तीन कृषि सुधार कानून 2020

 डा0 सत्येन्द्र कुमार सिंह

संयुक्त कृषि निदेशक, (शोध एवं मृदा सर्वेक्षण) कृषि भवन, लखनऊ

राष्ट्रीय निदेशक, धर्म भारती राष्ट्रीय शान्ति विद्या पीठ लखनऊ










1. कृषि उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य-संवर्धन और सुविधा कानून 2020 यानी मुक्त बाजार एवं व्यापार

[Farmers Produce Trade & Commers-Promotion  & Fecilitation Law 2020] means Free Market and Trade

2. मूल्य आश्वासन पर किसान (सशक्तिकारण और सुरक्षा) समझौता कानून 2020 अर्थात अनुबंध, ठेका, संविदा कृषि 

          [Farms Agreement on Price  Assurance & Farm Services (Empowerment and Protection)  Law 2020] means Contract Farming

3. आवश्यक  वस्तु संशोधन कानून 2020 जिसका तात्पर्य असीमित भंडारण से है

      (Essential Commodities Amendment  Law 2020 means Unlimited Hoarding )

ग्रामीण भारत ही असली भारत है और उ0प्र0 तथा भारत की समृद्धि यहाँ के किसानों के खेतों-खलिहानों एवं गाँवों से होकर निकलती है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने संकल्प लिया है कि स्वतंन्त्रता के 75वें वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करनी है। किसानों की दोगुनी आय, किसानों के साथ, किसानों के विकास तथा किसानों के विश्वास से ही सम्भव है। कोविड-19 महामारी ने सिद्ध कर दिया है कि भारत ही नहीं पूरी दुनियाँ का वर्तमान एवं भविष्य कृषि में ही निहित है। स्वतंन्त्रता के 73 साल बाद भारत के महामहिम राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के उपरान्त कृषि एवं ग्रामीण विकास के तीन ऐतिहासिक कृषि सुधार कानून 2020 देश में लागू हो गयें है। स्वतंन्त्रता के बाद कृषि के क्षेत्र में एक मुश्त इतना बड़ा सुधार कभी नही हुआ है। इन कृषि सुधार कानूनों के सम्यक क्रियान्वयन से किसानों की आय दोगुना करने में ये कृषि सुधार कानून मील का पत्थर साबित होंगे। इन तीनों कानूनों के सम्यक अनुपालन एवं क्रियान्यवन से भारत पुनः कृषि-ऋषि परम्परा (भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति - बी0पी0के0पी0) के माध्यम से सोने की चिड़िया एवं आत्मनिर्भर भारत बनने की ओर अग्रसर है। 1908 में स्वामीनाथन आयोग ने फसलों के न्यूनतम समर्थन कृषि मूल्य तथा 1990 में भानुप्रताप समिति ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह एवं कृषि मंत्री देवीलाल को इन कृषि सुधारों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया था। यही नहीं इन सुधारों पर चर्चा षान्ता कमेटी की रिपोर्ट एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय से हो रही है, लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह क्रियान्वित नहीं हो सका।

किसानों की बेहतरी के लिए बनाए गए तीनों कानूनों की आवश्यकता , गत तीन दशकों से सतत् रूप से महसूस की जा रही थी। इन सुधारों का मूल आधार यह है कि, कृशि उत्पादों के बाजार, व्यापार, भंडारण, प्रसंस्करण एवं निर्यात के ऊपर सब प्रकार के नियंत्रण उस समय लगाये गये थे, जब देश  में खाद्यान्न का लगातार भारी अभाव रहता था। वर्श 1980 के दशक में भारत न केवल आत्मनिर्भर हो गया बल्कि चावल सहित कई खाद्य पदार्थो का विष्व का अग्रणी उत्पादक बनकर निर्यात भी करने लगा। इस अवधि में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी विकसित हुआ। शीत भण्डारण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग स्थापित कर पाने की क्षमता और वित्तीय संसाधन भारत के 86 प्रतिशत सीमान्त एवं छोटे किसानों के पास नहीं है। यह तो बड़े निवेश कों द्वारा ही किया जा सकता है।

