कुछ तो समय निकालें आत्म शुद्धि के लिए!

 


डॉ जगदीश गाँधी


संस्थापक -प्रबंधक सिटी मोन्टेसरी  स्कूल, लखनऊ



(1) कुछ तो समय निकाल आत्म शुद्धि के लिए:-
वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है, पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर। हे मेरे परमेश्वर, मेरी आत्मा को प्रफुल्ल कर दें। मेरे हदय को निर्मल कर दें। मेरे मन में अपने ज्ञान का प्रकाश भर दे। मेरे सब कर्म समर्पित हंै तेरे कर कमलों में। तू ही मेरा पथदर्शक है। मैं तेरे चरणों में नत मस्तक हूँ। हे ईश्वर, तू ऐसा वर दे कि मैं सदा प्रसन्न रहूँ। मैं अब चिन्ता नहीं करूँगा, तू है तो जीवन में चिन्ता कैसी। कष्ट मुझे अब कष्ट न देंगे लगी लगन तुझसे ऐसी। मेरे जीवन में जो अज्ञान के पर्दे पड़े थे वे सभी अब हट गये हैं। मैं जग की झूठी वस्तुओं में अब मन को नहीं उलझाऊँगा। हे परमेश्वर, तू मुझसे भी बढ़कर जब मेरा सखा है। अब मेरे सिर पर अपनी करूणा का हाथ रख दे। हे परमेश्वर, मेरी आत्मा को प्रफुल्ल कर दे। हमने सब कुछ किया केवल आत्मशुद्धि के लिए समय निकलना भूल गये।
(2) दृष्टिकोण बदलने से परिवर्तन होता है:-
यह शरीर परमात्मा का घर है। आइये, ध्येयपूर्वक अपने जीवन को संवारे। यदि जीवन सधे तो भगवान भी बहुत निकट होता है। आइये, परमात्मा के इस शरीर रूपी घर को चिन्तन और चरित्र में श्रेष्ठता निखार कर संवारे। हमारे अंदर दोष और गुणों दोनों का वास होता है। हमंें आत्मप्रगति तथा आत्म शुद्धि के खुद को प्रमाण देने होते हैं। स्वयं का आत्म सुधार करना आसान काम नहीं है। हमारे अंदर की आंख कब छिपने और छिपाने देती है। वह अंदर झांक अपने दोष-गुणों को देखा करती है। धरा न बदले गगन न बदले पर जीवन और जगत में दृष्टिकोण के बदलने से परिवर्तन होता है।
(3) अपने कर्तव्यों पर पूरी तरह से निछावर हो जाना जीवन का उद्देश्य है:-
साधनों में सुख नहीं है, सुख अंदर होता है। संतोष के बिना साधनों में भी कोई सुखी नहीं हुआ। आप भला तो जगत भला होता है। इसलिए जीवन में किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। अपने कर्तव्यों पर पूरी तरह से निछावर हो जाना जीवन का उद्देश्य है। जीवन का कुछ भी ठिकाना नहीं है। जीवन का कौन सा पल अन्तिम होगा, यह कोई नहीं जानता। इसलिए रोजाना अपने कार्यों का लेखा-जोखा कर लेना चाहिए। हमारी आंखें जो संसार की वस्तुओं को देख रही हैं वह सब एक दिन मिटने वाली हैं। इसलिए हमें अपनी नजर उस परमधाम पर हर पल टिकाये रखनी चाहिए।
(4) आइये, जगत के सेवक बनके धीरवीर कहलाये:-
जीवन के अन्तिम समय में सभी सांसारिक वस्तुओं को छोड़कर जाना होगा। फिर क्यों न हम जगत के सेवक बनके धीरवीर कहलाने के लिए जीवन समर्पित करें। संसार में क्या लेकर आये थे क्या लेकर जायेंगे। हम संसार में एकमात्र अपनी आत्मा के विकास के लिए आये हैं। इसलिए हमारे जीवन का एकमात्र ध्येय अपनी आत्मा के विकास का होना चाहिए।
(5) महान लोगों के मस्तिष्कों में लक्ष्य होते हैं:-
हमको अपने भीतर से ही विकास करना होता है। यदि हम नहीं चाहेंगे तो कोई हमको सीखा नहीं सकता, कोई हमको आध्यात्मिक नहीं बना सकता। हमको सिखाने वाला और कोई नहीं, सिर्फ हमारी आत्मा ही है। बेहतर उपदेश हम अपने होठों के बजाय अपने समाजोपयोगी कार्यों से दे सकते हैं। एक सफल लीडर में अपनी दूरदर्शिता को पूरा करने की हिम्मत उत्कंठा से आती है, किसी पोजीशन से नहीं। महान लोगों के मस्तिष्कों में लक्ष्य होते हैं, साधारण लोगों के मस्तिष्कों में केवल सांसारिक इच्छायें । व्यक्ति को स्वयं, अपने परिवार या अपने देश के साथ ही साथ सारे जगत के भले के लिए भी कार्य करना चाहिए।


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