साग एक लाभ अनेक

सर्दियों का मौसम शुरु होते ही चना, मटर,सरसों, सोया मेथी, पालक मानों सागों का मौसम आ जाता है। इस मौसम में बथुआ को गुणों की खान माना जाता है। बथुआ की तासीर गर्म मानी गयी है, उसमें बिटामिन सी के साथ-साथ बिटामिन बी 1, से लेकर बिटामिन बी 6 तक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। बथुवे में कैल्शियम,  लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटाशियम, सोडियम व जिंक आदि पोशक तत्व पाये जाते हैं। 100 ग्राम कच्चे बथुवे में 7.3 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 4.2 ग्राम प्रोटीन व 4 ग्राम पोषक रेशे होते हैं। कुल मिलाकर 43 कैलोरी उर्जा पायी जाती होती है। बथुआ का प्रयोग हम उर्द की दाल में, रायता, पकौड़ी एवं साग के रूप में करते है। यह उच्य प्रोटीन के साथ अन्य सागों की तुलना में अधिक पौष्टिक और सुपाच्य है। 

सर्दी के मौसम में हम और हमारी गर्भवती माताएं अपने भोजन में बथुआ को शामिल करके कैल्शियम, आयरन, विटामिन बी1, बी2, बी3, बी4, बी5, बी6 एवं विटामिन सी की कमी से निजात पा सकती है। बथुआ को उबाल कर या कच्चा पीस कर उसका जूस हल्का नमक के साथ पीने से पेशाब सम्बन्धी विकृतियां दूर हो जाती है। बथूए का रस या उबला हुआ पानी पीने से उदर सम्बन्धी सभी तरह के रोग गैस, कृमि, दर्श, अर्क, यकृत, तिल्ली, अजीर्ण एवं पथरी से छुटकारा मिल जाता है। एक गिलास कच्चा बथुए का नित्य सेवन से पथरी पानी की तरह गल के बाहर हो जाती है। रस इसमे विद्यमान जिंक बल वर्धक है जिन भाइयो में शुक्राणुओं की कमी हो उन्हें बथुए को अपने भोजन में अवष्य शामिल करने चाहिए ये शुक्राणुओं की वृद्धि में लाभकारी है। ये पेट में कब्ज नही बनने देता इस दृश्टि से पाइल्स के रोगी बथुए का प्रयोग अपने भोजन में कर सकतें है। बथुआ बढ़े हुए लीवर, एवं आमाशय को बलिष्ट करता है। जिन महिलाओं को माहवारी में किसी प्रकार की समस्या आ रही है वे महिलाएं बथुआ खाना शुरू कर दें क्योकि इसमे विद्यमान विटामिन डी इस समस्या दूर करती है। यदि किसी माता की माहवारी रुक गयी हो तो दो चम्मच बथुए का बीज पानी आधा होने तक उबाले और छानकर पीने से माहवारी खुल जायेगी। आँखों में लाली या सूचन हो तो नित्य बथुए को भोज में षामिल करें। आमतौर पर देखा गया है कि सर्दियों के मौसम में लोग पानी पीना कम कर देते हैं जिसके वजह से यूरिन संबंधी समस्याएं जैसे जलन और दर्द होता है ऐसे लोगों को बथुए का साग खाना जरूर है, क्योंकि इसमें मौजूद मैग्नीशियम मैंगनीज फास्फोरस लोहा पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं जिनके सेवन से यूरिन इन्फेक्शन की समस्या दूर हो जाती है। दाद खाज खुजली सफेद दाग आदि चार्म रोगों में नित्य बथुआ उबालकर निचोड़ कर इसका रस पीये तथा सब्जी खाएं खाए, बथुए के उबले हुए पानी से चर्म को धोए। बथुए के कच्चे पत्ते को पीसकर निचोड़ कर रस निकाल लें, दो कप रस में आधा कप तिल का तेल मिलाकर धीमी आँच पर गर्म करें जब रस जलकर पानी की तरह हो जाए तो छान कर सीसी में भर लें तथा चर्म रोग पर नित्य लागये, लंबे समय तक लगाते रहे चर्म रोग से छुटकारा मिल जायेगा। रक्त पित्त हो जाने पर कच्चे बथुए का रस एक कप में  स्वानुसार शहद मिलकर निक्त पीने से क्रिम मर जाते हैं। बथुए का एक चम्मच पिसा हुआ बीज शहद में मिलाकर चाटने से क्रीम मर जाते हैं तथा रक्त पित्त ठीक हो जाता है। फोड़ा फुंसी सुजान पर बथुए को कूटकर सौठ और नमक मिलाकर गीले कपड़े में बांधकर कपड़े पर गीली मिट्टी लगाकर आग में सेकें। सीकने पर गरम-गरम बाधे। फोड़ा या तो पक कर फूट जायेगा या बैठ जाएगा। अगर आपको मुंह से संबंधित कोई भी समस्या है तो इसकी पतियों को चबाने से उसका निवारण होता है। अगर आपको मलेरिया या बुखार है तो बथुआ का सेवन आपके लिए लाभकारी है। इसको पीने से बुखार चला जाता है। बथुए को साग के बजाय औशधि की उपाधि दी सकती है।

बथुआ का प्रयोग हमारे पूर्वज अपने भोजन में शामिल तो करते ही थे साथ में इसका प्रयोग घरो की पुताई करते समय हरा रंग लाने के लिए करते थे और महिलाएं इसके पानी से बाल धोया करती थी जिससे बालों रूसी, जूँ आदि की सफाई हो जाती  थी तथा बाल षिल्की और मुलयम हो जाते थे। 

बथुए को अपने भोजन आसानी से शामिल किया जा सकता है क्योकि सर्दियो के मौसम में चना, मटर, मसूर, सरसो, आलू,एवं गेहूँ की फसल में अपने आप ही उग आता है तथा सभी सब्जी बाजारों में आसानी से मिल जाता है। इसके प्रयोग के लिए कोई अलग से तैयारी नही करनी है, दाल आम तौर पर सभी घरो में बनती ही है बस उर्द की दाल बनाते समय इसे साफ करके दाल में डाल देना है, इसी तरह हल्का उबालकर छान कर जूस और छानस को दही में मिला कर रायता तैयार कर सकते है। इसको काटकर आटे में मिलाकर इसकी रोटी या पराठा बना सकते है तथा इसको आटे में भरके कचौड़ी के रूप प्रयोग कर सकते है तथा मैदा में मिलाकर काली मिर्च नमक आदि मिलाकर माठ्ठी भी बना सकते है। कुल मिलाकर साग एक लाभ अनेक।

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