    वित्त वर्ष  2020-21 की पहली तिमाही में लाॅकडाउन के कारण देश  की विकास दर (उद्योग एवं सेवा सेक्टर) में भारी गिरावट आई, पर कृषि क्षेत्र में संतोष जनक विकास दर 3.4 प्रतिशत रहीं। कोविड महामारी के बावजूद कृषि की यह विकास दर काफी उत्साहवर्धक है। अब कृषि क्षेत्र आवश्यकता से अधिक उत्पादन कर रहा है। 2019-20 में खाद्यान्नों का 29.50 करोड़ टन रिकाॅर्ड उत्पादन हुआ। 18.50 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन के साथ हम विश्व  में प्रथम स्थान पर है। बागवानी-फल, सब्जियों का उत्पादन भी 32 करोड़ टन वार्षिक  हो रहा है। 2018-19 में 332 लाख टन चीनी उत्पादन कर हम विष्व में प्रथम स्थान पर रहे। केवल खाद्य तेलों या तिलहन को छोड़कर शेश लगभग सभी कृषि  एवं खाद्य पदार्थो का आवश्यकता से अधिक उत्पादन हो रहा है। अधिक उत्पादन का अर्थ किसानों की अधिक आय होना नहीं, क्योंकि खाद्य भडांरण और प्रसंस्करण में आधारभूत ढांचे के अभाव के कारण हर साल 16 प्रतिषत फल और सब्जियां, 10 प्रतिशत खाद्यान्न, दालें एवं तिलहन खराब हो जाते हैं। उचित भंडारण क्षमता न होने के कारण किसान अक्सर फसल को औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर होते हैं। फिर उसी फसल को कुछ माह बाद उपभोक्ता महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर होते हैं। कृषि  उत्पादों की भंडारण संरचना में निवेष बढ़ने से फसलों की आवक के वक्त ही किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे, तो दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को भी साल भर उचित मूल्यों पर कृषि  उत्पाद उपलब्ध होंगे। 

यह भी सर्वमान्य तथ्य है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा तो केवल भंडारण करने वाले 23 जिंसों 7 अनाज, 7 दलहन, 4 तिलहन एवं 5 नकदी फसलों के लिये ही उपलब्ध है। सब्जी, फल, दूध, मत्स्य उत्पाद, अंडा, मुर्गी आदि जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं को सरकार नही खरीदती है। कृशि उत्पादों के इस दूसरे वर्ग को ही बाजार की अनिश्चितता के कारण प्रायः हानि उठाना पड़ता है। यदि संविदा खेती के माध्यम से किसान और उद्योगपति प्रसंस्करणकर्ता तथा निर्यातक परस्पर सहमति से तय किये मूल्यों के आधार पर इन वस्तुओं का नियमित उत्पादन करें तो दोनों पक्ष लाभान्वित होंगे। इस देश  में निर्यात और प्रसंस्करण की महती संभावनाएं हैं, जिनके लाभ से देष अब तक वंचित रहा है।

      भारत में प्राचीन काल से ही कृषक अपनी फसल को इच्छानुसार बेचने को स्वतंत्र था। ब्रिटिश  काल में कार्नवालिस ने 1793 में जो सरकारी नियंत्रण की व्यवस्था शुरू की, भारत सरकार ने उसे समाप्त करते हुए भारत के किसान को वह नैसर्गिक अधिकार और स्वतंत्रता दी है जो सदा-सर्वदा से उसका हक था। अब किसान घर बैठे ऑनलाईन अथवा सुविधानुसार अपनी फसल का व्यापार कर सकता है। जब किसान और बाजार के बीच में कोई नहीं होगा तो किसान के साथ-साथ जनता (उपभोक्ता) को भी बेहतर दाम मिलेगा। अन्य देशों के मुकाबले भारत में कृषि उत्पादकता बहुत कम है इसलिए देश में मूलभूत संरचना सुधार एवं विकास के लिए सरकारी मंडियों (कृषि उत्पाद बाजार समितियाॅ-APMC's) तथा संविदा खेती में सकारात्मक परिवर्तन के अन्तर्गत पब्लिक-प्राईवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि सभी विकसित देशों ने मुक्त बाजार की अवधारणा पर ही विकास किया है। 

