समुद्री शैवाल की खेती और प्रसंस्करण
समुद्री शैवाल स्थूलदर्शीय अर्थात सहजता से दिखने वाले (मैक्रोस्कोपिक) ऐसे शैवाल हैं जिन्हें रेचक के रूप में उपयोग करने के कारण '21वीं सदी का चिकित्सा भोजन' भी कहा जाता है। उनका उपयोग घेघा रोग (गोइटर), कैंसर, हड्डी-प्रतिस्थापन चिकित्सा और हृदय एवं रक्तवाहिकाओं की शल्य चिकित्सा (कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी) के लिए औषधीय (फार्मास्यूटिकल) कैप्सूल बनाने के लिए भी किया जाता है। ये असंख्य उपयोग समुद्री शैवाल को अत्यधिक मांग वाला उत्पाद बनाते हैं। स्थानीय लोग लंबे समय से इसकी खेती कर रहे हैं लेकिन इसकी पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिए आवश्यक कौशल की कमी है। यहीं पर केंद्र वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई) ने कदम रखा और आवश्यक कौशल प्रदान करने की पहल की। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई) के प्रयासों ने तमिलनाडु के मंडपम और गुजरात राज्य में समुदाय-आधारित संगठनों और स्वयं सहायता समूहों के बीच समुद्री शैवाल की खेती, उपयुक्त प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने, औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए समुद्री शैवाल की जैवभार (बायोमास) उत्पादकता बढ़ाने और समुद्री शैवाल आधारित गतिविधियों पर उद्यमिता विकास को प्रोत्साहित करने में कौशल विकसित करने में मदद की है। प्रशिक्षित स्थानीय लोगों में कई महिलाएं शामिल हैं जो अपने-अपने परिवार की कमाऊ सदस्य हैं। वे अब समुद्री शैवाल की खेती के माध्यम से अच्छा लाभांश अर्जित कर रहे हैं। कई महिला समूहों को इससे लाभ हुआ है और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद- केंद्रीय नमक और समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएसएमसीआरआई) से प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी के माध्यम से निर्मित क्षमता ने स्थानीय जनसंख्या के लिए आजीविका सुनिश्चित करने के साथ ही उन्हें सशक्त बनाने में भी एक लंबा सफर तय किया है।