परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छायें बनायें!

               


                डॉ जगदीश गाँधी


संस्थापक -प्रबंधक सिटी मोन्टेसरी  स्कूल, लखनऊ



(1) परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छायें बनायें:-
हमें परमात्मा की इच्छाओं को ही अपनी इच्छा बनाने की कोशिश करनी चाहिए। रावण ने अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए जीवन-पर्यन्त पूजा-पाठ किया और अंत में विनाश को प्राप्त हुआ। राम ने परमात्मा की इच्छा को अपनी इच्छा बनाकर जीवन जिया और वे राजा राम से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम बन गये। हमारा मानना है कि समाज सेवा के प्रत्येक कार्य को भगवान का कार्य मानकर करना ही जीवन जीने की श्रेष्ठ कला है। नौकरी या व्यवसाय के द्वारा ही आत्मा का विकास किया जा सकता है। जूनियर मार्टिन लूथर किंग ने अपने एक भाषण में बहुत ही प्रेरणादायी बात कही, ‘अगर किसी को सड़क साफ करने का काम दिया जाए तो सफाई ऐसी करनी चाहिए जैसे महान चित्रकार माइकल एंजेलो पेंटिंग कर रहा हो, जैसे विश्वविख्यात संगीतकार बीथेवेन संगीत रचना में जुटे हों या शेक्सपीयर कोई कविता लिख रहे हों।’ काम कोई हो उसे ईश्वर की भक्ति और समाज सेवा की भावना के साथ करने से खुशी मिलती है और विनम्रता हासिल होती है। इसलिए हमें अपने प्रत्येक कार्य को पूरे मनोयोग तथा उत्साह से करना चाहिए।
(2) हम तो एकमात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं:-
अपने सकारात्मक विचारों तथा ऊर्जा को ईमानदारी से और बिना थके हुए समाज की भलाई के  कार्यों में लगाना चाहिये। इस प्रयास से अपरिमित सफलता हमारे कदमों में होंगी। पवित्र गीता की सीख है कि ‘‘हम अपने कार्यों के परिणाम का निर्णय करनेे वाले कौन हैं? यह तो भगवान का कार्यक्षेत्र है। हम तो एकमात्र कर्म करने के लिए उत्तरदायी हैं।
(3) हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान विश्व के सभी देशों से अनूठा है:-
हमारा प्राचीन ज्ञान एक अनूठा संसाधन है, क्योंकि उसमें लगभग पाँच हजार वर्षो की सभ्यता का भंडार है। राष्ट्रीय कल्याण तथा विश्व के मानचित्र पर देश के लिए एक सही स्थान बनाने के लिए इस संपदा का लाभ उठाना जरूरी है। हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान विश्व के सभी देशों से अनूठा है। भारत की असली पहचान उसका आध्यात्मिक ज्ञान है। भारत को विश्व का आध्यात्मिक नेतृत्व करने के लिए आगे आना चाहिए।
(4) ज्ञान हमको महान बनाता है:-
हमें किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होने के लिए अदम्य उत्साह तथा विफलताओं का सामना करने और उनसे सीखने के साहस की आवश्यकता होती है। अध्ययन से सृजनात्मकता आती है। सृजनात्मकता विचारों को आगे बढ़ाती है। विचारों से ज्ञानवर्धन होता है और ज्ञान हमको महान बनाता है।
(5) विश्व एकता की शिक्षा की इस युग में सर्वाधिक आवश्यकता है:-
विश्व किसी व्यक्ति, संगठन और दल की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है। इस युग में विश्व एकता की शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता है। विश्व की एक सशक्त न्यायपूर्ण व्यवस्था तभी बनेगी जब प्रत्येक महिला और पुरूष अपनी बेहतरीन योग्यताओं और क्षमताओं के साथ योगदान देंगे।
(6) भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा:-
एक देश केवल कुछ लोगों के महान होने से महान नहीं बनता, बल्कि इसलिए महान बनता है कि उस देश में हर कोई महान होता है। हमारे देश के सौ करोड़ प्रज्ज्वलित मस्तिष्कों की शक्ति, इस धरती के नीचे, धरती के ऊपर और धरती पर स्थित संसाधनों की शक्ति से अपेक्षाकृत कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। इसलिए भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा।