इन तीनों कृषि सुधार कानूनों के क्रियान्वयन से कृषि  क्षेत्र बहुत से बंधनों से मुक्त हो जाएगा और फसल उत्पादन, विपणन, भंडारण, प्रसंस्करण क्षेत्रों में निवेष बढ़ेगा, जिससे किसानों को अपनी उपज के अच्छे दाम भी मिलेंगे। कुछ किसानों को आशंका है कि सरकार न्यनूतम समर्थन मूल्य और मंडी व्यवस्था को समाप्त करने की ओर बढ़ रही है। यद्यपि प्रस्तावित कानूनों में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है, पर आशंकाओं से ग्रसित कुछ किसान उनके विरोध में खड़े हो गए हैं। सरकार ने आश्वासन  भी दिया है कि इन सुधारों से मंडी और एमएसपी व्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और यह व्यवस्था पहले की तरह ही चलती रहेगी। जिसका प्रमाण है कि गेहॅू एवं धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया गया है जिससे बड़े पैमाने पर गेहॅू की खरीद हुई है और धान की खरीद हो रही है। वर्श 2020-21 में लगभग 70 हजार करोड़ रूपये का गेहॅू एम0एस0पी0 के माध्यम से खरीदा गया तथा चालू खरीफ विपणन सत्र में 66,135 करोड़ रूपये का न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को चुकाया गया है और अबतक लगभग 350 लाख टन धान की खरीद हो चुकी है। बेहतर हो कि किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए यह सुनिश्चत  किया जाए कि एमएसपी पर फसलों की सरकारी क्रय की व्यवस्था इन सुधारों के कारण कमजोर न हो। इसके लिए एमएसपी की व्यवस्था को वैधानिक मान्यता दे देनी चाहिए। एमएसपी से नीचे फसलों की खरीद वर्जित हो और उसके उल्लघंन पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान हो।

भारत सरकार किसानों की 2022 में आय दोगुना करने के दृष्टिकोण से दशकों से बहुप्रतीक्षित तीनों कृषि सुधार कानून 2020 लागू हो गये हैं, जिसका विस्तृत विवरण निम्नवत् हैः-

1. कृषि  उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य-संवर्धन और सुविधा कानून 2020 का तात्पर्य मुक्त बाजार एवं मुक्त व्यापार से है

इस कानून को संक्षेप में हम मुक्त बाजार एवं मुक्त व्यापार (Free Market and Free Trade )  कह एवं समझ सकते हैं। एक देश-एक निशान, एक देश-एक संविधान, एक देश-एक टैक्स, एक देश-एक प्रधान की तर्ज पर ‘एक देश-एक बाजार‘(One Nation- One Market)  का विचार किसान एवं देशहित में लाया गया है। इस कानून का लक्ष्य किसानों को उनकी उपज के लिए प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक बाजार एवं व्यापार माध्यमों से लाभकारी मूल्य दिलाना है और किसानों से उनके उपज के बिक्री पर कोई सैस या शुल्क नही ली जाऐगी।

नये प्रावधान में किसानों के हित में निम्नलिखित सुविधाऐं  एवं व्यवस्थाऐं दी गयी हैं, जो किसानों के लिए लाभदायी एवं वरदान सिद्ध होंगे।

* अपने उत्पाद का लाभकारी मूल्य प्राप्त करने के लिए अब किसान अपनी उपज देश के किसी भी हिस्से में बेचने के लिए स्वतंत्र है। अब किसान मण्डी के बाहर किसी भण्डार गृृह, कोल्ड स्टोरेज या अपने खेत से भी फसल बेच सकेगा। 

