मौलिक संवैधानिक कर्तव्यों को याद करने का समय-रविशंकर प्रसाद


   भारत इस समय संकट के बेहद गंभीर दौर से गुजर रहा है। कोरोना वायरस एक खौफनाक महामारी का रूप ले चुका है जिससे बड़ी संख्‍या में लोगों की जान खतरे में पड़ गई है और देश भर में लॉकडाउन लागू किया जा चुका है।  इसने लगभग पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और अब तक इसका कोई रामवाण इलाज नहीं मिला है। यह बड़ी चुनौती, व्‍यथा और गंभीर चिंता का समय है। चाहे अमीर हो या गरीब, चाहे कोई भी जाति हो या धर्म, इस संकट ने पूरी मानवता को प्रभावित किया है। हालांकि, कोई भी चुनौती निश्चित तौर पर एक अवसर भी प्रस्तुत करती है। हो सकता है कि नए सिरे से दृढ़संकल्प लेने और अभिनव तरीके ढूंढ़ने पर ही इस संकट से निपटना संभव हो। 14 अप्रैल को महान भारतीय बाबा भीमराव अंबेडकर की जयंती है, जो हमारे संविधान के निर्माता होने के साथ-साथ एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने हमारे संविधान को एक ऐसे सामाजिक दस्तावेज के रूप में वर्णित किया, जिसमें अधिकार और दायित्व के साथ-साथ सशक्तिकरण एवं समावेश भी समान रूप से अत्‍यंत महत्वपूर्ण मूल्य हैं और जिन्‍हें स्वतंत्र भारत की सतत प्रगति के लिए अवश्‍य ही ध्यान में रखा जाना चाहिए।


            यह भारत की अनूठी परंपरा रही है कि जब भी किसी चुनौती का सामना करना होता है, तो हमारे देश और देशवासियों की अंतर्निहित शक्ति बड़ी तेजी से बढ़ जाती है। हम सभी को यह याद है कि साठ के दशक में जब खाद्यान्न संकट गहरा गया था, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने देशवासियों से हर दिन एक वक्‍त का भोजन छोड़ देने की अपील की थी और पूरे देश ने इस जीवट कार्य में उनका पूरा साथ दिया था। युद्ध के समय, यहां तक कि राष्ट्रीय संकट के दौरान भी प्रतिबद्धता और एकजुटता सर्वविदित एवं बिल्‍कुल स्वाभाविक है। इसके साथ ही एक और खास बात यह है कि भारत की जनता सदैव समय की कसौटी पर खरी उतरी है, बशर्ते कि देश का नेतृत्व प्रेरणादायक हो।  


 


प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी, जैसा कि हम सभी जानते हैं, एक अत्‍यंत लोकप्रिय निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें भारत की जनता ने अपने प्रिय नेता के रूप में चुना है।  वह समय-समय पर भारत की जनता से अपील करते रहे हैं और हर बार हमारे देशवासियों ने उनका पूरा साथ दिया है। जब उन्होंने गरीब महिलाओं को उज्‍ज्‍वला योजना के तहत रसोई गैस कनेक्शन देने के लिए समर्थ लोगों से अपनी रसोई गैस सब्सिडी स्वेच्छा से छोड़ने की अपील की, तो करोड़ों लोगों ने उनका साथ दिया। जब उन्होंने ‘स्वच्छ भारत कार्यक्रम’ शुरू किया, तो उन्होंने भारत के लोगों से ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के निर्माण में स्वेच्‍छा से भाग लेने की अपील की। यह उनकी अपील का ही कमाल है कि पिछले साढ़े पांच वर्षों में इसने एक व्‍यापक जन आंदोलन का रूप ले लिया है जिसके परिणामस्‍वरूप गांवों में अब तक की सर्वाधिक संख्‍या में शौचालयों का निर्माण सुनिश्चित हो पाया है और इसके साथ ही कई ग्राम पंचायतें खुले में शौच मुक्त हो गई हैं। उन्‍होंने सत्याग्रही से स्वच्छाग्रही बनने का प्रेरक आह्वान किया और भारत की जनता ने स्वेच्छा से स्वच्छ भारत को एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में स्वीकार कर लिया क्योंकि उन्हें यह प्रतीत हुआ कि ऐसा करना तो उनका कर्तव्य है।  


            कोरोना महामारी के मौजूदा संकट काल में प्रधानमंत्री ने देशवासियों से ‘जनता कर्फ्यू’ के लिए अपील की। यही नहीं,  प्रधानमंत्री ने देश की जनता से सभी डॉक्टरों एवं सहायक स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों के साथ-साथ उन अन्य लोगों के लिए भी सार्वजनिक रूप से ताली बजाने की अपील की, जिन्‍होंने कोविड से पीड़ित अनगिनत मरीजों की सेवा के लिए खुद की जान भारी जोखिम में डाल दी है। प्रधानमंत्री ने पहली बार में ही पूरे देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा करने का अभूतपूर्व कदम उठाया और भारत की जनता ने दिल से यह मान लिया कि इस संक्रामक वायरस को फैलने से रोकने के लिए उनके आह्वान पर ध्यान देते हुए अपने-अपने घरों तक सीमित रहना और सामाजिक दूरी बनाए रखना उनके कर्तव्य का हिस्सा है। उनके एक आह्वान पर इस चुनौतीपूर्ण समय में पूरे देश की जनता ने एकजुटता और उत्‍साह को दर्शाने के लिए अपने-अपने यहां दीप या दीया जलाया।   


