एहसास

प्रस्तुति तुलसिका मिश्रा 
जब तुम साथ थे तो समय नहीं था, जब साथ है समय तो न जाने तुम हो कहाँ ?  
हर ओर ढूँढ़ लिया इधर-उधर यहाँ-वहाँ, 
फिर भी न मिले तेरे निशान ।
तुझे ढूंढकर तुझसे मिल न सका, अफसोस ! तेरी मीठी सी बातें सुन न सका ।
दिल ने सपने सजाए थे कई, 
पर तेरे साथ लड़ियाँ सजा न सका ।
उस दिन हर गली हर घर चमचमा रहा था, 
बस मेरा मकान ही मुरझा सा रहा था, तेरी एक झलक, एक मुस्कान के लिए वह अजीवित घर छटपटा सा रहा था ।
बच्चों की तरह तेरे आने के इंतजार में १३ दिन गुजारे हैं पर, 
पता यह भी था जहाँ तुम चले गए वहाँ से लोग कभी न आने वाले हैं ।
तेरे ना होने से बहुत कुछ बद‌ला है, मैंने अपने घर को ईंट से बने ढाँचे में बदलते देखा है,
सबको हँसते रोते देखा है, मोह-माया में फँसते देखा है पर,
 तेरी याद में चार लोगों को असल आँसू बहाते भी देखा है ।
इस दिल में तेरी कमी बहुत खल रही हैं, 
इन तेज आवाजों से बेचैनी हो रही है।हर पल बस ख्यालों की वर्षा हो रही है, 
उस बेजुबान की आखें भी नम हो रही हैं ।
काश समय की अहमियत समय पर समझ पाता, 
तेरी डॉंट तेरी हर बात की महता समझ पाता ।
पर समय का पहिया मैं घुमा नहीं सकता, 
इस मायावी दुनिया में मैं तुमको ढूँढ नहीं सकता,
बस तेरी प्यार भरी यादों को साथले जिंद‌गी में आगे चलते रह सकता हूँ। रंज तो हमेशा रहेगी तेरे साथ न होने की,
पर तेरी मुस्कान याद आते ही
मुझे नहीं जरूरत पड़ेगी रोने की।

तेरी याद में  ~ अलविदा

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