गर्मी में मुर्गियो का आहार एंव प्रबन्धन

        डाॅ0 ए0के0 सिंह , प्रसार वैज्ञानिक पशुपालन, के0वी0के0 वाराणसी                                                                   

बढ़ती जनसंख्या की वजह से खेतों का आकार सीमित होता जा रहा है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के सामने बेरोजगारी की समस्या है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का लगातार बड़े शहरों की तरफ पलायन जारी है। शहरों में भी तमाम समस्याओं का सामना करते हुए रु0 7000-10000 प्रति माह ही कमा पाते हैं। इतनी मंहगाई में इतने पैसों में अकेला जीना ही कठिन है। इतनी आय से परिवार का भरण-पोषण कैसे होगा। आज भी गावांे में लगभग 70 प्रतिशत आबादी रहती है। ग्रामीण युवक गांव में रहते हुए मांस उत्पादन के लिए मुर्गी पालन करना चाहते हैं तो 50 फीट लम्बा ˣ 20 फीट चैड़ा ˣ 10 ऊँचाई वाले आवास मंे 1000 चूजों को पाला जा सकता है। इस प्रकार प्रति चूजा (35-40 दिन में 1.0 - 1.5 किग्रा0 तक के हो जाते हैं) रु0 15-20 तक लाभ होता है। इस प्रकार ग्रामीण युवक रु0 15000-20000 प्रतिमाह अपनी आय कमा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में  मांस उत्पादन के लिए मुर्गी पालन की युवाओं के रोजगार सृजन मंे अहम भूमिका हो सकती है। क्योंकि जैसे-जैसे लोगो की आय बढ़ेगी वैसे-वैसे मांस एवं अण्डे की मांग बढ़ेगी।                                                              गर्मी में  पारा चढ़ने के साथ ही ब्रायलर उत्पादन में समस्या आनी शुरू हो जाती है। ब्रायलर में गर्मी के प्रभाव से स्टेªस का असर दिखाई पड़ता है। जब मुर्गियों के आवास के अन्दर का तापक्रम 1000 फारेनहाइट या 360ब पहुँच जाता है, तो मुर्गियों में गर्मी का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इसके कारण चूजे अपने शरीर को ठंडा रखने के लिये लगातार हाँफते रहते हैं और मुंह से सांस लेने लगते हैं। इस कारण श्वास के जरिये खून में पानी की मात्रा कम हो जाती है, मुर्गियांे की धमनियों मंे शीरा जम जाता है जिससे मुर्गी की मृत्यु हो जाती है। दूसरा कारण तेज गति से श्वास लेने के कारण दिल की गति बढ़ जाती है और इसके साथ-साथ छोटी-छोटी धमनियां (शिरायें) फट जाती हैं और चूजे की मृत्यु का कारण बनती है।

कुक्कुट को उसकी आवश्यकतानुसार आवास में सभी साधन प्राप्त होना चाहिए, जिससे चूजों/मुर्गियों से अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके तथा उन पर वातावरण की गर्मी का प्रभाव कम पड़े। चूजों पर वातावरण की गर्मी, सूर्य का प्रकाश, वर्षा तथा गरम हवा का दबाव पड़ता है जिससे सावधान रहना चाहिये। कुक्कुट में स्बेटाग्रन्थि नहीं होती है। उचित तापक्रम को बनाये रखने के लिये यह आवश्यक है कि जितनी गर्मी उत्पन्न हो, उसका उचित ह्रास भी हो अन्यथा मुर्गियांे का तापक्रम बढ़ जायेगा। मुर्गी के अन्दर की गर्मी कन्डक्सन, कन्वेक्सन, सांस द्वारा एवं अण्डा उत्पादन द्वारा 70 प्रतिशत बाहर आती है शेष 300ब तापक्रम हो जाने पर गर्मी मुर्गी के सांस द्वारा बाहर आती है। जब वातावरण में नमी ज्यादा हो जाती है तो मुर्गी की सांस द्वारा आयी नमी को वातावरण शोषित नहीं कर पाता जिससे मुर्गी की सांस की गति तेज हो जाती है।

गर्म मौसम हेतु सावधानियाँः- 

आवास- आवास की लम्बाई पूर्व एवं पश्चिम दिशा मंे होना चाहिये जिससे सूर्य की किरणें कम पड़ें। आवास मे हवा के उचित आवागमन हेतु छत की ऊँचाई निश्चित होनी चाहिए। आवास दोनो तरफ से खुला होना चाहिए। आवास के छत पर गर्मी रोधी केमिकल से पुताई करा देना चाहिए, अगर यह संभव नहीं हो तो आवास की छत पर छप्पर रख देना चाहिए। आवास के बीच मे पेड़ लगाना चाहिए। आवास के चारों तरफ या बीच में एवं किनारों पर लान एवं सजावटी पौधे लगाना चाहिए। आवास की छत पर हरी लताएं चढ़ा देना चाहिए। आवास के दोनो तरफ बोरी के पर्दे लगा देना चाहिए जिन पर दिन में पानी का छिड़काव करना लाभदायक रहता है। गर्मी में अधिक तापक्रम बढ़ जाने पर कूलर का प्रयोग करना चाहिए तथा एक्जास्ट पंखा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

