होना चाहिए। एक सप्ताह के अन्दर मशरूम निकलने लगता है जब छतरी पुरी खुलने के बाद उपर की तरफ मुड़ने लगे तब इसे तोड़ लेना चाहिए। इस प्रकार एक बैग से तीन-चार मशरूम निकलकर 60 से 70 प्रतिशत तक पैदावार मिलती है।
                                                  
 


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