अश्वमेध

 

  डा. आनन्द त्रिपाठी 

पूर्व कृषि निदेशक 

अश्वमेध 

बधाई हो, महाराज !

हम फिर जीत गये ।

बज रही है दश दिश

हमारी विजय दुंदुभी,

तक्षशिला से कामरूप 

कश्मीर से कन्याकुमारी 

बंग,कलिंग, केरलपुत्र, सतियपुत्र 

सौराष्ट्र,विदर्भ, मध्य देश 

आटविक क्षेत्र,सिंधु और समूचे 

गंगा यमुना के मैदानों तक ।

दौड़ रहा है हमारा अविजित अश्व

निरंतर सबको रौंदता हुआ। 

मगर यह क्या ?

सब ज़न स्तब्ध हैं 

नहीं जला रहा कोई दिये 

बज नहीं रहे नक्कारे 

और शंख घोष। 

लगता है जनपदों में 

नहीं रह गया है कोई 

महाराज ! ताज मुबारक हो ।

अच्छा है ! जितने हों 

रोग शोक में डूबे लोग,

विप्लव की सोच नहीं सकते ।

हम जानते हैं इनकी याददाश्त को 

हम मल देंगे उनके घावों पर 

वादों के ढेरों मरहम 

कुछ दिन बाद

वे सब भूल जाएंगे ।

फिर उठाएंगे हमारा विरुद

और करेंगे चारण घोष

आप निश्चिंत रह सकते हैं महाराज 

आत्मरति में डूबे हुए 

इसअंतराल में !

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