कहां गए तुम ओ वनमाली ?
कवीता
सीमा शुक्ला अयोध्या।
वही धरा है वही गगन है ।
मगर बहुत गमगीन चमन है।
बुलबुल राग वियोगी गाए,
बिना खिले कलियां मुरझाए।
लिपट लता का जीवन जिससे
टूट रही हैं अब वह डाली।
कहां गए तुम ओ वनमाली?
तुमसे उपवन का सिंगार था।
तुम थे हर मौसम बहार था।
फूल खिलें क्या वन मुस्काएं?
किसके लिए चमन महकाएं?
कोटि यहां ऋतुराज पधारें,
मगर न आयेगी हरियाली।
कहां गए तुम ओ वनमाली?
छोड़ दिए हैं पंछी डेरा।
छूटा कलरव गीत सवेरा।
उजड़ा उपवन तुम्हें पुकारे।
फिर जीवन उम्मीद निहारें।
तुम आओ तो फिर वसंत में।
फूटे नव किसलय की लाली
कहां गए तुम ओ वनमाली?
सहमा हुआ चमन है सारा।
अपनी किस्मत से है हारा।
कहां गए तुम ओ रखवाले?
तुम बिन इनको कौन संभाले?
शाखों पर मायूस कोकिला
मधुर गान भूली मतवाली।
कहां गए तुम ओ वनमाली?
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