गन्ना किसानों को खुशहाल बनाने में भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान का योगदान


बसन्त पंचमी के शुभ अवसर पर भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थानए लखनऊ अपना 70वां स्थापना दिवस समारोह मना रहा है। भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थानए लखनऊ की स्थापना 16 फरवरी 1952 को गन्ने पर शोध एवं समन्वयन के उद्देश्य से की गई थी तथा 1 अप्रैल 1969 को यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषदए नई दिल्ली को हस्तान्तरित कर दिया गया था। पिछले सात दशकों में संस्थान द्वारा विकसित तकनीकों के व्यापक प्रयोग से गन्ने की औसत उपज में ढाई गुनाएचीनी उत्पादन में तीन गुना तथा गन्ना उत्पादन में आठ गुना वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है तथा हरित ऊर्जा के लिए भविष्य में गन्ना की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।  संस्थान द्वारा विकसित उन्नत किस्में कोलख 94184 (बीरेन्द्र) कोलख 9709, कोलख 11203, कोलख 11206, कोलख 12207, कोलख 12209, कोलख 14201 एवं कोलख 14204 की 2–3  लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जा रही है। सिर्फ कोलख 94184 किस्म की खेती से उत्तर प्रदेश व बिहार के किसानों को 303 करोड़ रूपये प्रति वर्ष का आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहा हैं। संस्थान द्वारा  बिहार सरकार के गन्ना मिलों के साथ पीपीपी मोड के अंतर्गत हुए समझौते से संस्थान ने बिहार में गुणवत्तापूर्ण गन्ना बीज उत्पादित करके गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। प्रत्येक वर्ष संस्थान लगभग 40,000.50,000 कुंतल गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादित करके चीनी मिलों एवं किसानों के मध्य बांट रहा है जिसके परिणामस्वरूप गन्ना उपज तथा चीनी उत्पादन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है ।

संस्थान ने गन्ने की बुवाई की गोल गड्ढ़ा विधिए ट्रैंच विधिए फर्ब विधिए स्पेस्ड ट्रान्सप्लान्टिग  तकनीक तथा पॉलीबैग  प्रणाली जैसी कई विधियाँ विकसित की हैं। गन्ने की बुवाई की ट्रैंच विधि यान्त्रिक कृषि हेतु उपयुक्त होने के साथ.साथ कम मजदूरों की आवश्यकता व अधिक जल उपयोग क्षमता के कारण अत्यन्त प्रभावी सिद्ध हुई है। संस्थान गन्ना खेती में विभिन्न प्रकार की अतः सहफसली खेती को बढ़ावा दे रहा है। लाल सड़नए कडुँआए उकठाए आर.एस.डी. मोजेक व घासी प्ररोह रोग (जी.एस.डी) गन्ने की फसल के प्रमुख रोग हैं। गन्ने को 540 से तथा 95.99 प्रतिशत सापेक्षिक आर्द्रता पर ढाई घंटों के लिए संस्थान द्वारा विकसित नमीयुक्त गर्म वायु एम.एच.ए.टी.यंत्र  से उपचारित करने पर बीजजनित रोगों का 99.100 प्रतिशत तक उन्मूलन कर देता है। गन्ने में बेधक कीटों के प्रभावी प्रबंधन के लिए एक समेकित नाशीकीट प्रबंधन विधि विकसित की गई है। पाइरिलाए ऊनी माहूए स्केल कीट तथा बेधक समूहों की बड़ी संख्या में जैव नियंत्रण हेतु विभिन्न पराश्रयी तथा परजीवियों की बड़ी संख्या में निर्गत तथा संरक्षित किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों में उनकी आवश्यकतानुसार जैव नियंत्रण प्रयोगशाला भी विकसित की गई हैं। संस्थान का जैवनियंत्रण केंद्र प्रवरानगर ( महाराष्ट्र ) में जैव नियंत्रण पर शोधरत है। 