विछावन का प्रयोगः- 

विछावन के लिए धान की भूसी, लकड़ी का बुरादा, एक सप्ताह के चूजों के लिये 3 सेमी0 की तह विछाकर रखना चाहिए। चूजे जितने बड़े होते जाय तह उतनी मोटी (प्रति सप्ताह 2 सेमी0) करते रहना चाहिए। गर्मी में बहुत सुखा होने के कारण पक्षियों के चलने से धूल उड़ती है जिससे की कुछ पक्षियों  को सांस की बीमारी लग सकती है। इसलिए गर्मी में विछावन पर हल्के-हल्के पानी का छिड़काव करना लाभदायक रहता है, परन्तु ध्यान रखना चाहिए कि विछावन ज्यादा गीला न होने पाये। विछावन को आवश्यकतानुसार बदलते रहना चाहिए, क्यांेकि विछावन से काफी गर्मी व अमोनिया गैस बनती है, जो चूजों की वृद्धि एवं मुर्गियों के उत्पादन पर प्रभाव डालती है।

जल का प्रबन्धन

गर्मी में  यह सबसे महत्वपूर्ण पहलू है इसके अभाव में चूजे लू का शिकार हो जाते हैं इसलिए आवश्यकतानुसार पानी कम से कम चार बार देना चाहिए। पानी के बर्तनों की संख्या बढ़ाना लाभदायक होता है। चूजों को स्वच्छ एवं ठंडा पानी देना चाहिए। चूजे/मुर्गियांे को 45-80 डिग्री फारेनहाईट के तापमान का पानी अच्छा होता है। पानी का तापक्रम कमरे के तापक्रम से कम होना चाहिए। सामान्यतः चूजों को 2 लीटर पानी प्रति किग्रा0 दाने पर आवश्यक होता है। मुर्गियों में पानी की आवश्यकता प्रति डिग्री तापक्रम बढ़ने पर 4 प्रतिशत बढ़ जाती है। सामान्यतः दाना एवं पानी के खपत का अनुपात 1: 2 रहता है लेकिन यदि तापक्रम 650 फारेनहाईट से ज्यादा हो जाय तो यह अनुपात 1: 4 से ज्यादा हो जायेगा। मिट्टी के बर्तन में पानी देना अधिक लाभदायक होगा। समय-समय पर पानी का निरीक्षण करना चाहिए। मुर्गियों के लिये पानी हमेशा उपलब्ध रहना चाहिए। पानी की शुद्धिकरण के लिए पानी में ब्लीचिंग पाउडर डालना चाहिए। पानी मंे शिरा या गुड़ मिलाना लाभदायक होता है। अगर गर्मी में तापक्रम 320ब से ज्यादा हो जाय तो 8 सप्ताह के 100 चूजों पर कम से कम 25 से 30 लीटर पानी की आवश्यकता प्रतिदिन होती है। मुर्गियांे द्वारा पानी ग्रहण करने की क्षमता उनकी आयु तथा वजन एवं तापक्रम पर निर्भर करता है। दाने में अधिक प्रोटीन, अधिक रेशा एवं ज्यादा नमक हो तो भी पानी ग्रहण करने की क्षमता पक्षियों में बढ़ जाती है। 

आहार का प्रबन्धन- 

जैसे-जैसे तापक्रम बढ़ता जायेगा, मुर्गी की ऊर्जा की आवश्यकता कम होगी। अतः दाने में मिनरल, प्रोटीन एवं फाइबर की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। मुर्गियांे को गर्मी में दाना छोटी-छोटी गोली के रुप में देना लाभदायक होता है, जिससे उसकी आहार ग्रहण क्षमता बढ़ जाती है, साथ ही आहार का नुकसान भी कम होता है। आहार हमेशा सुबह या शाम को देना चाहिए, इस समय तापक्रम कम रहता है। सुबह के समय कुछ अतिरिक्त प्रकाश देने से लाभ होता है। दाने के बर्तन में दाना 3-4 बार देना चाहिए एवं हाथ से मिलाना चाहिए। दाने को पानी से गीला कर मुर्गियांे को देना चाहिए। पानी दाने के बर्तन में नहीं मिलाना चाहिए। दाने में आवश्यक पानी अलग से मिलाकर दें। दाने के बर्तन में भींगा दाना शेष नहीं होना चाहिए, अन्यथा फफूदी का संदूषण हो जायेगा, जिससे कुक्कुट उत्पादन पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

अंण्डे एंव ब्रायलर चूजो के लिये आहार, पानी की आवश्यकता प्रतिदिन:-

पक्षियो की उम्र (दिन में)

लेयर

ब्रायलर

औसत शरीर भार (ग्राम में)

आहार

(ग्राम में)

पानी

(मी.ली. में)

औसत शरीर भार (ग्राम में)

आहार

(ग्राम में)

पानी

(मी.ली. में)

7

50

6-5

40

182

6-5

62

15

100

13

80

322

14

140

30

260

24

105

900

26

170

45

380

37

132

1650

42

210

60

565

49

160

2150

54

230

90

980

60

205

-

-

-

120

1050

65

240

-

-

-

150

1280

80

280

-

-

-


कुक्कुट उत्पादन पर गर्मी का प्रभाव-
1. गर्मी में दाने से मांस परिवर्तन करने की क्षमता घट जाती है। ब्रायलर एवं लेयर मुर्गियों  में  बढ़वार कम हो जाती है। आहार ग्रहण क्षमता कम हो जाती है। 
2. चूजों में बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। गर्मी में चूजों की मृत्यु ज्यादा होती है। 
3. अण्डे का छिलका पतला हो जाता है। अण्डे से चूजे निकलने की क्षमता कम हो जाती है। उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिये कुक्कुटपालन व्यवसाय में गरमियो में मुर्गीपालको को मुर्गीयो की विशेष देखरेख की आवश्कता होती है। 

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