* पूरा देश अब एक एकीकृत बाजार है। नये कानून में बाजार अब बैरियर फ्री (इन्टर डिस्ट्रिक्ट, इन्ट्रा एवं इन्टर स्टेट) है। अन्तरराज्य और राज्य के भीतर व्यापार के सभी बंधन हट जायेंगें। 

* राजकीय मंडियों के साथ-साथ निजी मंडियां विकसित होंगी। उदाहरणार्थ विद्यार्थियों को जैसे राजकीय विश्वविद्यालय के साथ प्राईवेट विश्वविद्यालय की स्थापना की अतिरिक्त सुविधा से दोहरा लाभ एवं विकल्प मिल जाता है। उसी प्रकार किसान की फसल को खरीदने में अधिक प्रतिस्पर्धा होगी, क्योंकि नये व्यापारी भी फसल के खरीददार होंगे जिससे किसान को अधिक मूल्य प्राप्त हो सकेगा।

* नये कानून में उपज की बिक्री पर कोई शुल्क देय नही है। 

* नये कानून में उत्पादक किसान एवं क्रेता-उपभोक्ता के मध्य कोई बिचैलिया नहीं होगा, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का अधिक मूल्य मिलेगा।

* ए0पी0एम0सी0 यानी राजकीय मंडियों तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (डैच्द्ध में कोई परिवर्तन नहीं है यानी ये यथावत रहेंगे । किसानों को नये विकल्पों के अतिरिक्त पूर्व की तरह राजकीय मण्डी (ए0पी0एम0सी0) में बेचने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद केन्द्र पर बेचने का विकल्प यथावत रहेगा। इसका प्रमाण है कि भारत सरकार द्वारा खरीफ एवं रबी 2020 में फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य ¼MSP)  घोषित की गई है और घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (¼MSP पर गेहूॅ का क्रय किया गया है तथा धान का क्रय किया जा रहा है।

    वर्तमान व्यवस्था में निम्नलिखित प्राविधान एवं कमियां थीं।

* किसान राजकीय मंडियों (कृषि उत्पाद बाजार समितियाॅ-APMC's)  में अपने उत्पाद अधिकृत कमीशन ऐजेन्ट (आढ़तिया) के माध्यम से बेचने को मजबूर होते थे। 

* वर्तमान में लगभग 6 प्रतिशत किसान ही राजकीय मंडियों ¼APMC) / न्यूनतम समर्थन मूल्य (डैच्द्ध का लाभ ले पाते हैं ।

* उचित भण्डारण के अभाव में किसान को जबरन कम कीमत पर अपने उत्पाद को बेचना पडता था।

* किसान अधिकृत एजेन्टों को बेचने के लिए मजबूर था। पंजाब, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश में इन्हें आढ़ती कहा जाता है। सिर्फ बिहार, केरल, मणिपुर, लक्ष्यद्वीप, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा दमन एवं दीव में मंडियां नहीं हैं।

* राजकीय मंडियों में किसान को अपने उत्पाद को बेचने के लिए मंडी शुल्क, परिवहन शुल्क इत्यादि के नाम पर लगभग 8.5 प्रतिशत देना पड़ता है।

* कमीशन एजेन्टों किसानों से उत्पाद बिक्री से मिलने वाले कुल रकम में से 1.5 से 3.0 प्रतिशत तक की कटौती उत्पाद की सफाई, छटाई और अनाज का ठेका के नाम पर करते थे। मंडियां ऐजेन्टों से फीस वसूलती हैं।

* देरी से खरीद की दशा में किसान बाजार मूल्य पर फसलों को बेचने पर मजबूर हो जाता है।

