आम की बौनी किस्मों का बढ़ता प्रचलन


इंसान में बौनापन अभिशाप है पर आम के पौधों को बौना करने की कवायद चल रही है। फलदार पौधे बड़े आकार के होने के कारण पिछली शताब्दी से ही वैज्ञानिकों का प्रयास रहा है कि किस तरह से पौधों का आकार बौना किया जाए सेब के पौधों को रूटस्टॉक की मदद से छोटे आकार में रखकर कम भूमि में ही अधिक पौधे लगाने की प्रथा विदेशों में कई दशकों से प्रचलित है। सघन वृक्षारोपण में कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगने के कारण कुछ ही सालों में बहुत अधिक उपज मिलना संभव है। छोटे पौधों से फलों को तोड़ना आसान है और उनकी देखरेख में भी कम खर्च होता है। फलों की तुड़ाई पेड़ का आकार बड़ा हो जाने पर एक कठिन कार्य है और तुड़ाई के समय काफी फल नीचे गिर कर चोट खा जाते हैं। फलों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए सही परिपक्वता पर उन्हें बड़े ही सावधानी से हाथ से तोड़ने की आवश्यकता होती है और यह छोटे आकार के पौधों के साथ ही संभव है।सेब के ही तरह आम के पौधों को भी बौना बनाने के प्रयास पिछली सदी में ही प्रारंभ कर दिए गए थे। सेब और अन्य फलों की तरह रूटस्टॉक के प्रयोग से बौना करने में सफलता तो नहीं मिली परंतु कुछ बौनी किस्में विकसित की गई जिनके पौधे आकार में छोटे होते हैं।आम्रपाली किस्म अपने छोटे आकार के लिए काफी प्रचलित हुई परंतु आम्रपाली के फल बाजार में आने में 30 वर्ष लग गये। पौधे अन्य किस्मों की तरह विशाल रूप धारण कर लेते हैं। इसी दिशा में केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान द्वारा बौनी प्रजातियों के विकास के लिए शोध किया गया और अरूणिका एवं अम्बिका नाम की संकर किस्में विकसित की गई। अरूणिका अपनी माँ आम्रपाली से पौधों के आकार में लगभग 40 प्रतिशत छोटी है। लाल रंग के आकर्षक फलों के कारण बौना पेड़ और आकर्षक लगता है डॉ राजन यह बताते हैं कि आम की किस्में बौनी तभी हो सकती हैं जब उन पर हर वर्ष फल आए। चौसा और लंगड़ा जैसी एक साल छोड़ कर फलने वाली किस्मों के पौधे बड़े आकार के होते हैं। नियमित फलन के कारण अम्बिका, अरुणिका और आम्रपाली जैसी किस्मों के पौधे छोटे आकार के रहते हैं। इनकी ख़ासियत यह भी है कि फलों के तोड़ने के बाद निकली हुई टहनियों में फूल का आ जाना। लंगड़ा, चौसा और दशहरी में फल तोड़ने के बाद निकली हुई टहनियों में फूल सामान्यतः एक वर्ष छोड़कर फल आते हैं।दक्षिण भारतीय किस्म नीलम, उत्तर भारत में अपने छोटे आकार के पौधों के लिए जानी जाती है। आम्रपाली में नीलम ने पिता का रोल अदा किया और इसी कारण आम्रपाली से अरूणिका में नियमित फलन और बौनेपन का गुण विद्यमान है। रोचक तथ्य यह है कि अरुणिका अपने नाना की तरह बौने आकार की है। मनुष्यों में बौने आकार को पसंद नहीं किया जाता है। लेकिन आमों की दुनिया में बौनी किस्मों का अपना विशेष महत्व है।हर साल फल देने वाली बौनी किस्में सघन बागवानी के लिए उपयुक्त है। कम स्थान में अधिक संख्या में पौधे लगाकर ज्यादा फल उत्पादन आज बागवानी के क्षेत्र में एक सफल तकनीक के रूप में अपनाया जा रहा है।गत वर्षों में घर में छोटी सी जमीन के टुकड़े में पेड़ों को लगाने का प्रचलन बढ़ा है। इसके लिए विशालकाय पेड़ वाली आम की किस्मों के स्थान पर आम्रपाली की माँग बढ़ती जा रही है। गृह वाटिका में अरूणिका के पौधे लगाने के लिए पिछले कुछ ही दिनों में संस्थान को हजारों पौधों की माँग किसानों और शहर के आम प्रेमियों ने प्रेषित की है। सामान्यतः आम को गमलों में कई वर्षों तक नहीं रखा जा सकता। इसलिए शहरों में शौक पूरा करने के लिए लोग को आम की बौनी किस्मों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। थाईलैंड और कई देशों से आम की बारहमासी किस्मों को आम के शौकीन लाकर इस कमी को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं परंतु यह किस्में साल में कई बार फल तो देती हैं लेकिन फलों की गुणवत्ता अरुणिका एवं आम्रपाली से अच्छी नहीं है। शौक के लिए साल भर चलने वाली साल में कई बार फलने वाली बारहमासी किस्मों को लगाने की भी काफी लोगों में शौक है।


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