राम राज्य की भी प्राण-प्रतिष्ठा

 राम राज्य की भी प्राण-प्रतिष्ठा।

शरद प्रकाश पाण्डेय 

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरणों में कोटि -कोटि नमन..!!

हमारे  आराध्य भगवान श्रीराम को  मर्यादा पुरुषोत्तम  भी कहा गया है ऐसा क्यों ! क्योंकि उनके गुरुजन द्वारा दी गयी शिक्षा और माता पिता के संस्कार  को ही उन्होंने सर्वोत्तम माना।

भगवान राम कभी किसी प्राणी , दानव, मानव, पशु  अथवा पक्षी से भी  कठोर वाणी में वार्ता नहीं किये। कभी किसी के हृदय को दुख नहीं पहुंचाये । वो कभी अपने माता-पिता, गुरुजन एवं प्रजा को दुखी नहीं किये। माता ने कहा वन चले जाओ  तो वन चले गए, पिता ने राज्याभिषेक चाहा तो राजा बन कर राजधर्म निभाया, प्रजा बोली माता सीता का त्याग कर दों, तो माता सीता का त्याग करके प्रमाण के लिए उन्हें वन में भेजवा दिये और माता सीता की महानता तनिक भी विचार -विमर्स किये बिना पत्नीधर्म को निभाते हुए  स्वामी के आदेश, इच्छा और राजधर्म की मांग को  देखते हुए राजाज्ञा का अनुपालन करने लिए वनवासी हो गयी जबकि वो उस समय गर्भ से थी, उन्होंने तनिक भी वन आने वाले संकटों की चिंता नहीं की और हमारे राम ने सारे राज सुखों का त्याग करके अल्प भोजन और धरा शयन को अपना लिया।

आज हर तरफ राम नाम की गूंज है,  सभी हिन्दू धर्म, हिन्दुत्व की बात करते हैं, राम राज लाने की बात करते हैं।

लेकिन राम राज तब आयेगा जब हम हृदय में माता पिता, गुरुजन, भाई बहन हित मित्र नात रिश्तेदार सभी प्रति सदभावना  होगी, एक दूसरे को हृदय पीड़ा के  बजाय प्रफुल्लित हृदय देने की चेष्टा होगी।  मांस , मदिरा, व्यभिचार का  समाज से त्याग करने और कराने का प्रयास करेंगे , राम राज तब आयेगा। 

जिन विष्णु अवतारी प्रभु राम को हम लाने या प्राण-प्रतिष्ठा की चर्चा कर रहे हैं,वस्तुत: राम द्वारा स्थापित सामाजिक मर्यादा और मूल्य की पुनः स्थापना का प्रयास है। राम हमारे मन में तो हमेशा रहे , मगर उनके द्वारा स्थापित मूल्यों का, मर्यादाओं का ह्रास होने लगा था उनकी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा उनके सुशासन, आदर्शों और मूल्यों की पुनः स्थापना का प्रतीक है। 

सनातन धर्म में मूर्ति का महत्व हमारे शंकराचार्य भी मानते हैं। मूर्ति, हमारा ध्यान आदर्शों मूल्यों और मर्यादाओं की ओर केन्द्रित करती हैं।

राम जी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा भी रामराज्य की पुनः प्रतिष्ठा की प्रतीक है।

उन्हें अवतरित होने के लिए कोई बाध्य नहीं कर सकता  क्योंकि-

 "समय सुअवसर जानि प्रभु,लीन्हि मनुज अवतार। 

उन्होंने लोकहित और जनकल्याण के लिए 

 धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया था और धर्म की रक्षा किये भी। हम उनके दर्शन का वास्तविक लाभ तब पायेंगे जब हम अपने धर्म और कर्तव्य को जानेंगे, जब हम अपने माता-पिता, भाई-बहन, हित मित्र नात रिश्तेदारों के प्रति अपने कर्तव्यों का अनुपालन करेंगे।

भगवान राम तो कण-कण में व्याप्त है,वो भक्त वत्सल है उनको हम सभी अपने-अपने पौरुष और सामर्थ्य के अनुसार भक्ति भाव से जहां भी स्थान देंगे वे वहीं स्थापित हो जायेंगे, जो भोज परोसेंगे उसी का भोग ग्रहण करेंगे, वह माता सबरी के जूठे बेर भी प्रेम से स्वीकार किये, उन्होंने कभी जाति धर्म का भेद नहीं माना।

राम को तो लाना है ही उनके द्वारा बताए गये मार्ग और उनके द्वारा स्थापित मूल्यों, आदर्शों और मर्यादाओं को भी अपनाना और आत्मसात करना होगा।

हमें जन्म देने वाले माता-पिता एवं शिक्षा देने वाले गुरुजन के चरणों में कोटि -कोटि नमन,  प्रभु राम में श्रद्धा हो ! प्राणियों में सदभावना हो, विश्व का कल्याण हो!

🌹🌹जय सीताराम🌹🌹

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मिर्च की फसल में पत्ती मरोड़ रोग व निदान

ब्राह्मण वंशावली

ब्रिटिश काल में भारत में किसानों की दशा