नये कानून के लाभ

* अब उत्पादक किसान स्वयं बाजार का चुनाव कर सकते हैं। 

* फसलों की सीधी बिक्री से एजेन्ट को कमीशन नहीं देना होगा।

* अब उत्पादक किसान अपने या दूसरे राज्य में कोल्ड स्टोर, भण्डार गृह, प्रंसस्करण ईकाईयों को अपना उपज स्वयं बेच सकेगें।

* उत्पादक बाजार तथा उपभोक्ता के बीच कोई बिचैलिया न होने से किसान के साथ-साथ आम जनता (उपभोक्ता) को भी लाभ होगा। 

* अब किसान को न मंडी शुल्क, न लेबी और न ही परिवहन शुल्क देना होगा।

* किसानों को अधिक लाभ होने से निवेश बढ़ेगा।

* प्राईवेट मंडियों के आने से राजकीय मंडियों (APMC)  को ज्यादा प्रतिस्पर्धी होना पड़ेगा जिससे उनमें सुधार होगा।

* कृषक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।

कृषि सुधार कानूनों का किसान, कमीशन एजेन्ट, राज्य सरकार एवं राजनैतिक दल क्यों विरोध कर रहे हैं? 

* किसान- किसानों को आशंका है कि मुक्त बाजार होने से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम0एस0पी0) प्रणाली तथा सरकारी मंडियाँ (कृषि उत्पाद बाजार समितियाॅ-APMC's) )  खत्म हो जाएगी जिससे किसानों का शोषण बढ़ेगा। 

* कमीशन एजेन्ट- कमीशन एजेन्ट का एकाधिकार एवं मुनाफा खत्म हो जाएगा और वे बेरोजगार हो जाऐंगे।

* राज्य सरकार- राजकीय मंडियों से राज्य सरकारों को राजस्व के रूप में मिलने वाली मोटी रकम (लगभग 10 प्रतिशत) समाप्त हो जाएगी।

* राजनैतिक दल- राजनैतिक सत्तारूढ़ दल के लिए मंडी शुल्क एक मुख्य आय का श्रोत है जिसे सत्तारूढ़ दल खोना नहीं चाहेगा। 

* राजकीय मण्डियां टैक्स के बिना मृत प्राय हो जाएगी।

* उक्त के अतिरिक्त भारतीय खाद्य निगम पर अनुदान (FCI Subsidy)  खत्म हो जाएगी।

* देश के लिए खाद्य सुरक्षा (Food Security  पर विपरीत असर पड़ेगा। 

इसलिए उपरोक्त कारणों  से चारों मिलकर नये कानून तथा वर्तमान केन्द्रीय सरकार का विरोध कर रहे है ।

सुझाव - सम्यक संशोधन एवं सार्थक-सकारात्मक संवाद द्वारा समस्या का समाधान

* किसानों की शंका को दूर करने के लिए राजकीय मंडियों (ए0पी0एम0सी0) एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम0एस0पी0) को कानून के मसौदे में शामिल किया जाय तथा इसे यथावत रखते हुए पारदर्शी बनाया जाये। 

* न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम0एस0पी0) से नीचे खरीद वर्जित हो और इसके उल्लंघन पर दण्डात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए।

* न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम0एस0पी0) के लिए अलग से कानून बनाया जाए।

* राज्य सरकारों को अधिकार दिए जाऐं कि वे निजी मण्डियों के पंजीकरण की व्यवस्था लागू कर सकें तथा साथ ही ऐसी मण्डियों से राज्य सरकारें सरकारी मंडियों (कृषि उत्पाद बाजार समितियाॅ-APMC's) की भांति शुल्क की दरें निर्धारित कर सकें।

* किसानों के हित मे राज्य सरकारें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार नियम बना सकें।

* कृषि लगात एवं मूल्य आयोग(ACPC)  को संवैधानिक दर्जा दिया जाय तथा इसकी सिफारिशें बाध्यकारी होनी चाहिए।

* निजी और सरकारी दोनों मण्डियों में टैक्स एवं शुल्क के प्रावधानों में समानता होनी चाहिए।

