गेहूँ पांच नवीनतम प्रजातियां एवं विशेताएं
ये हैं गेहूं की सबसे बेहतरीन किस्में.
गेहूं (Wheat Farming) रबी सीजन की सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल है. धान की कटाई के बाद किसान गेहूं की खेती की तैयारी शुरू कर देते हैं. दूसरी फसलों की ही तरह गेहूं की खेती में भी अगर उन्नत किस्मों (Best varieties of wheat) का चयन किया जाए को किसान ज्यादा उत्पादन के साथ-साथ ज्यादा मुनाफा भी कमा सकते हैं. किसान इन किस्मों का चयन समय और उत्पादन को ध्यान में रखकर कर सकते हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान करनाल (IIWBR) की मानें तो गेहूं की ये पांच किस्में सबसे नई हैं और इनसे उत्पादन भी बंपर होता है.
करण नरेन्द्र
ये गेहूं की नवीनतम किस्मों में से एक है. इसे डीबीडब्ल्यू 222 (DBW-222) भी कहते हैं. गेहूं की ये किस्म बाजार में वर्ष 2019 में आई थी और 25 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच इसकी बोवनी कर सकते हैं. इसकी रोटी की गुणवत्ता अच्छी मानी और जाती है. दूसरी किस्मों के लिए जहां 5 से 6 बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है, इसमें 4 सिंचाई की ही जरूरत पड़ती है. ये किस्म 143 दिनों में काटने लायक हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 65.1 से 82.1 क्विंटल तक पैदावार होती है.
करन वंदना
इस किस्म की सबसे खास बात ये होती है कि इसमें पीला रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियां लगने की संभावना बहुत कम होती है. इस किस्म को डीबीडब्ल्यू-187 (DBW-187) भी कहा जाता है. गेहूं की ये किस्म गंगा तटीय क्षेत्रों के लिए अच्छी मानी जाती है. फसल लगभग 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 75 क्विंटल गेहूं पैदा होता है.
पूसा यशस्वी
गेहूं की इस किस्म खेती कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के लिए सबसे सही मानी जाती है. यह फफूंदी और गलन रोग प्रतिरोधक होती है. इसकी बुवाई का सही समय 5 नवंबर से 25 नवंबर तक सही मानी जाती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 57.5 से 79. 60 क्विंटल तक पैदावार होती है.
करण श्रिया
गेहूं की ये किस्म जून 2021 में आई थी. इसकी खेती के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य ठीक माने जा रहे हैं.लगभग 127 दिनों में पकने वाली किस्म को मात्र एक सिंचाई की जरूरत पड़ती है. प्रति हेक्टेयर अधिकतम पैदावार 55 क्विंटल है.
डीडीडब्ल्यू 47
गेहूं की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा (12.69%) होती है. इसके पौधे कई तरह के रोगों से लड़ने में सक्षम होते हैं. कीट और रोगों से खुद की सुरक्षा करने में सक्षम. प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग 74 क्विंटल.
डा. अनसुने मणि त्रिपाठी