पशुओं में लंपी रोग से बचाव


लेखक - सुनील सिंह

वैज्ञानिक (पशुपालन), कृषि विज्ञान केन्द्र, धौरा, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

हाल ही में पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश समेत भारत के कई राज्यों के गौवंशों में गाँठदार त्वचा रोग या ‘लंपी स्किन रोग’ के संक्रमण के मामले देखने को मिले हैं। लंपी स्किन रोग सबसे पहले 1929 में अफ्रीका में देखी गई थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बीमारी दुनिया के कई देशों में फैली है. भारत में इस रोग का पहला मामला मई 2019 में ओडिशा राज्य में दर्ज किया गया था।

संक्रमण का कारण

यह बीमारी पशुओ में एल एस डी कैप्रीपॉक्स नामक वायरस से फैलती है जो कि छुवा छुत की बीमारी है। अगर एक पशु में संक्रमण हुआ तो दूसरे पशु भी इससे संक्रमित हो जाते हैं। ये बीमारी, मक्खी-मच्छर, चारा के जरिए फैलती है, क्योंकि पशु भी एक राज्य से दूसरे राज्य तक आते-जाते रहते हैं, जिनसे ये बीमारी एक से दूसरे राज्य में भी फैल जाती है।

रोग के लक्षण

* इस बीमारी में शरीर पर गांठें खासकर सिर, गर्दन, और जननांगों के आसपास बनने लगती हैं।

* इसके बाद धीरे-धीरे गांठे बड़ी होने लगती हैं और फिर ये घाव में बदल जाती हैं।

* इस बीमारी में गाय को तेज़ बुखार आने लगता है।

* गाय दूध देना कम कर देती है।

* मादा पशुओं का गर्भपात हो जाता है।

* कई बार गाय की मौत भी हो जाती है।

* यह पूरे शरीर में विशेष रूप से सिर, गर्दन, अंगों, थन (मादा मवेशी की स्तन ग्रंथि) और जननांगों के आसपास तीन से पाँच सेंटीमीटर व्यास की गाँठ के रूप में प्रकट होता है।

* इसके अन्य लक्षणों में सामान्य अस्वस्थता, आँख और नाक से पानी आना, बुखार तथा दूध के उत्पादन में अचानक कमी आदि शामिल है।

संक्रमण से बचाव के उपाय

* लम्पी के संक्रमण से पशुओं को बचाने के लिए अपने जानवरों को संक्रमित पशुओं से अलग रखना चाहिए।

* अगर गोशाला या उसके नजदीक किसी पशु में संक्रमण की जानकारी मिलती है, तो स्वस्थ पशु को हमेशा उनसे अलग रखना चाहिए।

* रोग के लक्षण दिखने वाले पशुओं को नहीं खरीदना चाहिए. मेला, मंडी और प्रदर्शनी में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए।

* गोशाला में कीटों की संख्या पर काबू करने के उपाय करने चाहिए।

* मुख्य रूप से मच्छर, मक्खी, पिस्सू और चिंचडी का उचित प्रबंध करना चाहिए।

* रोगी पशुओं की जांच और इलाज में उपयोग हुए सामान को खुले में नहीं फेंकना चाहिए।

* अगर गोशाला या उसके आसपास किसी असाधारण लक्षण वाले पशु को देखते हैं, तो तुरंत नजदीकी पशु अस्पताल में इसकी जानकारी देनी चाहिए।

* एक पशुशाला के श्रमिक को दुसरे पशुशाला में नहीं जाना चाहिए।

* पशुपालकों को भी अपने शरीर की साफ-सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए।

रोग का उपचा

* चूंकि यह वायरल संक्रमण है, इसलिए इसका कोई इलाज नहीं होने के कारण टीकाकरण ही रोकथाम व नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन है, लेकिन त्वचा में द्वितीयक जीवाणु संक्रमण से बचने के लिए एंटीबायोटिक्स, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीहिस्टामिनिक दवाएं दी जा सकती हैं।

* त्वचा के घावों को 2 प्रतिशत सोडियम हाइड्रॉक्साइड, 4 प्रतिशत सोडियम कार्बानेट और 2 प्रतिशत फॉर्मेलिन द्वारा एंटीसेप्टिक समाधान के साथ इलाज किया जा सकता है।


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