ज्वार की विषाक्तता से पशुओं का बचाव


  ज्वार चारे की बुवाई जायद और खरीफ के मौसम में की जाती है , जायद मौसम में लगाई गई ज्वार चारा में अक्सर विषाक्तता के कारण पशुओं की मृत्यु होती है ,अतः किसान भाइयों से मेरा निवेदन है कि निम्न जानकारी का पालन करें- 
 ज्वार का जहर-  धूरिन नामक तत्व , तनो तथा पतियों  में पैदा होते हैं जो एंजॉय मिक क्रियाशीलता के बाद हाइड्रोजन सायनाइड में परिवर्तित हो जाता है जिससे पशु के नर्वस सिस्टम पर प्रभाव पड़ता है।


 लक्षण 
पशु की सांस लेने में तकलीफ , सांस की गति बढ़ जाने , मुंह से सांस लेना , लड़खड़ाहट,  पशुओं के मुंह के अंदर की श्लेष्मा का नीला पड़ना  पशु के मुंह से अधिक लार गिरना , पशु का पेट फूलना , डिहाइड्रेशन


ज्वार हरा चारा देते समय सावधानिया-


 1. ज्वार हरा चारा परिपक्व होने के बाद , 65 से  75 दिन पर कटाई कर खिलाएं ।
2. छोटे / कम दिन के हरे चारे देने पर पशु में विषाक्त होने की संभावना अधिक रहती है।
3. बांसी या एक-दो दिन पुराना ज्वार हरा चारा ना दें इसमें हाइड्रोजन सायनाइड की मात्रा बढ़ जाती है।
4.   ज्वार  की सिंचाई समय-समय पर करते रहें कटाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। क्योंकि सूखे खेत में  हाइड्रोजन सायनाइड होने की संभावना बढ़ जाती है ,15 दिन से अधिक समय पर सिंचाई होने पर जहर बनने की संभावना  बढ़ जाती है।


 उपचार-
पशु चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें, 
उपरोक्त लक्षण दिखाई देने पर पशुपालक 150 से 200 ग्राम सोडियम थायो सल्फेट पशु को दें तथा तथा प्रति घंटे अंतराल पर 30 ग्राम सोडियम थायो सल्फेट देते रहे हैं, सुधार होने तक। 
 पशु को डेक्सट्रोज तथा 25ml प्रति 100 किलो वजन पर सोडियम थायो सल्फेट अंत शिरा पशु को दें। 


 कृषि विज्ञान केंद्र कटिया सीतापुर से संपर्क करें-                              


संपर्क सूत्र 73769 70259 87656 28585


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