 गन्ने की कटाई के उपरान्त होने वाली सुक्रोज क्षति को रोकने हेतु सोडियम मेटासिलिकेट 0ण्05 प्रतिशत व बैजलकोनियम क्लोराइड 0.02 प्रतिशत के छिड़काव को 5,000 टन पेराई क्षमता वाली कई चीनी मिलों में अपनाया जा रहा है जिससे चीनी परता में 0.3 से 0.5 इकाई की वृद्धि हुई है। गन्ने की बुवाई क्रियाओं के यंत्रीकरण में संस्थान ने अपनी सशक्त उपस्थित दर्ज कराई है। संस्थान द्वारा विकसित टैक्टर चालित रिजर टाइप शुगरकेन कटर प्लान्टर गन्ने की बुवाई में समाहित सभी प्रमुख कार्यों का सफलतापूर्वक निष्पादन करने से बुवाई क्रियाओं में आने वाली लागत में 60 प्रतिशत की बचत होती है। रेज्ड बैड सीडर कम शुगरकेन कटर.प्लान्टर के विकास से गेहूँ एवं गन्ने की बुवाई एक साथ संभव हो सका हैए जिससे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान लाभान्वित हुए हैं। सिंचाई में पानी की बचत के लिए ट्रैन्च विधि द्वारा बुआई तथा एकान्तर कूँड़ विधि द्वारा सिंचाई करने से लगभग  36.5 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है तथा जल उपयोग क्षमता में भी लगभग 64 प्रतिशत का सुधार होता है। इसके साथ ही गन्ना की पेड़ी प्रबंधन हेतु प्रौद्योगिकी पैकेज विकसित किया गया है। तथा उत्पाद विविधीकरण हेतु संस्थान द्वारा गुणवत्तायुक्त गुड़ उत्पादन की तकनीक विकसित करके समय दृ समय पर प्रशिक्षण के माध्यम से प्रसारित की जा रही है। 

संस्थान ने किसानों की आय को दोगुना करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी की महत्वाकांक्षी योजना में सकारात्मक प्रयास करते हुए डीएससीएल शुगर्स के साथ पीपीपी मोड के अंतर्गत एक समझौता किया है जिसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के दो जनपदों हरदोई एवं लखीमपुर खीरी के आठ गाँवों को अंगीकृत करके विभिन्न वैज्ञानिक एवं तकनीकी हस्तक्षेपों से किसानों की आय में सार्थक वृद्धि की जा रही है। गत तीन वर्षो में गन्ना खेती से ही किसानों की आय रु० 70,000ध् प्रति हेक्टेयर से बढ़कर रु० 1.30 लाख प्रति हेक्टेयर हो गयी है। इस परिणाम से उत्साहित होकर अब इसी चीनी मिल के समूह के साथ किए गए एक अन्य समझौते के अनुसार अब संस्थान 20 गाँवों के गन्ना किसानों की आय को तीन वर्ष में दोगुना करेगा। किसानों को गन्ना खेती की नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संस्थान द्वारा कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्तए प्रायोजित भ्रमण कार्यक्रमों के अंतर्गत प्रतिवर्ष हजारों कृषक गन्ना विकास कार्यकर्ता एवं विद्यार्थी संस्थान प्रक्षेत्र का भ्रमण कर गन्ना बीज की उन्नत खेती की नवीनतम जानकारी प्राप्त करते हैं। केन नोडए बडचिप तथा टिशु कल्चर जैसी उन्नत विधियों से नई किस्मों का गुणात्मक संवर्धन तथा उत्पादन के लिए वृहद पैमाने पर प्रचारदृप्रसार किया जा रहा है। मशीनीकरण को बल देनेए ग्रामीण क्षेत्रों में मशीनों की मरम्मत एवं रख.रखाव तथा उच्च गुणवत्तायुक्त गुड़ बनाने में युवाओं को उद्यमी के रूप में विकसित करने हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है। संस्थान ने गन्ना कृषि में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न कृषि यंत्रों को किसानों तक सुविधाजनक उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न कृषि यंत्र निर्माताओं से समझौते किए हैं। संस्थान द्वारा विकसित विभिन्न माइक्रोबियल कन्सोर्शिया का उपयोग करते हुए जैव संवर्धित उर्वरक के औद्योगिक उत्पादन हेतु इंडो गल्फ फर्टिलाइज़र्स के साथ समझौता किया गया है। संस्थान आईटीसी एवं बलरामपुर चीनी मिल समूह के साथ मिलकर किसानों को लाभ पहुँचाने के लिए प्रस्ताव बनाकर समझौता पत्रों पर शीघ्र ही हस्ताक्षर करेगा। संस्थान ने कोरोना काल में गन्ना विकासए आत्मनिर्भरताए टिकाऊ विकास एवं गांधी दर्शन जैसे विषयों पर विभिन्न वेबिनार भी आयोजित किए जिससे ज्वलंत समसामायिक मुद्दों पर समाज मे विभिन्न वर्गो को जागरूक करते हुए राष्ट्र विकास की मुख्य धारा में संस्थान अपना योगदान दे सके। किसान दृ हित कार्यक्रम को इस वर्ष 2021 में और गति प्रदान की जाएगी। 

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ब्राह्मण वंशावली

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा