बगीचों में फल वृक्षों के साथ उगाए दूसरी फसलें

                             


                            डॉ विवेक कुमार त्रिपाठी
                          प्रोफेसर, उद्यान विज्ञान विभाग,
       चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपुर


विभिन्न प्रकार के फलों के बगीचे लगाने में अन्य फसलों की तुलना में प्रारम्भिक व्यय सामान्यतः अधिक रहता है। और बगीचा लगाने के कुछ वर्षों के बाद ही उनसे आय प्राप्त होना शुरू होती है। इस समयाविधि के साथ जब बगीचे में फलत नहीं होती है, उस समय भी किसान भाइयों को आय का अन्य स्रोत न होने पर, उस समयान्तराल में अतिरिक्त आय प्राप्त करने हेतु अन्त: सस्यन एक उपयुक्त प्रणाली है। जिससे किसान भाइयों को बागवानी फसल की उपज के अतिरिक्त भी आय प्राप्त होती रहती है एवं अन्तः फसल के उगने से बाग में फल वृक्षों के बीच में बेकार पड़ी भूमि व अन्य संसाधनों का भी समुचित उपयोग होता रहता है। अरे बच्चों के बीच में दूसरी फसल उगाते समय कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए, जिसका वर्णन प्रस्तुत आलेख में किया गया है-


फल बागानों में अन्तः सस्यन के प्रमुख सिद्धांत


फल वृक्षों में अन्त: सस्यन के रूप में अन्य किसी भी फसल को उगाते समय बागवान भाईयों को निम्नलिखित बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए जिससे फल वृक्षों की उपज पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े, साथ ही साथ बागान की उत्पादकता में भी कमी न आने पाए। 
1. फल वृक्षों के बीच में निराई-गुड़ाई एवं अन्य कृषि क्रियाएं इस प्रकार करें कि मुख्य पौधों की जड़ों व तनों को कोई हानि न पहुंचने पाये। यदि जड़ या तना छतिग्रस्ट हो जाते  हैं तो उसमें रोग और कीट लगने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे पौधे की उम्र और उत्पादकता दोनों पर दुष्प्रभाव पड़ता है।


2. मुख्य फसल में अन्तः फसल के बीच, मुख्य पौधे से बुवाई की दूरी प्रति वर्ष बढ़ाते रहना चाहिए। 
3. अन्त: फसलों को सदैव एक अलग फसल की तरह समझकर, उस फसल के लिए निर्धारित/ संस्तुत खाद एवं पानी की मात्रा को अलग से देना चाहिए।


4. अन्त: सस्यन के रूप में उगाई गई फसल के पानी की आवश्यकता मुख्य फसल की पानी की आवश्यकता से भिन्न नही होनी चाहिए।


5. अन्तः सस्यन करते समय यह भी ध्यान रखें की मुख्य फसल के वृक्षों की वृद्धि एवं ओजस्विता प्रभावित न हो अर्थात दूसरी बोई जाने वाली फसल ज्यादा बढ़वार के साथ अधिक फैलाव वाली नहीं होनी चाहिए ।


6. अन्त: फसल, मुख्य फसल पर लगने वाले कीटों एवं रोगों को आश्रय देने वाली नहीं होनी चाहिए अर्थात जो कीट एवं रोग मुख्य फसल पर अच्छे लगते हैं वह दूसरे बीच में बोई जाने वाली फसल पर ना आक्रमण करते हो।


7. मुख्य फसल के साथ-साथ अन्त: फसल पर भी लगने वाले रोगों एवं कीटों को तुंरत ही उनकी प्रारम्भिक अवस्था में उनके लक्षण या प्रभाव दिखाई देते ही उचित ढंग से नियंत्रित कर देना चाहिए।


8. अधिक गहरी जुताई चाहने वाली फसलों को कभी भी अन्तः सस्यन के रूप में नहीं उगाना चाहिए।
 9. अन्त: सस्यन के रूप में उगाई गयी फसल किसी भी अवस्था में मुख्य फसल से अधिक लम्बी नहीं होनी चाहिए। 
10. अन्तः सस्यन फसल को अधिक समय तक बगीचे में नहीं उगाना चाहिए, विशेषकर जब मुख्य फसल में फलतः प्रारम्भ हो गई हो या मुख्य फसल में फलत हो रही हो, तब अन्त: सस्यन कम कर देना चाहिए।


अन्तः सस्यन के लाभ:


बगीचे में फल बच्चों के बीच पड़ी भूमि पर मुख्य फसल के साथ अन्त: सस्यन करने से बागवानों को सामान्यत: निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते है:


1. मुख्य फसल के फलत न देने की अवस्था में, उगाई गई अन्त:सस्यन से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। 