   अधिकार और कर्तव्य हमारी संवैधानिक व्‍यवस्‍था के अभिन्न अंग हैं। यह अलग बात है कि मौलिक कर्तव्य बहुत बाद में संविधान में शामिल किए गए थे। कर्तव्य के साथ-साथ दायित्व का भी विचार हमारे संविधान की मूल विशेषता रही है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति, शांतिपूर्वक इकट्ठा होने, आवागमन, निवास, इत्‍यादि की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। लेकिन इसी अनुच्छेद के अंतर्गत अनुच्छेद 19(2) में कर्तव्य का भी प्रावधान किया गया है, जिसका पालन ऐसे तरीके से किया जाना चाहिए जिससे भारत की एकता और अखंडता, देश की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता इत्‍यादि पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता हो। यदि इसका उपयोग अपेक्षित रूप से नहीं किया जाता है, तो तर्कसंगत पाबंदियां लगाई जा सकती हैं। अनुच्छेद 17 किसी भी रूप में अस्पृश्यता को समाप्त करता है और ऐसा करने की मनाही है। इससे यह स्‍पष्‍ट हो जाता है कि ऐसा न करना हर भारतीय का कर्तव्य है। संविधान के अनुच्छेद 39 के तहत राज्‍यों को ऐसी नीति बनाने का दायित्‍व दिया गया है जिसके तहत भौतिक संसाधनों का इस तरह से सर्वश्रेष्‍ठ वितरण हो जिससे कि सभी का भला हो। सर्वहित की पूर्ति की दिशा में प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य भी संवैधानिक दायित्व बन गया है। अनुच्छेद 49 के तहत सरकार को हर स्मारक या कलात्मक महत्व अथवा ऐतिहासिक महत्व वाले ऐसे प्रत्‍येक स्थल की नुकसान, विनाश और विरूपण से रक्षा करने का दायित्‍व सौंपा गया है, जिसे राष्ट्रीय महत्व के स्थल के रूप में घोषित किया गया है। निश्चित रूप से, इस अनुच्छेद में बताया गया है कि  इन ऐतिहासिक स्मारकों को सुव्‍यवस्थित बनाए रखना और उनकी रक्षा करना हम सभी का कर्तव्य है। 


  अनुच्छेद 51ए, जिसे बाद में जोड़ा गया, में मौलिक कर्तव्यों पर विशेष अध्याय शामिल है। इसकी कई महत्वपूर्ण बातों में राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्र गान का सम्मान करना, भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को बनाए रखना और प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना तथा बेहतर बनाना, इत्यादि शामिल हैं। मेरे विचार में, एक महत्वपूर्ण कर्तव्य 55ए(जे) है, जो यह बताता है कि ‘प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यकलापों के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्ति के लिए प्रयास करने चाहिए, ताकि राष्ट्र सतत रूप से उत्‍कृष्‍टता और उपलब्धि के उच्च स्तरों पर पहुंच सके।’  


            हम इन कर्तव्यों को कैसे पूरा कर सकते हैं? यदि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में इस बड़ी चुनौती के दौरान हमारी सामूहिक इच्छा शक्ति और हमारे कर्तव्य पालन से हमारा देश सफल होता है, तो हम अपने राष्ट्र को उपलब्धि की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद करने के अपने सामूहिक दायित्व को पूरा करेंगे। हमें यह जानकर अत्‍यंत प्रसन्‍नता हो रही है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी और कुछ राज्य सरकारों की कई पहलों की सराहना विश्व स्तर पर हो रही है।


            मैं गंभीरतापूर्वक यह कहना चाहता हूं कि आज हर भारतीय को स्‍वयं से केवल यह नहीं पूछना चाहिए कि देश आपको क्या दे सकता है, बल्कि यह भी प्रतिबिंबित करना चाहिए कि आप देश को क्या दे सकते हैं। यहां तक कि वर्ष 2012 में एक फैसले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने रामलीला मैदान की घटना से जुड़े एक मामले में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि जहां एक ओर अधिकार और पाबंदी के बीच, वहीं दूसरी ओर अधिकार और कर्तव्य के बीच भी संतुलन एवं समानता होनी चाहिए। यदि कर्तव्य के विशेष महत्व पर विचार किए बिना ही नागरिक के अधिकार पर अनुचित या अपेक्षा से अधिक विशेष जोर दिया जाएगा, तो इससे असंतुलन की स्थिति बनेगी। अधिकार का सही स्रोत कर्तव्य है। मुझे यकीन है कि इन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के दौरान हर भारतीय इसे याद रखेगा। निश्चित रूप से, हम विजयी बन कर उभरेंगे।  


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