थोड़ा ध्यान लगा स्वामी दौड़े चले आयेंगे!
डॉ जगदीश गाँधी
संस्थापक -प्रबंधक सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) थोड़ा ध्यान लगा स्वामी दौड़े चले आयेंगे:-
माँ की कोख में जब बच्चा रहता है। तब वह माँ के शरीर से जुड़ा रहता है। हमारे भौतिक शरीर और उसके सभी अंगों का निर्माण माँ की कोख में नौ महिने रहकर होता है। जन्म लेने के बाद वह माँ के शरीर से अलग हो जाता है। भौतिक शरीर में परमात्मा का अंश आत्मा के रूप में होता है। मनुष्य का शरीर भौतिक है लेकिन उसका चिन्तन आध्यात्मिक है। यदि मनुष्य के शरीर के साथ चिन्तन भी भौतिक हो जाये तो वह नर पशु की तरह हो जाता है। भौतिक शरीर का विकास संसार की चीजों से हो जाता है। लेकिन आत्मा का विकास परमात्मा से जुड़कर होता है। थोड़ा ध्यान लगा स्वामी दौड़े चले आयेंगे। मन की आंखों को खोलने से परमात्मा के दर्शन अन्तःकरण में ही हो जाते हैं। वहीं राम, कृष्ण, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह है। मौको कहाँ ढूढ़े रे बन्दे मैं तो तेरे पास में। परमात्मा का ज्ञान ही सद्कर्मों पर चलना सीखाता हैं। परमात्मा को प्रेम से पुकारने पर वह हमारे पापों को जलाते हैं। प्रभु की शरण के अलावा जीवन का कोई अन्य विकल्प नहीं है। प्रभु की गोद में ही परम शान्ति मिलती है। प्रभु की दया दृष्टि जब पड़ती है तब हम भवसागर तर जाते हैं। ऐसा परम विश्वास मन में होना चाहिए कि परमात्मा ही जीवन की ज्योत को जलाते है।
(2) हमें ईश्वरीय सहारे को पहचानना चाहिए:-
हमारी आत्मा परमात्मा से बिछुड़ जाये तो यह ऐसे ही है जैसे कोई पंख टूटा पक्षी। आसमान में ऊँची उड़ान भरने के लिए पक्षी को मजबूत पंखों की आवश्यकता होती है। धरती के अवतारों तथा महापुरूषों के जीवन को देखने से हमें ज्ञात होता है कि साधारण से असाधारण बनने के लिए परमात्मा की कृपा की आवश्यकता होती है। राम एक छोटे से राज्य अयोध्या के राजा दशरथ के यहाँ पैदा हुए थे। राम ने अपनी आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से जोड़ लिया और वह राजा राम से मयार्दा पुरूषोत्तम श्रीराम बन गये। कृष्ण का लालन-पालन गांव के एक साधारण ग्वाले नंद बाबा के यहाँ हुआ। कृष्ण ने धरती पर न्याय की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और वह युगावतार श्रीकृष्ण बन गये। बुद्ध एक छोटे से राज परिवार में पैदा हुए। वह राजपाट के सुख को त्याग करके जीवन के तत्व ज्ञान की खोज में निकल पड़े और भगवान बुद्ध बन गये। ईशु एक साधारण से बढ़ई जोसफ के यहाँ पैदा हुए थे। ईशु ने अपना सारा जीवन परमात्मा के कार्य को करने में झोंक दिया। ईशु मानव जाति को युगों-युगों के लिए करूणा का सन्देश देकर संसार से चले गये। मोहम्मद साहेब का पालन-पोषण भी साधारण परिवार में हुआ। मोहम्मद साहेब ने अपनी आत्मा का कनेक्शन परमात्मा से जोड़ लिया। मोहम्मद साहेब के मुँह से पवित्र कुरान की अयातें एक एक करके नाजिल होने लगी। मोहम्मद साहेब ने युगों-युगों के लिए सारी मानव जाति को भाईचारे का संदेश दिया। नानक एक साधारण से व्यापारी के यहाँ पैदा हुए। उन्होंने लोगों को सीख दी कि त्याग ही सच्चा सौदा है। बहाउल्लाह एक साधारण से मंत्री के घर में पैदा हुए। बहाउल्लाह ने अनेक कष्ट सहते हुए परमात्मा की राह जीवन पर्यन्त नहीं छोड़ी। बहाउल्लाह ने संसार को हृदय की एकता के साथ ही धर्म एक है, ईश्वर एक है तथा मानव जाति एक है का सन्देश दिया। इसी प्रकार संसार के अनेक महापुरूष साधारण परिवार में पैदा हुए लेकिन परमात्मा की राह में जीवन पर्यन्त चलने के कारण वे धरती पर सदैव के लिए अमर हो गये।
(3) मानव जीवन सात घाटियों की यात्रा है:-
जीवन का लक्ष्य भौतिक जगत तक सीमित कर लेने से मनुष्य अज्ञान रूपी अन्धेरेे से घिर जाता है। जीवन बस यूँ ही जी लेने के लिए नहीं है। जीवन एक अन्वेषण है, जीवन एक खोज है। जीवन एक संकल्प है। मानव जीवन आत्मा की यात्रा का एक पड़ाव है मंजिल नहीं। मानव जीवन की यात्रा सात घाटियों को पार करने पर ही पूर्ण होती हैं! जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव जीवन की यात्रा का हर एक पग अनेक बाधाओं से घिरा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी नौकरी या व्यवसाय के द्वारा ही अपनी आत्मा का विकास करना है। नौकरी या व्यवसाय के अलावा अपनी आत्मा के विकास का अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है।
(4) मानव जीवन की सफल यात्रा सात घाटियों को पार करने से पूरी होती है:-
जीवन यात्रा की अंतिम घाटी को पार करने की योग्यता परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण है। सातवीं घाटी को पार करने के बाद मनुष्य वास्तविक निर्धनता अर्थात शून्यता की स्थिति में पहुँच जाता है। हर क्षण वह अपनी वास्तविक निर्धनता तथा परमात्मा की सम्पन्नता की अनुभूति करता है। अपनी शक्तिहीनता तथा परमात्मा की शक्तिमानता की दिव्य अनुभूति करता है। ईश्वर के अतिरिक्त संकटों में सहायक और कोई नहीं है। ईश्वर ही है संकटमोचन एवं सर्वज्ञाता। शरीर की पीड़ा, लिप्सा, इच्छा, मोह तथा उपस्थिति समाप्त हो जाती है। केवल आत्मा का बोध रह जाता है। जीवन यात्रा के इस सातवें पडाव में बस केवल एक ही गीत, दर्शन, संकल्प तथा ध्येय रह जाता है। तू ही तू, तू ही तू, हर शह में बसा है तू। पथिक का चिन्तन सर्वोच्च स्तर को प्राप्त करता है। पथिक के चिन्तन, हृदय तथा आत्मा में वसुधैव कुटुम्बकम् का दिव्य दर्शन साकार रूप ग्रहण करता है। पथिक के हृदय की प्रत्येक धड़कन तथा कार्य सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने के लिए होते हैं। यदि हम परमात्मा को स्वयं के हृदय में तथा प्रत्येक जीव में नहीं महसूस कर सकते है तो फिर हम परमात्मा को कहाँ पा सकते हैं?