* अगर किसान आढ़तियों पर विश्वास कर सकतें हैं तो कार्पोरेट पर विश्वास करने में कोई हर्जा नही होना चाहिए।

* पूरे देश में, एक राष्ट्र-एक न्यूनतम समर्थन मूल्य (One Nation-One MSP) होना चाहिए।

2. मूल्य आश्वासन पर किसान (सशक्तिकरण और सुरक्षा) समझौता कानून 2020, जिसे अनुबंध कृषि  कान्ट्रैक्ट फार्मिंग या संविदा खेती अथवा ठेका खेती कहा जा सकता है।

मूल्य आश्वासन पर किसान (सशक्तिकरण और सुरक्षा) समझौता कानून 2020, बनने के बाद अब किसान अनुबन्ध के आधार पर खेती करने के लिए आजाद है। 

प्रावधान

* अनुबन्ध खेती, पूर्व एवं वर्तमान में प्रचलित बटाई खेती का लिखित रूप में सुधरा हुआ प्रावधान है।

* संविदा कृषि के तहत किसानों को उनके होने वाले कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के  लिए, कृषि व्यवसायिक फर्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं , निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबन्ध करने का अधिकार मिलेगा। 

* कान्ट्रैक्ट फार्मिंग से खेती का जोखिम कम होगा और आय में वृद्धि होगी तथा निजी ऐजेन्सियों को उत्पाद खरीदने की अनुमति देगी। 

* अनुबन्ध केवल उपज के लिए होगा न कि किसान की जमीन के लिए होगा। 

* किसान अपनी इच्छा के अनुरूप फसल का दाम तय कर उपज बेच सकेगा। 

* कान्ट्रैक्टर को किसानों को उपज बेचने के बाद तीन दिन में भुगतान करना होगा। 

* अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता युक्त बीज, खाद, रसायन, ऋण की सुविधा तथा फसल बीमा कीे सुविधा उपलब्ध करायी जाऐगी। इससे कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीक को बढावा मिलेगा। 

* विवाद निपटारे के लिए  SDM  के यहाँ त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है। 

* किसानों को संगठित एवं शोषण से मुक्त करने के लिए भारत सरकार ने 10000 सशक्त कृषक उत्पादक संगठन ¼FPO)  बनाने की घोषणा की है। 

* संविदा खेती के अन्तर्गत किसान के खेत पर कान्ट्रैक्टर द्वारा कोई निमार्ण कार्य नही किया जा सकता है। 

* किसान अपना समझौता कभी भी तोड सकते है जिसके लिए जुर्माना देय नहीं होगा। 

* कम्पनियों को तय कीमत का भुगतान करना होगा न देने पर जुर्माना देय होगा। 

* बाजार मूल्य ज्यादा होने पर बढ़ा मूल्य देना होगा।

* कीमत तय करने में किसानों की भूमिका बराबर की होगी।


वर्तमान व्यवस्था में निम्नलिखित प्राविधान एवं कमियां थीं। 

* मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है। 

* फिलहाल निर्यात होने लायक आलू, गन्ना, कपास, चाय, काफी, फूलों के उत्पादन के लिए ही अनुबन्ध किया जाता है। 

* कुछ राज्यों में मौजूदा कृषि कानून के तहत अनुबंध कृषि नियम बनाए है। 

कानून के लाभ

* किसान आपसी सहमति से फसल बुआई से पहले ही उसकी कीमत तय करते हुए खरीददारों से लिखित समझौता 1-5 साल तक के लिए कर सकेंगे। 

* इससे न्यूनतम मूल्य की गारंटी होगी और किसानों का जोखित खरीददार उठाएगें ।

* खरीददार बुआई से पहले रणनीति बनाकर कृषि निवेश खाद, बीज की व्यवस्था कर सकेंगे।

* बाजार मूल्य ज्यादा होने की दशा में अधिक मूल्य किसान को मिलेगा।

* विवाद की स्थिति में तय सीमा के अन्दर उप जिलाधिकारी (SDM)  को प्रकरण का निस्तारण करना होगा।

* किसानों विशेष रूप से सीमान्त एव छोटे किसानों को सशक्त बनाने के लिए 10000 कृषक उत्पादक संगठन ¼FPO)  का गठन होगा।

* विदेशों में विशेष रूप से यूरोपीय ठंडे देशों में बाजार उपलब्ध होगा।

विरोध क्यों

* फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति में बड़ी कम्पनियाँ लाभ उठाने का प्रयास करेगी।

* बड़ी कम्पनियाँ छोटे एवं सीमान्त कृषकों (85 प्रतिशत) के साथ समझौता करने में हीला हवेली करेंगे एवं शोषण करेंगे। 

* किसान मालिक से मजदूर हो जाएगा जैसे अंग्रेजों ने भारतीयों को गुलाम बनाया।

* विवाद एवं मुकदमें की दशा में उप जिलाधिकारी (ैक्डद्ध की शक्तियों एवं लाल फीता नौकरषाही में वृद्धि होगी।

* कीमत तय करने में बड़ी कम्पनियों दादागिरी करेगी।

* सिविल कोर्ट, हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जाने की छूट नहीं है।

सुझाव 

* सीमान्त एवं छोटे कृषकों का कृषक उत्पादक संगठन ;थ्च्व्द्ध बचाकर कम्पनियों के खिलाफ बराबरी के लिए सशक्त किया जाय। सशक्त थ्च्व् कम्पनियों से मोल भाव कर सकेगी।

* संविदा खेती का मसौदा सरल एवं स्थानीय भाषा में हो ताकि किसान पढ़ समझकर मसौदे पर हस्ताक्षर कर सके।

* विवादों के कारण बादों का निस्तारण समय से किया जाये तथा ऐसा न करने पर सम्बिधित अधिकारी को दंडित करने का प्रावधान किया जाए।

* किसान एवं खरीददार के बीच विवाद की दशा में सिविल कोर्ट, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट जाने का अनुबन्ध खेती मसौदा में प्राविधान हो।

* सख्त कानून के क्रियान्यवन से किसानों के हित सुरक्षित रहेंगे।

आवश्यक  वस्तु संशोधन कानून 2020 जिसको हम असीमित भंडारण के रूप में समझ सकते हैं।

देश में भण्डारण EC Ac 1955 की सीमा तब तय की गई थी जब देश में अनाज का संकट था। देश में अब तो वर्तमान में सरप्लस खाद्यान्न एवं फल उत्पादन हो रहा है। इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज, आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। इस प्रावधान से कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा। इससे कीमतों में स्थिरता आऐगी तथा स्वस्थ प्रतिस्पर्धा शुरू होगी। युद्ध, सूखा, अप्रत्याक्षित मूल्य वृद्धि एवं प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी अर्थात इन स्थितियों में केन्द्र सरकार आवश्यक वस्तुओं का नियंत्रण करती रहेगी। 

प्राविधान

* यह कानून असीमित भण्डारण का विकल्प देता है।

* नया कानून आने के बाद भी केन्द्र सरकार युद्ध, दैवीय आपदा, सूखा, बाढ़, आकाल, अप्रत्याशित 50 प्रतिशत मूल्य वृद्धि की दशा में आवश्यक वस्तुओं का नियंत्रण करती रहेगी।

* अब अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज, आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। कोई आधार कार्ड होल्डर किसी उत्पाद असीमित भण्डारण कर सकता है।

* कृषि निवेश बढ़ेगा। 

* कीमतों में स्थिरता आएगी। 

* स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा होगी।

* अब अन्न सरप्लस हो गया है।

* 10000 करोड़ का निवेश होगा।

वर्तमान खरीद व्यवस्था

* बीसवीं सदी के पांचवे दशक (1950-60 ) के बीच अनाज की किल्लत से जाने के कारण आवश्यक वस्तु अधिनियम (म्ब् ।बजद्ध 1953 में लागू किया गया था।

