पिप्पली एक औषधी



पिप्पली (वानस्पतिक नाम Piper longum), (पीपली, पीपरी, एवं अंग्रेजी श्लॉन्ग पाइपरश्), पाइपरेसी परिवार का पुष्पीय पौधा है। इसकी खेती इसके फल के लिये की जाती है। इस फल को सुखाकर मसाले, छौंक एवं औषधीय गुणों के लिये आयुर्वेद में प्रयोग किया जाता है। इसका स्वाद अपने परिवार के ही एक सदस्य काली मिर्च जैसा ही किन्तु उससे अधिक तीखा होता है। इस परिवार के अन्य सदस्यों में दक्षिणी या सफेद मिर्च, गोल मिर्च एवं ग्रीन पैपर भी हैं। इनके लिये अंग्रेजी शब्द पैपर इनके संस्कृत  एवं तमिल-मलयाली नाम पिप्पली से ही लिया गया है।
विभिन्न भाषाओं में इसके नाम इस प्रकार से हैं संस्कृत  पिप्पली, हिन्दी- पीपर, पीपल, मराठी- पिपल, गुजराती- पीपर, बांग्ला- पिपुल, तेलुगू- पिप्पलु, तिप्पली, फारसी- फिलफिल। अंग्रेजी- लांग पीपर, लैटिन- पाइपर लांगम।
पिप्पली के फल कई छोटे फलों से मिल कर बना होता है, जिनमें से हरेक एक खसखस के दाने के बराबर होता है। ये सभी मिलकर एक हेजल वृक्ष की तरह दिखने वाले आकार में जुड़े रहते हैं। इस फल में अल्कलॉयड पाइपराइन होता है, जो इसे इसका तीखापन देता है। इसकी अन्य प्रजातियाँ जावा एवं इण्डोनेशिया में पायी जाती हैं। 
इसमें सुगन्धित तेल (0.७), पाइपराइन (४-५) तथा पिपलार्टिन नामक क्षाराभ पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त दो नए तरल क्षाराभ सिसेमिन और पिपलास्टिरॉल भी हाल ही में ज्ञात हुए हैं। पीपर की जड़ जिसे पीपला मूल भी कहा गया है पाइपरिन (०.१५-०.१८ः), पिपलार्टिन (०.१३-०."०ः), पाइपरलौंगुमिनिन, एक स्टिरॉएड तथा ग्लाइकोसाइड से युक्त होती है।
इतिहास
पीपर यूनान में छठी एवं पाँचवीं शताब्दी के मध्य पहुंची थी। इसका उल्लेख हिपोक्रेटिस ने पहली बार किया और इसे एक मसाले के बजाय एक औषधि के रूप में किया ता। यूनानियों एवं रोमवासियों में, अमरीकी महाद्वीपों की खोज से पूर्व ही पीपरी एक महत्त्वपूर्ण एवं सर्वज्ञात मसाला था।


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