हंसते रहो हृदय का दुःख दबाकर!
- डा0 जगदीश गांधी, प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
(1) जीवन में जितनी विपत्तियाँ आये उतनी दृढ़ता बढ़ती जानी चाहिए:-
परमात्मा की ओर से संसार में आये सभी अवतारों राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह को प्रभु की राह में भारी दुःख झेलने पड़े थे। घर-वार सब कुछ चैपट हो जाने तथा भयंकर शारीरिक कष्टों में भी वे प्रभु की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने का एकमात्र कार्य जीवन पर्यन्त करते रहे। सांसारिक सुख के लिए अनन्त काल के आत्मा के जीवन को उन्होंने कभी दांव पर नहीं लगाया। परमात्मा दर्शन दे दो कि प्रार्थना हम रोजाना कई बार करते हैं। परमात्मा जब राम के रूप में दर्शन देने को अवतरित हुआ तब हमने उन्हें 14 वर्ष का वनवास दे दिया। परमात्मा जब कृष्ण के रूप में दर्शन देने के लिए संसार में अवतरित हुआ तो हमने उन्हें अनेक प्रकार से कष्ट दिया। कृष्ण को धरती पर बढ़ते अन्याय के स्थान पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत की रचना करनी पड़ी। कृष्ण जीवन पर्यन्त लोक कल्याण के लिए मुसीबतों से जुझते रहे।
(2) परमात्मा के अवतार जब दर्शन देते हैं तो हम उन्हें पहचानते नहीं:-
बुद्ध ने जब दर्शन दिये तो उनके शिष्यों ने उन्हें पाखण्डी कहकर अकेला छोड़ दिया। ईशु ने दर्शन दिये तो लोगों ने उन्हें सूली पर ठोक दिया। मोहम्मद साहेब ने दर्शन दिये तो उन्हें कई प्रकार से कष्ट दिये गये। नानक ने दर्शन दिये तो उन्हें भी जीवन पर्यन्त अनेक कष्ट उठाने पड़े। परमात्मा जब बहाउल्लाह के रूप में अवतरित हुआ तो उन्हें 40 वर्षो तक कारावास में डाल दिया गया। वह कारावास से ही अपनी लेखनी के द्वारा सारे विश्व को प्रभु सन्देश देते रहे। परमात्मा जब जब दया करके राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह आदि के रूप में अवतरित हुआ हमने उन्हें वनवास, सूली, कारावास के अलावा तरह-तरह से कष्ट दिये। यह संसार एक पागलखाना है जब कोई आध्यात्मिक चिकित्सक अवतार या महापुरूष के रूप में हमारा इलाज करने आते हैं तो हम अपने रक्षक को ही नहीं पहचानते और उन्हें अनेक प्रकार से कष्ट देते हैं। इस लिए प्रभु अवतारों के लिए कहा जाता है कि जब जब राम ने जन्म लिया तब तब पाया वनवास।
(3) परमात्मा की तरफ मुड़ने का एक ही मार्ग है जीवन में घनघोर दुखों का आना:-
सभी अवतारों का असली धन तथा सम्पत्ति लोक कल्याण से ओतप्रोत आत्मा का बल होता है। वे धैर्यपूर्वक दुखों को सहन करते हैं। दुखों की कहानियों से अवतारों का हृदय भरा पड़ा होता है। प्रभु की राह में दुखों को झेलना ही असली सम्पत्ति है। अवतारों के पास प्रभु मार्ग में सहे दुखों के गोदाम के गोदाम भरे पड़े होते हंै। दुःख ही इनका असली धन तथा अपार शक्ति होती है। अवतारों के पास त्याग का बल तथा सहन करने का बल होता है। ये हमें प्रभु मार्ग में अपार कष्ट सहते हुए प्रभु का कार्य हर पल करने की प्रेरणा देते हंै।
(4) महापुरूषों की सम्पत्ति भी परमात्मा की राह में उनके द्वारा झेले अपार दुःख होते हैं:-
संसार के लोग भौतिक लाभ के लिए अपने सगों को भी दुःख देते हंै। प्रभु मार्ग पर चलने के कारण मीरा को उसके पति राणा ने अपार कष्ट दिये। मीरा ने सहर्ष जहर का प्याला पी लिया। मदर टेरेसा तथा स्वामी विवेकानंद का खजाना असहाय तथा पीड़ित लोगों के लिए झेले दुःख थे। उन्हें प्रभु राह पर चलने के कारण तरह-तरह की यातनायें झेलनी पड़ी थी। सुकरात ने सहर्ष जहर का प्याला पी लिया। गाँधी जी के पास भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े लोगों के लिए झेले दुःखों का सबसे बड़ा खजाना था।
(5) सुने सबकी पर करंे परमात्मा के मन की:-
अब्राहम लिंकन का बचपन अत्यन्त ही गरीबी में बीता था। वह गोरे-काले के भेदभाव को मिटाने तथा प्रजातांत्रिक व्यवस्था कायम करने के लिए वर्षो दुःख झेलते रहे। अब्राहम लिंकन ने अपने पुत्र के हैड मास्टर के नाम एक प्रेरणादायी पत्र लिखा था। यह पत्र इस बात का प्रमाण है कि राजनीति में अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद भी उन्हें अपने पुत्र के जीवन एवं भविष्य की कितनी अधिक चिन्ता थी। वह पत्र इस प्रकार है - आदरणीय हैड मास्टरजी, मेरे बेटे को विश्वास दीजिये कि विजय के झंडे के नीचे खड़े होने को दौड़ती भीड़ में शामिल न होने का साहस जुटाये। और यह भी समझाइये उसे कि सुने सबकी, हर एक की......पर छान ले उसे सत्य की चलनी में और छिलका फेंककर ग्रहण करे विशुद्ध सार। बन पड़े तो उतारिये उसके मन में- ‘हंसते रहो हृदय का दुख दबाकर।’
(6) अपनी आत्मा को किसी भी परिस्थिति में कमजोर नहीं होने देना चाहिए:-
अब्राहम लिंकन पत्र में आगे लिखते है कि कहिये कि आंसू बहाते शरमाये नहीं वह........सिखाइये उसे, ओछेपन को ओछा मानना और चाटुकारी से सावधान रहना। उसे पक्की-पूरी तरह समझाइये कि खूब कमाई करे ताकत और अक्ल की लागत से, लेकिन कभी भी न बेचे अपना हृदय, अपनी आत्मा। धिक्कारती हुई आती है भीड़ अगर, तो अनदेखा करना सिखाइये उसे, और लिखिए उसके हृदय पर जो सत्य जान पड़े, न्यायोचित लगे उसकी खातिर धरती में गड़ाकर पाँव लड़ता रहे, अंत तक। उसे ममता दीजिये मगर लाड़ करके मत बिगाड़िये। आग में जल-तपकर निकले बिना लोहा मजबूत फौलाद नहीं बनता। उसे आदत डालिये कि अधीर होने का धीरज संजोए, और धीरज से काम ले वह और दिखानी है बहादुरी........ हमें विश्वास चाहिए स्वयं का मजबूत तभी जमेगी उदात्त श्रद्धा मनुष्य जाति के प्रति। क्षमा कीजिये हैड मास्टरजी, मैं बहुत बोल रहा हूँ, बहुत-कुछ माँग रहा हूँ......... फिर भी देखिये........ जितना बने, कीजिये जरूर।
(7) जीवन में जितनी विपत्तियाँ आये उतनी दृढ़ता बढ़नी चाहिए:-
प्रभु की राह में आने वाली विषम परिस्थितियों से विचलित नहीं होना चाहिए वरन् इसे ईश्वर की अहैतुकी कृपा मानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। हमें कठोरतम निर्णय करते हुए लोक कल्याण के कार्य में पूरी दृढ़ता से जुट जाना चाहिए। जीवन में जितनी विपत्तियाँ आये उतनी दृढ़ता बढ़ती जानी चाहिए। यहीं शक्तिशाली तथा आध्यात्मिक जगत के विजेता बनने का मार्ग है। हमारे जो निर्णय जनहित के होते हैं वे हमें अंदर से शक्तिशाली बनाते हैं तथा जो निर्णय स्वार्थ से प्रेरित होते हैं वे हमें अंदर से कमजोर बनाते हैं। प्रभु की राह में अवतारों की तरह दुखों से भरा खजाना होना मनुष्य का सबसे अच्छा तथा प्यारा सौभाग्य होता है। परमात्मा से सुख के स्थान पर दुखों को सहन करने की शक्ति मांगनी चाहिए। मनुष्य घनघोर दुखों में ही परमात्मा की तरफ पूरी तरह से मुड़ता है। जीवन में दुःख आये तो समझना चाहिए कि प्रभु की कृपा हम पर बरस रही है। प्रभु की राह में दुखों को झेलने वाले व्यक्ति के अन्तरतम में सुखद अनुभूति होती हैं कि वह धैर्यपूर्वक परमात्मा की राह में चलने के लिए संसारवासियों के द्वारा दिये दुखों को सहन कर रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को बुद्धिमानी तथा युक्तिपूर्वक वह माध्यम चुन लेना चाहिए जिसके द्वारा वह मानव जाति की सेवा अपनी सर्वोच्च शक्ति के साथ कर सकता है। प्रभु की राह लोक कल्याण तथा मानव सेवा है।
(8) हम अकेले नहीं है दयालु प्रभु सदैव हमारे साथ रहता है:-