* प्राचीन काल में किसान भण्डारण के लिए स्वंतंत्र था लेकिन लार्ड कार्न वालिस ने युद्ध एवं विपदा की दशा में अन्न भण्डारण पर रोक लगाई थी।

* देश में 1 जून 2020 को 97.3 डज् अनाज का रिकार्ड भण्डारण था ।

* 2019-20 में 39 MT गेहूँ 76 MT धान का क्रय से PDS  के माध्यम से कोरोना संकट में सभी को पर्याप्त अनाज उपलब्ध कराया गया।

* अन्न सरप्लस है।

कानून के लाभ

* कानून के बाद निवेश बढे़गा।

* कोल्ड स्टोर, वेयर हाउस भण्डार, प्रसंस्करण की व्यवस्था दुरूस्त होगी।

* खाद्य आपूर्ति श्रंखला से कीमतांे में स्थिरता आएंगी। यानी फसल अच्छी होने की दशा में कीमत बहुत कम नहीं होगी और फसल खराब होने की दशा में कीमत बहुत कम नहीं होगी।

* भण्डारण की अच्छी सुविधा के बाद अनाज की बर्बादी भी कम हो जाती है।

विरोध क्यों

* कम्पनियों उपभोक्ताओं को अधिक मूल्य पर खाद्यान्न बेंचेगी और आम आदमी की मुश्किले बढ़ेगी।

* असामान्य परिस्थितियों अकाल, बाढ़, युद्ध कोरोना काल मंे कीमते इतनी अधिक हो जाऐंगी कि कृषि उत्पादों को हासिल करना आम आदमी के बस के बाहर होगा।

* आवश्यक वस्तुओं के असीमित भण्डारण की छूट से कारपोरेट/कम्पनियाँ फसलों की कीमत को कम कर सकते है।

सुझाव 

* भारतीय खाद्य निगम ;थ्ब्प्द्ध के माध्यम से भण्डारण एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली (च्क्ैद्ध को सुधार के साथ जारी रखा जाय।

* क्रय केन्द्रों के माध्यम से मण्डियों एवं भारतीय खाद्य निगम ;थ्ब्प्द्ध इत्यादि के गोदामों में  डैच् ैजवबा पर भण्डारण अवश्य रखा जाय।

* निर्यात नीति को तय करना होगा।

उपसंहार-ः इन तीनों कृषि सुधार के बिलों पर लोक सभा में एवं राज्य सभा में 12 घंटे सजीव बहस हुई तथा पूर्व में लगभग सभी विपक्षी दलों की मांग इन कृषि सुधारों के पक्ष में रही है। लेकिन निहित स्वार्थों के कारण इन तीनों कानूनों में आवश्यक बदलाव के स्थान पर इन्हें समाप्त करने के लिए आन्दोलन हो रहा है जिससे कानून व्यवस्था एवं रोज मर्रा की जिन्दगी पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। सुझाव है कि इन कृषि कानूनों के खूबियों-खामियों पर सम्यक चर्चा एवं संवाद कर सम्यक संशोधन द्वारा समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए तथा किसानों के हितों को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 

‘‘हमारा विकास सतत, टिकाऊ एवं सर्वसमावेशी होना चाहिए‘‘- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी।

पद्मश्री प्रगतिशील कृषक श्रीराम शरण वर्मा का कथन है कि ‘‘कृषि उत्पादक संगठनों एवं प्रगतिशील किसानों के लिए तीनों कृषि कानून वरदान साबित हुए हैं।‘‘

मैं अपनी बात 85 वर्ष की उम्र में भी जिन्दादिल इन्सान एवं लोकप्रिय अभिनेता धर्मेन्द्र के वक्तव्य से समाप्त करना चाहूॅगा। ‘‘एक म्युचुअल डाॅयलाग से समस्या का हल निकल सकता है।‘‘

सम्यक संशोधन-सार्थक संवाद से समस्या समाधान सम्भव है।


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