वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है,पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर!
डॉ जगदीश गाँधी
संस्थापक -प्रबंधक सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) किसी भी कार्य का जन्म एक विचार से होता है:-
मानव जीवन में विचार का सर्वाधिक महत्व है। किसी भी कार्य का जन्म मानव मस्तिष्क में सर्वप्रथम एक विचार के रूप में आने से होता है। कहा जाता है कि संसार में समस्त सैन्य शक्ति से बढ़कर विचार की शक्ति होती है। किसी व्यक्ति का विचार ही उसे अच्छा या बुरा कार्य करने की प्रेरणा देता है। मस्तिष्क में अच्छा विचार आने से व्यक्ति लोक सेवा के मार्ग पर चल सकता है तथा बुरा विचार आने से कोई व्यक्ति आतंकवादी भी बन सकता है। विचार ही मनुष्य को ऊपर ले जाते या नीचे गिराते हैं। युद्ध के विचार मानव मस्तिष्क में पैदा होते हैं। इसलिए संसार में एकता तथा शान्ति स्थापित करने के लिए मनुष्य के मस्तिष्क में ही शान्ति के विचार रोपने होंगे।
(2) हम परमात्मा के आज्ञाकारी पुत्र है:-
हे परमात्मा तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तूझे जांनू और तेरी पूजा करूँ। परमात्मा को जानने के मायने है युग-युग में परमात्मा की ओर से उनकी शिक्षाओं को लेकर आने वाले अवतारों को पहचानना तथा पूजा के मायने है उन शिक्षाओं को जानकर उन पर आचरण करना। हम परमात्मा के आज्ञाकारी पुत्र है। परमात्मा ने मनुष्य को विशेष क्षमताओं के साथ उत्पन्न किया है। हमारे अंदर आत्मा के रूप में परमात्मा का अंश है। परमात्मा का यही अंश उसके द्वारा मानव जाति के कल्याण के लिए युग-युग में अवतरित राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह जैसे महान अवतारों के अंदर भी था। हमारे अंदर ऋषि-मुनियों व महापुरूषों जैसे पूर्वजों के संस्कार रचे-बसे हैं। धरती के प्रथम स्त्री-पुरूष को परमात्मा ने स्वयं रचा था। धरती के इन्हीं प्रथम स्त्री-पुरूष से ही करोड़ों वर्षो में यह लगभग सात अरब की जनसंख्या वाला विश्व परिवार विकसित हुआ है।
(3) वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है! :-
हमें परमपिता परमात्मा को जानने के साथ ही उनकी शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करने वाले एक अत्यन्त ही प्रेरणादायी गीत की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं:-
वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है। पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर।
वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है। धड़कन का जब तलक है सीने में सिलसिला।।
प्राणों का चल रहा है जब तक ये काफिला। रहबर बनाइये उसे जीवन की शाम तक।
पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर। वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है।।
सिर पर सदा हमारे उसका ही हाथ हो। सुख-दुःख हो रात-दिन हो हर पल ही साथ हो।
ऐसा न हो कि याद करें उसको काम पर। पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर।
वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है। आंखें जो देखती हंै वो सब हैं मिटने वाली।।
चलना हैं निज वतन जहां के प्रभु है रहने वाले। अपनी नजर टिकाईये उस परमधाम पर।
पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर। वैसे तो जिन्दगी में करने को बहुत कुछ है।
पल भर निकालिए प्रभु के भी नाम पर।।2।।
(4) आइये, अपनी नौकरी या व्यवसाय को ही परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बनायें :-
किसानी, मजदूरी, नौकरी या व्यवसाय में हमारे समक्ष अनेक प्रकार की कठिनाईयों का आना स्वाभाविक है किन्तु आत्मा के विकास के आगे बड़ी से बड़ी कठिनाई एवं हानि भी छोटी है। आज वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में जो भी कुंठा, दुःख, अव्यवस्था और उथल-पुथल दिखाई दे रही है उसका कारण ‘मनुष्य की अपने जीवन के परम उद्देश्य आत्मा के निरन्तर एवं प्रतिपल विकास की उपेक्षा’ करना ही है। परिणामस्वरूप मानव जीवन में अन्धकार एवं अज्ञानता भर गई है जिसके कारण वह ऐसे कार्य करने लगता है जो ईश्वर की शिक्षाओं एवं आज्ञाओं के प्रतिकूल हैं। इस भयानक भूल के कारण मानव जीवन संकट में पड़ गया है। हम अपनी नौकरी या व्यवसाय के द्वारा ऊँचे उठ रहे हंै या नीचे गिर रहे हैं इसको नापने का एक ही पैमाना या कसौटी है कि अपनी आँखों में हमारा मूल्य घट रहा है या बढ़ रहा है? परमात्मा केवल उसके नाम का गुणगान करने वालों को नहीं वरन् उसका पवित्र हृदय से कार्य करने वालों को प्यार करता है। आइये, हम प्रतिदिन पूरे मनोयोगपूर्वक प्रयास करके अपनी किसानी, मजदूरी, नौकरी या व्यवसाय को ही परमात्मा की सुन्दर प्रार्थना बनाये। हमारा एक ही संकल्प होना चाहिए - प्रभु काज किये बिना मुझे कहाँ विश्राम।