सुप्रीम कोर्ट  का फैसला, केंद्र ही नहीं राज्य भी तय कर सकते हैं गन्ने की कीमत

2005 में दायर याचिका पर सुनवाईसुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला



गन्ना खरीद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट के फैसले के मुताबिक, अब राज्य अपने यहां गन्ने की न्यूनतम खरीद कीमत तय कर सकते हैं. अगर यह केंद्र की तरफ से तय कीमत से ज्यादा है तो उसमें कोई दिक्कत नहीं. 2005 में दाखिल वेस्ट उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन की याचिका पर फैसला आया है.


मिल मालिकों का कहना था कि कीमत तय करने का हक सिर्फ केंद्र को है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार गन्ना का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) तय करती है. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में मिल एफआरपी देती है. वहीं, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में प्रदेश सरकार राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) तय करती है.


एसएपी अमूमन एफआरपी से अधिक होता है. इस वजह से वेस्ट उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन ने 2005 में याचिका दाखिल की थी और कहा था कि कीमत तय करने का अधिकार केंद्र को है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए अब हर राज्य अपने यहां गन्ने की न्यूनतम खरीद कीमत तय कर सकता है.


अब ऐसे समझिए केंद्र सरकार ने पेराई सीजन 2019-20 के लिए गन्ने के एफआरपी को पिछले साल के 275 रुपए प्रति कुंतल पर ही स्थिर रखा है. जबकि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का एसएपी पिछले वर्ष की तरह ही अगैती प्रजाति (अर्ली वैरायटी) के लिए 325, सामान्य प्रजाति के लिए 315 और अनुपयुक्त प्रजाति के लिए 310 रुपए प्रति कुंतल गन्ना मूल्य निर्धारित किया गया है.


यानी केंद्र की ओर से निर्धारित 275 रुपये की बजाए उत्तर प्रदेश के किसानों को करीब 50 रुपये अधिक मिलेंगे. ऐसे में वेस्ट उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन ने याचिका दायर करके केंद्र को ही गन्ने की खरीद की न्यूनतम कीमत तय करने का अधिकार देने की वकालत की थी.


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