कोरोना संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार की पहल

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में लखनऊ में लगातार लोग एक दूसरे की मदद को सामने आ रहे हैं।कहते हैं कि खून के रिश्ते बहुत ग़हरे होते हैं। हालात चाहे जो भी हो वे  हमेशा अपनों के साथ होते है। लेकिन कोविड महामारी में कुछ लोग ऐसे भी हुए जिन्होंने अपनों को उस वक्त छोड़ दिया जब जीवन में आखिरी बार उनके अपनो को कंधे का सहारा चाहिए था.कोरोना महामारी के दौरान हुई मौतों में कुछ मामले ऐसे भी आए जब कुछ लोग अपनों के अंतिम संस्कार की आखिरी रस्म निभाने भी नहीं आए।कुछ के पास पैसों की मज़बूरी थी तो कुछ अपने आप को को संक्रमण के ख़तरें में नहीं डालना चाहते थे। लखनऊ के अभिषेक गुप्ता ने कोरोना से हुई मृत्यु के बाद एसी ही  लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कराने का फैसला किया।  इस काम में अभिषेक के साथ उनके दोस्त करुणेश पाठक और अनिल मिश्रा भी शामिल हैं। लखनऊ में यह लोग ग़रीब-बेसहारा लोगों के यहां हुई कोरोना से मौत पर शव का अंतिम संस्कार कराते है साथ ही इस काम में होने वाला खर्च भी स्वंय उठाते हैं।

लखनऊ के राजाजीपुरम में महेश चंद्र अग्रवाल (84) की मृत्यु कोरोना की वजह से हुई। लेकिन उनके अंतिम संस्कार के लिए कोई सामने  नहीं आया। आखिर में उनकी बेटी ने सोशल मीडिया पर अभिषेक से संपर्क किया जिन्होंने अपने दोस्तों  के साथ मिलकर महेशचंद्र अग्रवाल का अंतिम संस्का्र किया। अभिषेक और उनके दोस्तक करुणेश पाठक, सन्नीम साहू, शशांक शुक्ला, रमेश त्रिपाठी और राघव कुमार खुद की पीपीई किट पहनकर शव को श्मीशान घाट ले जाते हैं और वहां उनका अंतिम संस्कार करते हैं। अभिषेक लखनऊ के उन तमाम लोगों में से एक हैं जो जरूरतमंदों को मुफ्त में खाना, दवाएं, ऑक्सिजन सिलिंडर, ऐम्बुरलेंस सर्विस मुहैया कराते हैं।
अभिषेक और उनके दोस्तों ने बताया कि उन्होंने अखबार में एक खबर पढी थी कि जौनपुर में एक बुजर्ग व्यक्ति अपने बेटे की लाश को साईकिल से ले जा रहा था ताकि गांव के बाहर उसका अंतिम संस्कार कर सके।उस बुढे शख्स की मदद किसी ने नहीं की ।इस घटना ने अभिषेक को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने यह फैसला लिया कि अब वे एसे ही लोगों की मदद करेंगे।अभिषेक द्वारा की जा रही ये मदद एक नजीर बन गयी है और अब अन्य युवा भी इस मुहिम में उनके साथ जुड़ रहे है।

श्रीकांत श्रीवास्तव/सुन्दरम चौरसिया

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