(7) हम किस दिशा में जा रहे हैं? यह जानना महत्वपूर्ण है:-
ईश्वर हमारे रचयिता हैं, जिन्होंने हमें अपार ऊर्जा एवं योग्यता दी है। प्रार्थना हमें इन शक्तियों को प्रयोग में लाने में मदद करती है। ऐसी कोई दैवीय शक्ति अवश्य है जो हमें दुःखों, विवादों एवं भ्रम से छुटकारा दिलाकर सही रास्ता दिखाती है। हमें, जहाँ हम जा रहे हो उसके बारे में जानना चाहिए। दुनियाँ में यह जानना इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कहाँ है? बल्कि यह देखना कि हम किस दिशा में जा रहे हैं?
(8) हमें स्मरण रखना चाहिए कि भविष्य एक बार में एक दिन करके आता है:-
जीवन के इतिहास में परचा भी खुद बनाना होता है और उत्तर भी खुद लिखने होते हैं। यहाँ तक कि उन्हें जाँचना भी खुद ही होता है। जीवन के बारे में हताशा महसूस नहीं करनी चाहिए। हमें स्मरण रखना चाहिए कि भविष्य एक बार में एक दिन करके आता है। मुझे मानव जीवन से प्यार है, क्योंकि मानव शरीर में रहकर ही मनुष्य अपनी आत्मा का विकास कर सकता है। आत्मा का विकास करना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है। जीवन में परमात्मा की राह में हर पल आगे बढ़ने के अलावा और कोई राह नहीं है।
(9) हर पल की खुशी को गले लगाकर जीना चाहिए:-
धन से आज तक किसी को खुशी नहीं मिली और न ही मिलेगी, जितना अधिक व्यक्ति के पास धन होता है, वह उससे कहीं अधिक चाहता है। धन रिक्त स्थान को भरने के बजाय शून्यता को पैदा करता है। जीवन में दो मूल विकल्प होते हैंः स्थितियों को उसी रूप में स्वीकार करना जैसी कि वे हैं या उन्हें बदलने का उत्तरदायित्व स्वीकार करना। अपनी खुशियों के प्रत्येक क्षण का आनन्द लें; ये वृद्धावस्था के लिए अच्छा सहारा साबित होते हैं। उत्साह सबसे बड़ी शक्ति है तथा निराशा सबसे बड़ी कमजोरी है।
(10) निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी है:-
अपने चरित्र में सुधार करने का प्रयास करते हुए, हम इस बात को समझें कि क्या काम हमारे सामथ्र्य का है और क्या हमारे सामथ्र्य से बाहर है। श्रेष्ठ व्यक्ति बोलने में संयमी लेकिन अपने कार्यों में अग्रणी होता है। कोई गलती न करना मनुष्य के सामथ्र्य की बात नहीं है, लेकिन अपनी त्रुटियों और गलतियों से समझदार व्यक्ति भविष्य के लिए बुद्धिमत्ता अवश्य सीख लेते हैं। जब कभी आप किसी के साथ अपना धैर्य खोने लगे, तो सोचिए कि ईश्वर ने आज तक आपके साथ कितना धैर्य रखा है। जब कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को इतनी गहराई से चाहे कि वह उसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार हो, तो उसका जीतना सुनिश्चित है। एक बार हम काम शुरू कर लें तो असफलता का डर हमें नहीं रखना चाहिए और न ही काम को बीच में छोड़ना चाहिए। निष्ठा से काम करने वाले ही सबसे सुखी हैं।
(11) आइये, विश्व को प्यार, न्याय, सहयोग, सहकार तथा एकता के सूत्र में पिरोए:-
यदि इस लेख को पढ़कर कोई भी पाठक अपने मन में यह प्रतिज्ञा करता है कि मैं (1) उद्देश्यपूर्ण शिक्षा के द्वारा समाज के अन्धकार को मिटाने, (2) नफरत और आपसी दुःखों की अग्नि से जलती हुई मानवता को बचाने, (3) विश्व एकता एवं (4) विश्व शान्ति के लिए काम करते हुए विश्व को प्रेम, प्यार, सहयोग, सहकार तथा एकता के सूत्र में पिरोऊँगा तो मेरी लेखनी अपने उद्देश्य में सफल होगी और हमारा प्रयास सार्थक होगा।


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