प्रभु हमारा दाता है। हम परमात्मा की चाकरी करके उसकी रोटी खाते हंै। हमें हर पल उसकी शिक्षाओं का पालन नेक नियत से करते हुए मानव जाति की सेवा करना चाहिए। हमें अपने प्रत्येक कार्य एवं व्यवहार को रोजाना सुन्दर प्रार्थना बनाकर प्रभु को अर्पित करना चाहिए। जब जीवन प्रभु का ही दिया है तो स्वार्थरहित होकर उसका कार्य न करें तो किसका करें? संसार की राह में जरा सा भी स्वार्थ आते ही हमारे भौतिक तथा आध्यात्मिक जीवन का विनाश उसी पल हो जाता है।
(9) कठिनाईयाँ मनुष्य को यह ज्ञान कराती है कि वह किस मिट्टी का बना है:-
कठिनाइयाँ एक ऐसी खराद की तरह हैं, जो मनुष्य के व्यक्तित्व को तराश कर चमका दिया करती हैं। कठिनाइयों से लड़ने और उन पर विजय प्राप्त करने से मनुष्य में जिस आत्मबल का विकास होता है, वह एक अमूल्य संपत्ति होती है, जिसको पाकर मनुष्य को अपार संतोष होता है। कठिनाइयों से संघर्ष पाकर जीवन में ऐसी तेजी उत्पन्न हो जाती है, जो पथ के समस्त झाड़-झंखाड़ों को काटकर दूर कर देती है।
(10) यह वक्त न ठहरा है ये वक्त न ठहरेगा, मुश्किलें गुजर जायेगी घबराना कैसा? :-
प्राकृतिक मौसम के समान जीवन का भी मौसम बदलता रहता है। मौसम कभी एक सा नहीं रहता है। ठीक इसी प्रकार जीवन का परिदृश्य भी है। जीवन में सुख व दुख दोनों हैं। दुःख से भागना और सुख में ठहरना, दोनों ही संभव नहीं हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए जो जितना इस देह से और दैहिक सुखों से लिप्त होता है, वह उतना ही दुःख, कष्ट एवं कठिनाईयों को आमंत्रित करता है। परमात्मा के अवतारों के भीषण कष्टों को याद करके दुःख की पीड़ा को लोकहित के कार्यो में मोड़ा जा सकता है।
(11) जीवन का उद्देश्य ज्ञान का प्रकाश फैलाना है:-
सांसारिक दुःखों से उबरने का एक ही मार्ग है। जितना सांसारिक दुःख बढ़े उसी मात्रा में हृदय को प्रभु प्रेम से ओतप्रोत करके और अधिक सुख बाँटना चाहिए। संसार में बुरे लोगों की संख्या बढ़ने का रोना रोने से अच्छा है कि हम अच्छे लोगों की संख्या में वृद्धि करने में अपनी सारी ताकत झोंक दें। परमात्मा की ओर से संसार में आये सभी अवतारों तथा महापुरूषों को प्रभु की राह में भारी दुःख झेलने पड़े थे। घर-वार सब कुछ चैपट हो जाने तथा भयंकर शारीरिक कष्टों में भी वे प्रभु की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने का एकमात्र कार्य जीवन-पर्यन्त युग-युग में बार-बार आकर करते रहे। सांसारिक सुख के लिए अनन्त काल के आत्मा के जीवन को उन्होंने कभी दांव पर नहीं लगाया। अवतार धरती पर जन्म लेने के अपने परम उद्देश्य को पूरा करके वापिस परमात्मा के पास लौट जाते हैं। सभी महान धर्मो में यह बात स्पष्ट रूप से बतायी गयी है कि परमात्मा अबकी बार अपनी पूरी आभा के साथ धरती पर आयेगा। मानव जाति के उद्धार के लिए इस युग का अवतार सभी महान धर्मो की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए धरती पर आ चुका है। हर व्यक्ति को युग अवतार की पहचान तथा खोज भारी कष्ट उठाकर स्वयं करनी पड़ती है। किसी के बताने से युग अवतार की पहचान नहीं होती।
(12) नौकरी तथा व्यवसाय हमारी आत्मा के विकास का सशक्त माध्यम है:-
मनुष्य को सांसारिक दुखों को हंसते हुए सहते हुए अपनी सोच, चिन्तन तथा कार्य-व्यवसाय के द्वारा जीवन-पर्यन्त प्रतिदिन पवित्र बनने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रयास से हमारी आत्मा पवित्र होती है। संसार में जीने की इसके अलावा कोई सही राह नहीं है। साधारण व्यक्ति घबराकर प्रभु मार्ग छोड़ देते हैं। प्रिय मित्रों, आज हमें अपनी खेती-वाड़ी, मेहनत-मजदूरी, नौकरी, उद्योग या व्यवसाय करते हुए अपनी आत्मा का निरन्तर विकास करना चाहिए।