2. अन्तः फसल उगाने से बाग में बेकार पड़ी भूमि व अन्य संसाधनों का समुचित उपयोग होता रहता है।


3. अन्तः सस्यन के रूप में दलहनी फसलों को उगाने से बगीचे की मृदा संरचना में सुधार के साथ-साथ, उसकी उर्वरता में भी वृद्धि होती है, जिससे मुख्य फसल से अधिक गुणवत्ता युक्त उत्पादन प्राप्त होता है।
 
4. बीच में फसल हो जाने से, उसमें समय-समय पर अन्य कृषि क्रियाएं  होने के कारण, विभिन्न प्रकार के खरतवारों का जमाव नहीं हो पाता, और जमा हुए खरपतवार नष्ट हो जाने के कारण से खरपतवारो  की समस्या से बगीचों को मुक्त मिलती है।


5. भूमि में अन्त: सस्य फसल की समाप्ति पर उसके अवशेष एवं पत्तियां गिरकर, बगीचे की भूमि में जीवांश पदार्थ एकत्रित करते है।जिससे सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है, इसका सीधा प्रभाव मुख्य फसल की उपज में वृद्धि के साथ प्राप्त होता है


 अन्तः सस्य के रूप में फसल का चुनाव


फल बागानों में फल वृक्षों के बीच में अन्तः सस्यन उगाने हेतु, फसल का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रमुख है। उपयुक्त फसल का चुनाव न करने की अवस्था में मुख्य फसल की वृद्धि एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: बागवान भाईयों को अन्तः सस्यन हेतु फसल का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।


ऋतु के अनुसार फसल का चयन:


गर्मी की ऋतु में: कद्दू, लौकी, खीरा, खीरा, भिंडी, बैंगन, लोबिया इत्यादि ।


वर्षा ऋतु में: लोबिया, उर्द, मूंग, सेम, भिंडी, अदरक, हल्दी इत्यादि। 


शरद ऋतु में: टमाटर, मटर, चना, बैंगन, फूलगोभी, पातगोभी, गाजर, मूली, शलजम, प्याज, लहसुन एवं अन्य पत्ते वाली सब्जियां, इत्यादि।


फलों  के अनुसार बगीचे में अन्तः फसल:


फलों के अनुसार अन्त: फसल का चुनाव एवं उनके लेने की अवधि निम्न प्रकार है-


आमः 



उर्द, मूंग, मिर्च, प्याज, लोबिया, मटर, फूलगोभी, मूली, गाजर, चना, मटर, सेम, सोयाबीन, पपीता, फालसा, स्ट्राबेरी इत्यादि। इनकी अन्त: सस्य अवधि 4-5 वर्ष है। तत्पश्चात फलत ना होने के समय  अर्थात गर्मी की ऋतु में ही केवल अंत: फसल लेना चाहिए


अमरूदः 
लोबिया, सेम, प्याज, भिंडी, फूलगोभी, पातगोभी, मटर, चना, स्ट्राबेरी, पपीता एवं फालसा इत्यादि। इनकी अन्त: सस्य अवधि 3-4 वर्ष है।



केला:
बैंगन, भिंडी, मिर्च, प्याज, उर्द, मूंग, लोबिया इत्यादि। इनकी अन्तः सस्य अवधि प्रारंभ के 5 माह तक ही है।



नीबूंः 
उर्द, मूंग, लोबिया, चना, सरसों, भिंडी, टमाटर, पातगोभी, फूलगोभी, बैंगन इत्यादि। इनकी अन्तः सस्य अवधि 4 वर्ष है। 


पपीताः पातगोभी, फूलगोभी, मिर्च,प्याज, टमाटर, स्ट्राबेरी इत्यादि। इनकी अन्तः सस्य अवधि 2-3 वर्ष है।


आंवलाः 



उर्द, मूंग, चना, हल्दी, अदरक, फूलगोभी, पातगोभी, फालसा, पपीता एवं स्ट्राबेरी इत्यादि। इनकी अन्तः सस्य अवधि 3-4 वर्ष है। तत्पश्चात केवल गर्मी की रितु में ही अंत: फसल लेना उपयुक्त रहता है।


बेरः 



उर्द, लोबिया, चना, भिंडी, फूलगोभी, पातगोभी, फालसा इत्यादि। इनकी अन्तः सस्य अवधि 2-3 वर्ष है। तत्पश्चात सर्दी की रितु में अंत: सस्य के रूप में  ही फसलें उगा सकते हैं।


इस प्रकार से कृषक बागवान भाई अपने बगीचे की जमीन का सदुपयोग करके वर्ष भर आए प्राप्त कर सकते हैं और अपनी आय में वृद्धि के साथ-साथ जीविकोपार्जन में भी सुधार कर सकते हैं।


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