सभी देश हो एकजुट ! कोरोना वैश्विक महामारी की त्रासदी से निबटने के लिए 

       


 डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं 
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ।


महामारी न तो किसी देश की सीमाओं को जानती है और न ही किसी धर्म या जाति को! 

       


इंसान से इंसान में फैलने वाले कोरोना वायरस (कोविड-19) के कहर से आज दुनियाँ का कोई भी देश अछूता नहीं रह गया है। हर देश में खौफ़ का मंजर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 203 देशों के लगभग 9.4 लाख लोग कोरोना वायरस के चपेट में आ चुके हैं, जिनमें से लगभग 47 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। चीन के वुहान शहर से शुरू होकर सारे विश्व में तबाही मचाने वाले इस अदृश्य कोरोनो वायरस की अभी तक सही ढंग से पहचान तक नहीं हो सकी है। चीन, ब्रिटेन, स्पेन, इटली, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी आदि जैसे विकसित देशों में जिस खतरनाक ढंग से इस वायरस ने तबाही मचायी है, उसकी तुलना द्वितीय विश्व युद्ध से की जाने लगी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह तबाही अगर यही नहीं रूकी तो शायद इसकी त्रासदी द्वितीय विश्व युद्ध से भयानक होगी।
काफी समय पहले नोबल पुरस्कार विजेता जोशुआ लेडरबर्ग ने कहा था कि किसी दूसरे देश में एक बच्चे को बीमार करने वाला एक विषाणु आप तक पहंुच सकता है और आगे चलकर वैश्विक महामारी में तब्दील हो सकता है। वास्तव में महामारी न तो किसी देश की सीमाओं को जानती हैं और न ही किसी धर्म या जाति को। शायद यही कारण है कि आज विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के साथ ही कई अन्य शक्तिशाली देश भी इसके सामने पंगु हो गये हैं। ब्रिटेन के प्रिसं चाल्र्स हो या चाहे प्रधानमंत्री बोरिस जाॅनसन हो या स्पेन की राजकुमारी मारिया टेरेसा, इस वायरस ने किसी को भी नहीं छोड़ा है। इस कोरोना वायरस के कारण सारे विश्व में संक्रमण से बढ़ती हुई संख्या एवं उनकी मृत्यु दर को देखते हुए तो यही लगता है कि अगर जल्दी ही इससे निजात न पाया गया तो विश्व की एक बहुत बड़ी संख्या को यह वायरस ऐसा दर्द देकर जायेगा, जिसके सामने प्रथम विश्व युद्ध व द्वितीय विश्व युद्ध की त्रासदी भी छोटी लगने लग जायेगी। 
दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीजी जमात के मकरज में विश्व के अनेक देशों से धार्मिक आयोजन के नाम पर इकट्ठा हुए लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण पाये जाने के बाद भारत सरकार की चिंता भी बहुत अधिक बढ़ गयी है। इनमें से कई लोग जहंा विदेशी है, तो कई भारत के कई राज्यों से आये हुए थे। विडंबना तो यह है कि धर्म के नाम पर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम से वापस भारत के कोने-कोने में गये इन धर्मावंबियांे को ढूढ़ना और उनमें में से कौन-कौन कोरोना वायरस से संक्रमित है, यह पता करना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। लेकिन हमें उम्मीद है कि जल्दी ही भारत सरकार और राज्य सरकारें मिलकर भारत को इस खतरे से बाहर निकाल लेगीं। मुश्किल तो यह है कि आज हमारा समाज राम, कृष्ण, ईसा, बुद्ध, मोहम्मद और बहाउल्लाह आदि ईश्वरीय अवतारों को तो मानता है, किन्तु इन युग युग में आये अवतारों द्वारा सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए समय-समय पर दी गई शिक्षाओं - मर्यादा, न्याय, करूणा समता, भाईचारे और हृदय की एकता की शिक्षाओं को नहीं मानता, जिसके कारण आज सारे विश्व मंे धर्म के नाम पर मानव-मानव मंे दूरियां बढ़ती जा रही है।
वास्तव में पिछले कुछ दशकों में इंसान ने विज्ञान की दुनियाँँ में तो बहुत तरक्की कर ली किन्तु सामाजिकता और आध्यात्मिकता से दूर होता चला गया। विनाश के सामान तैयार करते-करते वह भूल गया कि स्वयं भी विनाश के कगार पर आ खड़ा हुआ है। वास्तव में इस बार दुनियाँ का मुकाबला किसी सामने दिखने वाले दुश्मन से नहीं है बल्कि उस अदृश्य वायरस से है, जिसको न तो अभी तक देखा गया है और न ही उसकी ताकत का सही-सही पता ही लगाया जा सका है। हालात यह है कि शक्तिशाली से शक्तिशाली देश भी इस अदृश्य चुनौती से निबटने के लिए सर्वशक्तिमान परमात्मा के भरोसे होते जा रहे है। वह सर्वशक्तिमान परमात्मा जिसको भी हम देख तो नहीं सकते किन्तु हमें यह विश्वास है कि वह ही हमें सभी मुसीबतों से उबार सकता है। लेकिन विडंबना यह है कि हमें भी अपने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की याद भी तब आती हैं जब हम मुसीबत में पड़ चुके होते हैं।    
हमारा मानना है कि अगर दुनियाँ भर के बच्चों को बचपन से ही ईश्वरीय शिक्षाओं से जोड़ा जाय, उनके हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम उत्पन्न किया जाय, उन्हें सर्वश्रेष्ठ भौतिक ज्ञान देने के साथ ही साथ मानवीय और आध्यात्मिक ज्ञान दिया जाए तथा बालकों को प्रेरित किया जाय की वे अपने ज्ञान का उपयोग सारे विश्व की मानवजाति के कल्याण के लिए करने हेतु प्रेरित किया होता, उन्हें वसुधैव कुटुम्बकम्’, विश्व एकता एवं विश्व शांति की शिक्षा दी जानी चाहिये।


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