दारू संगम का महापर्व


मधुशाला पर पूरी एक पुस्तक लिख डाली हरिवंशराय बच्चन जी ने। उन की दृष्टि,लेखनी और सोच को सादर नमन । उन्होंने मधुशाला को सामाजिक दृष्टि से देखा। सरकारें राजस्व की दृष्टि से देखती हैं। और शराबी मानसिक तृप्ति की दृष्टि से देखता है।  40 दिन बाद दारू की दुकानें खुलने पर सरकार और समाज ने अपनी अपनी दृष्टि से दारूबाजों की हरकतों को देखा।  शराब की वजह से परिवार भले ही  टूटता है पर सरकारें परिपुष्ट और सुदृढ़ होती हैं। परिवारों का टूटना, कंगाल होना , राजनीतिक लोगों के लिए चुनावी दृष्टि से सुविधा जनक होता है।शराब की विशेषतायें आप सभी लोग जानते हैं। बस एक बात और जोडूंगा कि शराबियों की इस भीड़ में 60 प्रतिशत ऐसे लोग भी होते हैं जिनके पास गरीबी वाला राशनकार्ड, मनरेगा कार्ड,जन-धन खाता और उज्जवला योजना का गैस सिलेंडर तथा कुटीर ज्योति योजना की मुफ्त बिजली भी होती है। और यह लोग शत प्रतिशत मतदान भी करते हैं दारू या दारू का पैसा लेकर।


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