पशुचारे में 25.54 प्रतिशत वृद्धि

इस वर्ष मानसून के बिगड़े मिजाज ने किसानों की खरीफ की फसलों धान, उर्द, मूंग,तिल, मक्का, ज्वार बाजरा आदि भारी क्षति पहुंचाया है। कहीं अतिवृष्टि से फसलें नष्ट हो गई तो कहीं सूखे की बजह से खरीफ फसलों की बुवाई ही नहीं हो पाई। कई प्रदेशों में फसले कटने के लिए जब तैयार हुई तो बेमौसम की बारिश ने किसानों की कमर तोड़ मेहनत पर पानी फेर दिया। जिससे एक तरफ खेत में खड़े बाजरे की फसल की गुणवत्ता खराब हो गई वहीं दूसरी तरफ बाजरे की कड़बी (पशु चारा) भी पशु चारें के योग्य नही रही। ऐसे परिस्थति में पशुपालक किसानों के सामने पशुओं के चारे के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इस समय समूचा देश पशुओं के चारे की कमी जूझ रहा हैं। चारे की महंगाई ने पिछलें 9 वर्षों की उच्चतम सीमा पर पहुंच गई है। गेहूं की भूसे की कीमत लगभग 19 से 20 रुपये प्रति किलो अर्थात 1900 से 2000 रुपये प्रति कुन्तल पहुंच गई है। जो विगत मौसम में अधिकतम 900-1000 रुपए प्रति कुन्तल थी। पशुओं के चारे में अधिक महंगाई की वजह से दूध की कीमतों में लगातार बढ़ोत्री हो रही है और आने वाले समय में दोनो की चीजों के मूल्यों में  और बढ़ोत्री की संभावना है। 

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, और गुजरात के किसान है ज्यादा परेशान

भारत के जिन प्रदेश में में बाजरे की खेती होती वहां के किसान बाजरे का उपयोग अपने भोजन में तो  करते  ही हैं साथ ही  बाजरे की कड़बी को पशुचारे के रूप में भी प्रयोग करते है। कड़बी को पशुओं के लिए स्वास्थ्य वर्धक भोजन माना जाता है इसको खाने से पषुओं में दूध की मात्रा व गुणवत्ता दोनो में वृद्धि होती है। बेमौसम बरसात के करण खेतों में खड़ी चारे की फसलों को नुकसान होने से छोटे पशुपालकों की हालत बहुत ही दयनीय हो गयी है। सबसे अधिक परेशान उत्तर  प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और गुजरात के कृशक भाई हैं। इन प्रदेषों में बेमौसम अतिवृष्टि के कारण बाजरा व अन्य खरीफ फसलें नष्ट हो गई है और इन राज्यों के किसानों को दुधारू पशुओं के लिए पशु चारे की चिंता सता रही है। पशुओं के लिए पारंपरिक आहार गेहूं का भूसा खरीदना किसानों के लिए लोहे के चने के समान हो गया है।

गेहूँ और भूसे का दाम हुआ एक समान

गेहूं का भूसा इन दिनों करीब 2000 रुपए प्रति कुन्तल बिक रहा है। वहीं गेहूं का भाव भी 2200 रुपए प्रति क्विंटल है। किसानों की माने तो ऐसी परिस्थति उनके जीवन में पशु चारे की कभी और इतनी महंगाई नहीं देखी है। गेहूं और गेहूं के भूसे के भाव लगभग समान हो गए हैं। अगर यही हालत रहे तो गेहूं के भूसे के भाव गेहूं से ज्यादा हो जाएंगे। वहीं सरसों खली की कीमत भी बढ़कर 3000 रुपए प्रति क्विटंल पहुंच गई है। कुछ दिन पहले इसकी कीमत 1600 रुपए प्रति क्विटंल थी। लगभग एक वर्ष से पशु चारे के मूल्यों में लगातार वृद्धि देखी रही है।

पशुचारे में 25.54 प्रतिशत वृद्धि

भारत में सूखे व हरे चारे की कमी के कई कारण प्रकाष आये हैं। इनमें पानी की कमी , मौसम की मार और पराली को खेतों में जलाना आदि कारणों पशु चारे को खराब करने शामिल है। विशेषज्ञों के मतानुसार देशभर में हरे चारे की 12 से 15 प्रतिषत और सूखे चारे की 25 से 26 फीसदी कमी का अनुमान है। थोक मूल्य सूचकांक अनुसार पशु चारा दर माह अगस्त 2022 में पिछले नौ वर्षो के दौरान अपने अधितम ऊँचाई 25.54 प्रतिषत तक पहुँच गयी है। पषु चारे में विगत वर्ष से लगातार बढ़ोत्री हो रही है। जबकि इस महीने थोक महंगाई दर में गिरावट देखने को मिली है। विशेषज्ञों के मतानुसार यदि किसान भाई पराली को खेतों में ही न जलाये तो सूख चारे की कमी को दूर किया जा सकता है। 

किसानों पर कुदरत का कहर

इस वर्श कुदरत के कहर से किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। मानसून की अनियमितता की वजह से खरीफ फसल किसानों के लिए अधिक फायदेमंद नहीं रही है। जहाँ कई प्रदेशों में बाजरा न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे बिक रहा है। वही पशुओं में लम्पी रोग (विषाणु जनित) ने किसानों को नुकसान पहुंचाया है। गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश सहित देश के 15 राज्यों में लम्पी त्वचा रोग की वजह से अभी लगभग एक लाख से अधिक दुधारू पशु मौत के गाल में समा चुके है जबकि 20 लाख से अधिक दुशारू पशु इस त्वचा रोग से प्रभावित है। इनमें गौवंश की संख्या सबसे अधिक है। 

नही बढ़ी दूध कीमतें

हमारे देश में दूध की आपूर्ति करने वाली देध की डेयरियां मदर डेरी, नमस्ते इंडिया अमूल, डेयरी मिल्क, सरस, गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फैडरेशन आदि प्रमुख कंपनियां ने अगस्त में चारे की कीमतों में वृद्धि की वजह से दूध की कीमतों में बढ़ो़त्री किया है। राजस्थान में सरस डेयरी के फूल क्रीम दूध की कीमत 64 रुपए किलो तक पहुंच गई है। किसानों का कहना है की चारे की कीमतों में 25 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है, लेकिन दूध के दामों में उसी अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है। किसान दूध के दामों में और वृद्धि की मांग कर रहे हैं। ऐसे में दूध की कीमतों में वृद्धि से इनकार नहीं किया जा सकता। 


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्राह्मण वंशावली

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा